नवरात्रि

नवरात्रि

नवरात्रि 2023 दिनांक, दुर्गा पूजा मुहूर्त एवं विशेषताएं

Table of Contents

चैत्र, शरद व गुप्त नवरात्रि की तारीखें

चैत्र नवरात्रि

बुधवार ,22 मार्च 2023 – शुक्रवार , 31 मार्च 2023

शरद नवरात्रि

रविवार, 15 अक्टूबर 2023 – मंगलवार , 24 अक्तूबर 2023

पौष गुप्त नवरात्रि

देवी शाकंभरी को समर्पित यह नौ-दिवसीय पर्व पौष के महीने में मनाया जाता है।

माघ गुप्त नवरात्रि

माघ में मनायी जाने वाले इस पर्व को शिशिर नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है।

नवरात्रि हिन्दूओ के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है

नवरात्रि पर्व हिन्दूओ के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस पावन अवसर पर माँ दुर्गा के रूपों की आराधना की जाती है। इसलिए यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। वेद-पुराणों में माँ दुर्गा को शक्तिरूप माना गया है जो असुरों से इस संसार की रक्षा करती हैं।

नवरात्रि व्रत कथा

यह चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा से लेकर राम नवमी तक मनाया जाता है। इन दिनों भगवती दुर्गा पूजा और कन्या पूजन का विधान है।

प्रतिपदा के दिन घट स्थापना एवं जौ बोने की क्रिया की जाती है। नौ दिन तक ब्राह्मण द्वारा या स्वयं देवी भगवती दुर्गा का पूजन करने का विधान है।

कथा : प्राचीन समय में सुरथ नाम के राजा थे। राजा प्रजा की रक्षा में उदासीन रहने लगे थे। परिणामस्वरूप पड़ोसी राजा ने उस पर चढ़ाई कर दी। सुरथ की सेना भी शत्रु से मिल गई थी। परिणामस्वरूप राजा सुरथ की हार हुई और वह जान बचा कर जंगल की तरफ भाग गया।

उसी वन में समाधि नामक एक वणिक अपनी स्त्री एवं संतान के दुर्व्यवहार के कारण निवास करता था। उसी वन में वणिक समाधि और राजा सुरथ की भेंट हुई। दोनों में परस्पर परिचय हुआ।

वे दोनों घूमते हुए महर्षि मेघा के आश्रम में पहुंचे। महर्षि मेघा ने उन दोनों के आने का कारण जानना चाहा तो वे दोनों बोले कि अपने ही सगे-सम्बन्धियों द्वारा अपमानित एवं तिरस्कृत होने पर भी हमारे हृदय में उनका मोह बना हुआ है, इसका क्या कारण है?

महर्षि मेघा ने उन्हें समझाया कि मन शक्ति के अधीन होता है और आदि शक्ति के विद्या और अविद्या दो रूप हैं। विद्या ज्ञान-स्वरूप है और अविद्या अज्ञान स्वरूपा। जो व्यक्ति अविद्या (अज्ञान) के आदिकरण रूप में उपासना करते हैं, उन्हें वे विद्या स्वरूपा प्राप्त हो कर मोक्ष प्रदान करती है।

इतना सुन राजा सुरथ ने प्रश्न किया – हे महर्षि!

देवी कौन है? उसका जन्म कैसे हुआ?

महर्षि बोले-आप जिस देवी के विषय में पूछ रहे हैं वह नित्य स्वरूपा और विश्व व्यापिनी है। उसके बारे में ध्यानपूर्वक सुनो। कल्पांत के समय विष्णु भगवान क्षीर सागर में अनन्त शैय्या पर शयन कर रहे थे, तब उनके दोनों कानों से मधु और कैटभ नामक दो दैत्य उत्पन्न हुए। वे दोनों

विष्णु की नाभि कमल से उत्पन्न ब्रह्मा जी को मारने दौड़े। ब्रह्मा जी ने उन दोनों राक्षसों को देख कर विष्णु जी की शरण में जाने की सोची। परन्तु विष्णु भगवान उस समय सो रहे थे।

तब उन्होंने विष्णु भगवान को जगाने हेतु उनके नयनों में निवास करने वाली योगनिद्रा की स्तुति की।

परिणामस्वरूप तमोगुण अधिष्ठात्री देवी विष्णु भगवान के नेत्र, नासिका, मुख तथा हृदय से निकल कर ब्रह्मा के सामने उपस्थित हो गई। योगनिद्रा के निकलते ही विष्णु भगवान उठकर बैठ गए। भगवान विष्णु और उन राक्षसों में पांच हजार वर्षों तक युद्ध चलता रहा। अन्त में मधु और कैटभ दोनों राक्षस मारे गए।

ऋषि बोले- अब ब्रह्मा जी की स्तुति से उत्पन्न महामाया देवी की वीरता तथा प्रभाव का वर्णन करता हूं, उसे ध्यानपूर्वक सुनो।

एक समय देवताओं के स्वामी इन्द्र तथा दैत्यों के स्वामी महिषासुर में सैंकड़ों वर्षों तक घनघोर संग्राम हुआ। इस युद्ध में देवराज इन्द्र की पराजय हुई और महिषासुर इन्द्रलोक का स्वामी बन बैठा।

अब देवतागण ब्रह्मा के नेतृत्व में भगवान विष्णु और भगवान शंकर की शरण में गए।

देवताओं की बातें सुनकर भगवान विष्णु और भगवान शंकर क्रोधित हो गए। भगवान विष्णु के मुख तथा ब्रह्मा, शिवजी तथा इन्द्र आदि के शरीर से एक तेज पुंज निकला जिससे समस्त दिशाएं जलने लगीं और अन्त में यही तेजपुंज एक देवी के रूप में परिवर्तित हो गया।

देवी ने सभी देवताओं से आयुद्ध एवं शक्ति प्राप्त करने के उपरांत उच्च स्वर में अट्टहास किया जिससे तीनों लोकों में हलचल मच गई। महिषासुर अपनी सेना लेकर इस सिंहनाद की ओर दौड़ा। उसने देखा

कि देवी के प्रभाव से तीनों लोक आलोकित हो रहे हैं। महिषासुर की हर चाल देवी के सामने असफल रही और वह देवी के हाथों मारा गया। आगे चलकर यही देवी शुम्भ और निशुम्भ राक्षसों का वध करने के लिए गौरी देवी के रूप में अवतरित हुईं।

इन उपरोक्त व्याख्यानों को सुनाकर मेघा ऋषि ने राजा सुरथ तथा वणिक से देवी स्तवन की विधिवत व्याख्या की।

राजा और वणिक नदी पर जाकर देवी की तपस्या करने लगे। तीन वर्ष घोर तपस्या करने के बाद देवी ने प्रकट हो कर उन्हें आशीर्वाद दिया। इससे वणिक संसार के मोह से मुक्त हो कर आत्मचिंतन में लग गया और राजा ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके अपना वैभव प्राप्त कर लिया।


नवरात्रि शब्द का यह दो शब्दों के योग से बना है जिसमें पहला शब्द ‘नव’ और दूसरा शब्द ‘रात्रि’ है जिसका अर्थ है नौ रातें। नवरात्रि पर्व मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों के अलावा गुजरात और पश्चिम बंगाल में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर माँ के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए नौ दिनों का उपवास रखते हैं।

इस दौरान शराब, मांस, प्याज, लहसुन आदि चीज़ों का परहेज़ किया जाता है।सनातन धर्म में नवरात्र पर्व का बड़ा महत्व है कि यह एक साल में पाँच बार मनाया जाता है। हालाँकि इनमें चैत्र और शरद के समय आने वाली नवरात्रि को ही व्यापक रूप से मनाया जाता है।

इस अवसर पर देश के कई हिस्सों में मेलों और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। माँ के भक्त भारत वर्ष में फैले माँ के शक्ति पीठों के दर्शन करने जाते हैं।

वहीं शेष तीन नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इनमें माघ गुप्त नवरात्रि, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि और पौष नवरात्रि शामिल हैं। इन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में सामान्य रूप से मनाया जाता है।

भारत सहित विश्व के कई देशों में नवरात्रि पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

भक्तजन घटस्थापना करके नौ दिनों तक माँ की आराधना करते हैं। भक्तों के द्वारा माँ का आशीर्वाद पाने के लिए भजन कीर्तन किया जाता है। नौ दिनों तक माँ की पूजा उनके अलग अलग रूपों में की जाती है।

माँ दुर्गा के नौ रूप कौन-कौन से हैं ?

1.  माँ शैलपुत्री – नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को होता है

2.  माँ ब्रह्मचारिणी – नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी के लिए है

3.  माँ चंद्रघण्टा – नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघण्टा की पूजा होती है

4.  माँ कूष्मांडा – नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्माण्डा की आराधना होती है

5.  माँ स्कंद माता – नवरात्रि का पाँचवां दिन माँ स्कंदमाता को समर्पित है

7.  माँ कालरात्रि – नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा करते हैं

दुर्गा स्तुति

Leave a Comment