दसवां अध्याय
दसवां अध्याय – हर प्रकार की मनोकामना के लिए दसवां अध्याय दोहाः ऋषिराज कहने लगे- मारा गया निशुम्भ क्रोध भरा अभिमान ,से बोला भाई शुम्भ। अरी चतुर दुर्गा तुझे लाज जरा न आए। करती है अभिमान तू बल औरों का पाए। जगदाती बोली तभी दुष्ट तेरा अभिमान ।मेरी शक्ति को भला सके कहां पहचान। मेरा … Read more