रक्षाबंधन
2024 में रक्षा बंधन कब है?
रक्षाबंधन 2024 की तारीख व मुहूर्त
19 अगस्त, 2024 (सोमवार )
राखी बांधने का मुहूर्त
रक्षा बंधन प्रदोष मुहूर्त : | 21:03:15( से 7:05:18 तक |
रक्षा बंधन के दिन बहने भाईयों की कलाई पर रक्षा-सूत्र या राखी बांधती हैं। साथ ही वे भाईयों की दीर्घायु, समृद्धि व ख़ुशी आदि की कामना करती हैं।
रक्षा-सूत्र या राखी बांधते हुए निम्न मंत्र पढ़ा जाता है, जिसे पढ़कर पुरोहित भी यजमानों को रक्षा-सूत्र बांध सकते हैं–
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
रक्षाबंधन
“रक्षा बंधन” एक प्राचीन भारतीय परंपरागत रीति है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की रक्षा और सहायता के लिए एक बंधन बांधता है। यह एक गहरा और सामाजिक वचन होता है, जिसमें एक व्यक्ति प्रतिज्ञा करता है कि वह दूसरे की सुरक्षा और उसके साथी कों की सहायता करेगा।
रक्षा बंधन के नियम आमतौर पर निम्नलिखित गुणों पर आधारित होते हैं:
वचनवद्धता (अपनी प्रतिज्ञा का पालन करना): रक्षा बंधन में सबसे महत्वपूर्ण नियम है कि व्यक्ति जो बंधन बांधता है, उसे अपने वचन का पालन करना चाहिए। वह जो कहता है, वह करने का प्रतिश्रय करता है।
सामर्थ्य (उस व्यक्ति की सहायता करना जिसकी आवश्यकता है): व्यक्ति रक्षा बंधन के माध्यम से दूसरे की सुरक्षा और सहायता के लिए अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन करता है।
सहानुभूति और समर्पण: रक्षा बंधन के अंतर्गत, व्यक्ति को अपने साथीकों के प्रति सहानुभूति और समर्पण की भावना रखनी चाहिए। वह दूसरे की जरूरतों को समझने का प्रयास करता है और उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए तत्पर होता है।
विश्वास और सम्मान: रक्षा बंधन की सफलता के लिए विश्वास और सम्मान की भावना महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को उस संबंध के प्रति आदर्श और विश्वास की भावना रखनी चाहिए जिसे वह बंधता है और उसके साथीकों के प्रति भी यही उम्मीद रखनी चाहिए।
सहयोग (आपसी सहायता का प्रदान करना): रक्षा बंधन में सहयोग की भावना शामिल होती है। दूसरे की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति को सहयोग की प्राथमिकता देनी चाहिए।
यह नियम रक्षा बंधन के मूल तत्व होते हैं, जो एक समर्पित, सहानुभूति और सहयोगपूर्ण संबंध की निर्माण की मदद करते हैं।
रक्षा बंधन के नियम
रक्षा बंधन का पर्व श्रावण मास में उस दिन मनाया जाता है जिस दिन पूर्णिमा अपराह्ण काल में पड़ रही हो। रक्षा बंधन इन नियमों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है–
1. पूर्णिमा के दौरान अपराह्ण काल में भद्रा हो तो रक्षाबन्धन नहीं मनाना चाहिए। ऐसे में यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में हो, तो पर्व के सारे विधि-विधान अगले दिन के अपराह्ण काल में करने चाहिए।
2. लेकिन यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों में न हो तो रक्षा बंधन को पहले ही दिन भद्रा के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मना सकते हैं।
यद्यपि पंजाब आदि कुछ क्षेत्रों में अपराह्ण काल को अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है, इसलिए वहाँ आम तौर पर मध्याह्न काल से पहले राखी का त्यौहार मनाने का चलन है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार भद्रा होने पर रक्षाबंधन मनाने का पूरी तरह निषेध है, चाहे कोई भी स्थिति क्यों न हो।
ग्रहण सूतक या संक्रान्ति होने पर यह पर्व बिना किसी निषेध के मनाया जाता है।
रक्षाबंधन की पूजन विधि
रक्षाबंधन पूजन एक हिन्दू त्योहार है जिसमें बहनें अपने भाइयों की लम्बी आयु और सुरक्षा की कामना के साथ राखी बांधती है। यह पूजन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। निलिखित है रथाबंधन पूजन की आम विधि:
सामग्री
- राखी बहन द्वारा चुनी हुई
- तिलक (कुमकुम)
- चावल (अक्षता)
- दीपक (दिया)
- अर्चना सामग्री (पुष्य, अदरक, तुलसी पत्ते
- पूजन सामग्री (गंध, कपूर, धूप, दीपा
- पानी कलश (लोटे में पानी)
- प्रसाद (मिठाई)
रक्षा बंधन की पूजन विधि
पूजा का आयोजन
- पूजा की जगह को साफ-सुधरा और सुखद बनाएं।
- पूजा के लिए एक चौकी या आसन स्थापित करें।
पूजा का आरंभ
- बहन बहन का दिल देखकर बहन के बाई हाथ में राखी बांधती है।
- बहन भाई की प्राणायाम मंत्र ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल का उच्चारण करती हैं और उसके बाद उनके पिता का नाम लेकर उनके लिए दुआ करती है।
तिलक और चावत
फिर बहन भाई के माथ पर तिलक लगाती हैं और उनके चारण में अक्षत दान करती हैं।
दीप और अर्चना
बहन अपने भाई के सामने दीपक जलाती हैं और उसके चारों ओर घूमते हुए अर्चना करती हैं।
पानी कलश
बहन एक लोटे में पानी लेती हैं और उसके सामने रखती हैं। .
प्रसाद
आखिर में बहन मिठाई या प्रसाद भाई को देती हैं और उनके सुरक्षा और समृद्धि की कामना करती हैं।
इसके अलावा कुछ विशेष परिप्रेक्ष्यों में लोग और भी पूजा विधियों का अनुसरण कर सकते हैं। पूजा के बाद, परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे को आशीर्वाद देते हैं और एक खास मिलन- जुलन का माहौल बनता है।
रक्षाबंधन का त्यौहार
हिन्दुओं के चार प्रसिद्ध त्यौहारों में से रक्षा बन्धन का त्यौहार एक है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह मुख्यतया भाई-बहन के स्नेह का त्यौहार है। इस दिन बहन-भाई के हाथ पर राखी बांधती है और माथे पर तिलक लगाती है। भाई प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति मैं अपनी बहन की रक्षा करूंगा।
एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लगने से रक्त बहने लगा था तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनके हाथ में बांध दी थी। इसी बन्धन से ऋणी श्रीकृष्ण ने दुःशासन द्वारा चीर हरण के समय द्रौपदी की लाज बचायी थी।
मध्यकालीन इतिहास में एक ऐसी घटना मिलती है जिसमें चित्तौड़ की रानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं के पास राखी भेजकर अपना भाई बनाया था। हुमायूं ने राखी की इज्जत की और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया।
रक्षाबंधन की कथा
कथा : प्राचीन समय में एक बार देवताओं और दानवों में बारह वर्ष तक घोर संग्राम चला। इस संग्राम में राक्षसों की जीत हुई और देवता हार गए। दैत्य राज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया तथा अपने को भगवान घोषित कर दिया। दैत्यों के अत्याचारों से देवताओं के राजा इन्द्र ने देवताओं के गुरु बृहस्पति से विचार-विमर्श किया और रक्षा विधान करने को कहा।
श्रावण पूर्णिमा को प्रातः काल रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रा महाबलः ।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल । उक्त मंत्रोच्चार से गुरु बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान किया।
सह धर्मिणी इन्द्राणी के साथ वृत्र संहारक इन्द्र ने बृहस्पति की वाणी का अक्षरशः पालन किया। इन्द्राणी ने ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा स्वस्तिवाचन करा कर इन्द्र के दायें हाथ में रक्षा सूत्र को बांध दिया। इसी सूत्र के बल पर इन्द्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।