श्री नर्मदा चालीसा
माँ नर्मदा कहां से प्रकट हुई?
पौराणिक का कथा अनुसार एक बार भगवान शिव तपस्या में लीन थे तो उनके पसीने से मां नर्मदा जी का जन्म हुआ उस समय उस कन्या का नाम भगवान शिवजी जी ने नर्मदा रखा नमर्दा का अर्थ होता है – सुख प्रदान करने वाली ।
शिव जी ने यह भी कहा जो प्राणी आपके दर्शन करेगा उसका कल्याण होगा मां नर्मदा ने कई साल भगवान शिव की तपस्या की उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने मां नर्मदा को पापनाशिनी का आशीर्वाद दिया ।
यह भी वरदान दिया कि तुम्हारे तट पर सभी देवी देवता निवास करेंगे और जितने भी वहां पत्थर होंगे शिवलिंग के रूप में पूजे जाएंगे । जय मां माता दी
चालीसा
नर्मदा चालीसा एक भक्ति गीत है जो नर्मदा माता पर आधारित है।
॥ दोहा ॥
देवि पूजिता नर्मदा, महिमा बड़ी अपार । चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार ॥
इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान। तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान ॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय जय नर्मदा भवानी। तुम्हरी महिमा सबजग जानी॥
अमरकण्ठ से निकलीं माता सर्व सिद्धि नव निधि की दाता॥
कन्या रूप सकल गुण खानी । जब प्रकटीं नर्मदा भवानी॥
सप्तमी सूर्य मकर रविवारा। अश्वनि माघ मास अवतारा ॥
वाहन मकर आपको साजैं। कमल पुष्प पर आप विराजें ॥
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं ।तब ही मनवांछित फल पावैं॥
दर्शन करत पाप कटि जाते। कोटि भक्त गण नित्य नहाते ॥
जो नर तुमको नित ही ध्यावै। वह नर रुद्र लोक को जावैं ॥
मगरमच्छ तुम में सुख पावैं। अन्तिम समय परमपद पावैं॥
मस्तक मुकुट सदा ही साजैं। पांव पैंजनी नित हीराजें ॥
कल-कल ध्वनि करती हो माता। पाप ताप हरती हो माता॥
पूरब से पश्चिम की ओरा । बहतीं माता नाचत मोरा ॥
शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं। सूत आदि तुम्हरौ यश गावैं॥
शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं। सकल देव गण तुमको ध्यावैं॥
कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे । ये सब कहलाते दुःख हारे ॥
मनोकामना पूरण करती । सर्व दुःख माँ नित ही हरतीं ॥
कनखल में गंगा की महिमा। कुरुक्षेत्र में सरसुती महिमा ॥
पर नर्मदा ग्राम जंगल में । नित रहती माता मंगल में॥
एक बार करके असनाना। तरत पीढ़ी है नर नाना ॥
मेकल कन्या तुम ही रेवा । तुम्हरी भजन करें नित देवा ॥
जटा शंकरी नाम तुम्हारा । तुमने कोटि जनों को तारा॥
समोद्भवा नर्मदा तुम हो। पाप मोचनी रेवा तुम हो ॥
तुम महिमा कहि नहिं जाई । करत न बनती मातु बड़ाई॥
जल प्रताप तुममें अति माता। जो रमणीय तथा सुखदाता॥
चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी । महिमा अति अपार है तुम्हारी ॥
तुम में पड़ी अस्थि भी भारी। छुवत पाषाण होतवर वारी॥
यमुना में जो मनुज नहाता।सात दिनों में वह फल पाता॥
सरसुति तीन दिनों में देतीं। गंगा तुरत बाद ही देतीं।
पर रेवा का दर्शन करके। मानव फल पाता मन भर के॥
तुम्हरी महिमा है अति भारी। जिसको गाते हैं नर-नारी॥
जो नर तुम में नित्य नहाता । रुद्र लोक मे पूजा जाता ॥
जड़ी बूटियां तट पर राजें। मोहक दृश्य सदा ही साजें ॥
वायु सुगन्धित चलती तीरा। जो हरती नर तन की पीरा ॥
घाट-घाट की महिमा भारी । कवि भी गा नहिं सकते सारी ॥
नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा। और सहारा नहीं मम दूजा॥
हो प्रसन्न ऊपर मम माता । तुम ही मातु मोक्ष की दाता॥
जो मानव यह नित है पढ़ता। उसका मान सदा ही बढ़ता॥
जो शत बार इसे है गाता । वह विद्या धन दौलत पाता ॥
अगणित बार पढ़े जो कोई। पूरण मनोकामना होई॥
सबके उर में बसत नर्मदा।यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ॥
॥ दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनि के, जो करता है जाप । माता जी की कृपा से,दूर होत सन्ताप॥