shaligram ji ki aarti | श्री शालिग्राम की आरती
शालिग्राम सुनो विनती मोरी यह वरदान दयाकर पाऊँ ।
प्रात समय उठि मज्जन करके प्रेम सहित स्नान कराऊँ ।
चन्दन धूप दीप तुलसीदल वरण-वरण के पुष्प चढ़ाऊँ ॥१॥
तुम्हरे सामने नृत्य करूं नित प्रभु घंटा शंख मृदंग बजाऊं।
चरण धोय चरणामृत लेकर कुटुम्ब सहित बैकुण्ठ सिधाऊं ॥२॥
जो कुछ रूखा-सूखा घर में भोग लगाकर भोजन पाऊँ।
मन बच कर्म से पाप किये जो परिक्रमा के साथ बहाऊँ ॥ ३ ॥
ऐसी कृपा करो मुझ पर जम के द्वारे जाने न पाऊँ ।
माधोदास की विनय यही है हरि दासन को दास कहाऊँ ॥४॥