तीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य

तीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- आप से मैंने जो कुछ सावन महीने का माहात्म्य कहा, वह सौ सालों में भी उस मास का वर्णन नहीं हो सकता। इस मेरी प्रिया सती ने दक्षप्रजापति के यज्ञ में अपने देह का होम कर, हिमालय की पुत्री हो इसी सावन महीने का सेवन किया। जिसके द्वारा … Read more

उन्तीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य

उन्तीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- हे सनत्कुमार! अब कहे हुए व्रत के कृत्यों को कहूँगा। किस समय क्या करे? हे महामुने! उसे सुनें। सावन महीने की तिथि किस समय की लेनी चाहिए? किस समय क्या विधान है? उस काल में किसी का समय कहा है, नक्त व्रत का, उस व्रत कर्म में काल … Read more

अट्ठाईसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य

अट्ठाईसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- इसके बाद अगस्त्य विधि को कहूँगा । हे वैधात्र ! जिसके करने मात्र से मनुष्य सब इच्छाओं को प्राप्त कर लेता है, अगस्त्य सूर्यदय से पहले ही समय का निश्चय करे। सात रात उदय हो जाने में अवशिष्ट हो तो पहले सात रात पूर्व से प्रतिदिन अर्घ्य दे … Read more

सत्ताईसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas

सत्ताईसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर कहा – अनन्तर सावन महीने में कर्क तथा सिंह संक्रान्तिजन्य जो कुछ कार्य होते हैं, उसे भी मैं आपसे कहता हूँ। कर्क- संक्राति से सिंह की संक्रांति तक सब नदियाँ रसस्वला हो जाती है। उस काल में नदियों में स्नान न करें। समुद्र में गिरने वाली नदियों में स्नान करने … Read more

छब्बीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas

छब्बीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- सावन महीने की अमावस्या के दिन जो करना चाहिये वह प्रसंगवश जो कुछ याद हो गया है, उसे मैं आपसे कहूँगा। पहले महाबली पराक्रमी, संसारविध्वंसक देवतोच्छेदन कारी दुष्ट दैत्यों के साथ रमणीय शुभ वृषभ पर आरूढ़ हो बहुत बार संग्राम किया। हर महाबली, पराक्रमी वृषभ ने मुझे युद्ध … Read more

पच्चीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas

पच्चीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- हे मुनिश्रेष्ठ! सावन महीने की अमावस्या के दिन सब सम्पत्ति प्रदायक ‘पिठोर व्रत’ उत्तम होता है। सब सर्वाधिष्ठान होने से घर को ‘पीठ’ कहा जाता है। उसमें पूजन उपयोगी वस्तु मात्र समुदाय को ‘आर’ कहते हैं। अतः हे मुनीश्वर ! इसका नाम ‘पिठोरव्रत’ हुआ। मैं आपसे इस व्रत … Read more

चौबीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas

चौबीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- हे ब्रह्मपुत्र ! पूर्वकल्प में दैत्य के भार से अति दुःखी, विह्वल, अति दीन हो पृथ्वी ब्रह्मा की शरण में गई। उसके मुख से कथा सुनकर देवगणों के सहित ब्रह्मा ने क्षीरसागर में बहुत स्तुति द्वारा हरि को प्रसन्न किया । ब्रह्मा के मुख से यह सब सुनकर … Read more

तेइसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas

तेइसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- सावन महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी के रोज वृष के चन्द्रमा की आधी रात के समय इस योग के आने से देवकी ने वसुदेव कृष्ण को उत्पन्न किया। यों सिंहराशि के सूर्य आने पर महोत्सव करे। पहले सप्तमी के रोज दन्तधावन कर अल्प भोजन करें। रात में जितेन्द्रय … Read more

बाईसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas

बाईसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- हे मुनिसत्तम! सावन शुक्ल पक्ष चतुर्थी के रोज सब काम फलप्रद, संकट हरण होते हैं। हे देव! किस विधि से व्रत तथा पूजा कर? कब उद्यापन करें? यह सब मुझे सविस्तार कहें। ईश्वर ने कहा- चतुर्थी के रोज सुबह उठकर दन्तधावन आदि क्रिया को समाप्त कर, पुण्यदाता शुभ … Read more

इक्कीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas

इक्कीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- हे सनत्कुमार! श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के रोज वेदोत्सर्जन उपाकर्म होता है या पौष मास की पूर्णिमा तिथि उत्सर्जन की कही गई है। उत्सर्जन में पौष मास या माघ मास या प्रतिपदा तिथि या रोहिणी नक्षत्र कहा गया है। दूसरा समय करना उत्तम कहा गया है। अतः श्रावण मास … Read more