माँ शताक्षी,शाकम्भरी और दुर्गा
दुर्गम दानव हनन ते, दुर्गा नाम लह्यो ।
विनय सुनी जग जन्म ले, देवन अभय दयो।।
दुर्गम का ब्रम्हा जी से वर पाना
मुनि बोले हे सूत जी- उमादेवी के अद्भुत चरित्र और सुनाइये। सूत जी बोले हे मुनिगण ! एक महापराक्रमी रुरु हुए , उनका पुत्र दुर्गम हुआ। ब्रह्माजी से वरदान में उसने चारों वेदों की प्राप्ति की और वर पाया। जिससे उसे देवता भी न जीत सकें। इस कारण देवता भी स्वर्ग में भय करने लगे। वेदों के न रहने पर सब क्रिया जाती रहीं। ब्राहमणों ने आचार धर्म त्याग दिये इस प्रकार प्रजा दुःखी हो गई।
देवताओं का महादेवी की शरण में जाना
प्रजा के इस संकट को देखकर देवता महादेवी की शरण में पहुँचे और बोले, हे महादुर्गे! जिस प्रकार आपने शुम्भ निशुम्भ का वध करके हमारी रक्षा की , अब भी इस दुष्ट का वध करके हमारी रक्षा करो।
माँ के करुणा भरे नेत्रों से जल की धाराएं बहना
इस प्रकार देवताओं के वचन सुनकर तथा प्रजा को दुःखी देखकर देवी ने अपने नेत्रों को दया के जल से भर दिया तब नौ दिन एवं नौ रातों तक नेत्रों द्वारा उस जल की हजारों धारायें बहने लगीं।
उनसे संपूर्ण वृक्ष औषधि आदि हरे-भर हो गये। नदियाँ, तालाब, समुद्र आदि सभी पूर्ण हो गये। उसके बाद देवी ने कहा, हे देवताओ! अब और तुम्हारा कौन सा कार्य करूँ !
तब सभी देवताओं ने प्रार्थना की कि, हे भगवति! दुर्गम द्वारा चुराये गये वेद हमें मिल जायें, अब यही कृपा करें।
महादेवी का देवताओं को आशीर्वाद देना
देवी ने प्रसन्न होकर तथास्तु कहा – फिर बोली, अब तुम अपने धाम को चले जाओ, वेद तुमको मिल जायेंगे, इसके बाद देवताओं ने देवी को प्रणाम किया फिर अपने-अपने धाम को सिधारे।
देवी के शरीर से दस देवियों का प्रकट होना
ठीक उसी समय रुरु पुत्र दुर्गम ने नगरी पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया. इधर महाकाली भी चक्र लिये आ पहुंचीं दोनों आर से घोर युद्ध छिड़ गया, पैने बाण छूटने लगे।
तब तो देवी के शरीर से और दस देवियाँ प्रकट हो गईं जिनके नाम यह हैं काली, तारा, छिन्न मस्तका, श्री विद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगुला, धूम्रा, त्रिपुरा, मातंगी इन सभी देवियों ने मिलकर दैत्यों की सौ अक्षौहिणी सेना का विनाश कर दिया फिर त्रिशूल से उस दुर्गम दैत्य का भी वध कर दिया। इस प्रकार उसका वध करके उससे वेद देवी ने प्राप्त किये।
माँ शताक्षी,शाकम्भरी और दुर्गा
माँ ने वह वेद देवताओं को जाकर दे दिये तब देवताबोले-हे मातेश्वरी! आपने हमारी रक्षा के लिये अनन्ताक्षिमय रूप धारे। इसी कारण आपका नाम शताक्षी होगा और अपने शरीर से उत्पन्न किये गये शोक द्वारा लोक पालन किया इसी कारण शाकम्भरी भी कहलाओगी।
दुर्गम दैत्य के वध के कारण आपका नाम दुर्गा होगा।
हे योगनिद्रे! हे महाबले! हे ज्ञानप्रदे! हे विश्वजननि ! आपको हमारा नमस्कार हो। समय-समय पर आप ही हमारी रक्षा किया करें।
तब दुर्गा बोली-तुम लोग चिन्ता मत करो जैसा कि मैं अब तक असुरों का विनाश करती आ रही हूँ उसी प्रकार आगे भी करके आप लोगों की रक्षा करती रहूँगी इसे सत्य समझो। जब-जब भी असुर लोग आकर उपद्रव करेंगे तभी-तभी मेरा अवतार होगा। मैं ही तुम्हारी रक्षा करूँगी।
लोक प्रसिद्ध शताक्षी शाकम्भरी दुर्गा ये एक ही दुर्गा के नाम हैं।
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