श्री गिरिराज जी की महिमा
ब्रजमण्डल में जो महत्त्व श्रीवृन्दावन धाम का है,वही महत्व श्री गिरिराज गोवर्द्धन का है । भगवान श्रीकृष्ण के काल के यदि कोई नेत्रगोचर चिन्ह हैं तो वे हैं श्री गिरिराजजी, श्री यमुना महारानी एवं परमपावन ब्रज-रज ।
ब्रजवासी श्री गिरिराज को भी अपना सब कुछ मानते हैं – सखा, पुत्र, मित्र, सम्बन्धी आदि । वे किसी और देवता को नहीं जानते । उनके लिये तो श्री गिरिराज जी ही उनके प्राण हैं ।
वे श्री गिरिराज जी की विधिविधान से औपचारिक पूजा आदि तो करते हैं, | पर उनकी सबसे बड़ी बात है कि वे उन्हें अपना मानते हैं – सर्वथा अपना ।
वे उनका लाड़-प्यार, साज-श्रृंगार करते पर उन पर खीझने का अधिकार भी जताते हैं – अपना समझकर । ठाकुर उनकी सरलता पर ही मुग्ध हैं ।
सम्बन्धों की ऐसी अनन्यता और निरंतरता जगत में अन्यत्र कहीं सुलभ नहीं ।
ये जो करोड़ों नर-नारी इनकी खड़ी दण्डवती, दूधधार की, एक ही स्थान पर अपने भाव के अनुसार निर्धारित गिनती की दण्डवती-प्रणामी परिक्रमा करते हैं।
एक संत की मान्यता के अनुसार वे कृष्ण के काल के ब्रजवासी ही तो हैं। शरीर के जनम-मरण के विवर्त में भी वे श्रीकृष्ण को श्री गिरिराज जी को विसार नहीं पाते मानो परिक्रमा और दर्शनों के निमित्त से गोवर्द्धन में पधारकर ठाकुर अपने सम्बन्धों की स्मृति करा जाते हैं और उनका कृपा प्रसाद पाकर अपने को कृतकृत्य समझते हैं ।
कृष्णयुगीन ये ब्रजवासी अपने शरीर का स्व रूप तो प्रकृति के विधान के अनुसार बदलते रहने के लिए बाध्य हैं, पर उनका मन श्रीकृष्ण के चरणकमलों की अनुरक्ति से विलग नहीं हो पाता ।
यहाँ के मान्य त्यौहारों के अवसरों पर आकर ब्रजभाषा भावित परिक्रमार्थियों की श्री गिरिराज जी के प्रति श्रद्धा-समर्पण तथा आत्मीयता का भाव देखकर प्रेरणा ली जा सकती है – इसे शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता ।