पन्द्रहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

पन्द्रहवाँ अध्याय माघ महात्म्य राजा कार्तवीर्य बोले-हे भगवन् आपने जो कहा है कि एक माघ स्नान से विकुण्डल पाप रहित हुआ और दूसरे माघ स्नान से स्वर्ग पहुँचा, स्वर्ग कैसे गया? कृपया मुझ से कहिये । दत्तात्रेय जी बोले- हे राजन् । जल को नारापण कहा जाता है, क्योंकि वह स्वभाव से निर्मल, पवित्र सफेद, … Read more

चौदहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

चौदहवाँ अध्याय माघ महात्म्य विकुण्डल बोला- हे सौम्य! आपने जो धर्म ज्ञान दिया है उसे सुनकर मैं बड़ा प्रसन्न हूँ जिस प्रकार साधु के वचन पाप को नष्ट करने वाले होते हैं, उसी प्रकार आप के इस उपदेश से मेरे मन का अज्ञान नष्ट हो गया है। जिस तरह चन्द्रमा अमृत वर्षा करता है, उसी … Read more

तेरहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

तेरहवाँ अध्याय माघ महात्म्य यमदूत बोला- एकादशी व्रत समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है। इस व्रत के करने से सारे पाप नष्ट होते हैं। सहस्त्रों अश्वमेध, राजसूर्य यज्ञ भी एकादशी व्रत के समान फल नहीं दे पाते । समस्त इन्द्रियां द्वारा किए गये पाप इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत के समान फल … Read more

बारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

बारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य यमदूत बोला- जो प्राणी मोक्ष की कामना करते हैं, उन्हें शालिग्राम का पूजन करना चाहिये। इस स्वरूप में विष्णु पूजन समस्त पापों को नष्ट करने वाला है। शालिग्राम पूजन करने से प्राणी को प्रतिदिन दस हजार राज सूर्य यज्ञों का फल प्राप्त होता है । शालिग्राम भगवान विष्णु का सुन्दर स्वरूप … Read more

ग्यारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

ग्यारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य यमदूत ने कहा- हे वैश्य पुत्र! धर्मराज ने जिस गूढ़ रहस्य को मुझे स्वयं बताया है, उसे ध्यान देकर सुनो। महात्मा पुरुषों के निकट यम के दूत भूलकर भी नहीं जाते हैं। जो विष्णु भगवान की आराधना करते हैं, यमदूत उनके पास जाने का साहस नहीं कर सकते । यमुना जी … Read more

दसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

दसवाँ अध्याय माघ महात्म्य यमदूत बोले बहुत से पाप करने वाला भी एक बार गंगा स्नान से शुद्ध हो जाता है। गंगा जल भगवान विष्णु के चरणोंदक से भी अधिक पवित्र है, इसे शिवजी ने मस्तक पर धारण किया है। गंगाजल के समान कोई जल पवित्र नहीं है। गंगा नाम के उच्चारण मात्र से ही … Read more

नवाँ अध्याय माघ महात्म्य

नवाँ अध्याय माघ महात्म्य यमदूत बोला- हे वैश्य! दोपहर के समय मूर्ख, पंडित, विद्वान, पापी कोई भी अतिथि यदि घर आ जाए तो उसे अन्न, जल देने वाला चिरकाल तक स्वर्ग का उपभोग करता है । यदि गृहस्थ के घर कोई दुःखी आ जाये तो उनको तृप्त करने से महान फल प्राप्त होता है। अतिथि … Read more

आठवाँ अध्याय माघ महात्म्य

आठवाँ अध्याय माघ महात्म्य यमदूत ने कहा- हे साधो! जिसके मन में दया होती है, वह समस्त तीर्थ स्नान का फल पाता है । जो शास्त्रों के नियमों का पालन करता है, वे सद्गति पाते हैं। जो चारों आश्रमों का नियमानुसार पालन करते हैं, वे ब्रह्मलोक प्राप्त करते हैं, यज्ञ, तप आदि करने वाले अनेक … Read more

सातवाँ अध्याय माघ महात्म्य

सातवाँ अध्याय माघ महात्म्य दत्तात्रेय जी बोले- हे राजन्! दूत के साथ स्वर्ग जाते हुए विकुंडल ने पूछा- हे धर्मराज! मेरा संशय दूर करने के लिए यह बताओ कि हम दोनों भाईयों को इस प्रकार अलग-अलग क्यों फल मिला है। हम एक ही कुल में पैदा हुए एक ही साथ रहे, एक ही सा जीवन … Read more