गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा , गोबर-धन तथा अन्नकूट कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन नाम का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियाँ गोबर का भगवान बनाकर उसकी भली प्रकार से पूजा करती हैं। इस दिन गांव की पूजा का विशेष महत्व होता है। गाय को शास्त्रों में सबसे पवित्र माना गया है और लक्ष्मी का स्वरूप भी कहते है।
गौ माता अपने दूध से स्वस्थ रुपी धन सबको देती है और इनके बछड़े द्वारा खेतों में अनाज उगता है। हिंदू धर्म के लोग गाय को गौ माता कहकर पुकारते हैं।
संध्या समय अन्नादि का भोग लगाकर दीपदान करती हुई परिक्रमा करती हैं।
यह त्यौहार ब्रजवासियों के लिए बहुत खास होता है। द्वापर युग के समय से ही गोवर्धन भगवान की पूजा प्रारंभ हुई है। गोवर्धन भगवान को भगवान कृष्ण के रूप में पूजा जाता है।
इस दिन गाय बैल और पशुओं को स्नान कराकर उनकी फूल माला, तिलक और धूप से उनका पूजन किया जाता है और उनको मिठाई मेवा आदि खिलाकर बाद में उनकी आरती की जाती है और प्रदक्षिणा की जाती है।
गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं कथा परिक्रमा करते हैं और 56 तरह के उनको भोग लगाए जाते हैं।
तत्पश्चात उस गऊला बास (बाधा) कुदाकर उसके उपले थापती हैं और बाकी को खेत आदि में गिरा देती हैं इसी दिन नवीन अन्न का भोजन बनाकर भगवान का भोग लगाया जाता है अपने सब अतिथियों सहित भोजन कराया जाता हैं।
ब्रज वासियों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने सात दिन तक गोवर्धन को अपनी छोटी उंगली पर उठाया और सभी ब्रजवासी उसकी छाया में सात दिनों तक सुखपूर्वक रहे।
श्री कृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रज वासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो ।उसी दिन से अन्नकूट का उत्सव मनाने की भगवान श्री कृष्ण जी ने उनको आज्ञा दी । तभी से यह दिन पर्व के रूप में प्रचलित हो गया।
गोवर्धन भगवान की कथा
प्राचीन काल में दीपावली के दूसरे दिन भारत में और विशेषकर ब्रज मण्डल में इन्द्र की पूजा हुआ करती थी। श्री कृष्ण ने कहा कि कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं इसलिए हमें गऊ के वंश की उन्नति के लिए पर्वत वृक्षों की पूजा करते हुए न केवल उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए अपितु पर्वतों और भूमि पर घास-पौधे लगाकर हमें वन महोत्सव भी मनाना चाहिए।
इस के सिवा हमें सदैव गोबर को ईश्वर के रूप में पूजा करते हुए उसे कदापि नहीं जलाना चाहिए। इसके सिवा खेतों में डालकर उस पर हल चलातें हुए अन्नौषधि उत्पन्न करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ही हमारे सहित देश की उन्नति होगी।
भगवान कृष्ण के ऐसे उपदेश देने के पश्चात लोगों ने ज्यों ही पर्वत वन और गोबर की पूजा आरंभ की, त्यों ही इन्द्र ने कुपित होकर सात दिन की अखिल झड़ी लगा दी परंतु श्रीकृष्ण ने गोर्वधन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा कर ब्रज को बचा लिया और इन्द को लज्जित होने के पश्चात उनसे क्षमा याचना करनी पड़ी।