श्रावण मास तीसरा अध्याय
सनत्कुमार जी ने कहा- हे भगवान! आपने व्रत समुदाय का उद्देश्य कहा! हे स्वामिन! इससे तृप्ति नहीं हुई, अतः आप सविस्तार कहें। सुरेश्वर जिसे सुन मैं कृत-कृत्य हो जाऊं। ईश्वर ने सनत्कुमार से कहा- हे योगीश! जो विद्वान श्रावण मास ‘नक्तव्रत’ कर बिताता है।
वह बारह महीनों में नक्तव्रत का फल भोगता है। दिन की समाप्ति के तीन घटी पहले रात्रि भोजन को ‘नक्तव्रत’ कहा जाता है। उक्त भोजन में सूर्यास्त के पहले तीन घडी समय का त्याग कर अवशिष्ट समय लिया है। सूर्यास्त के तीन घटी तक ‘सन्ध्याकाल’ कहा है।
आहार, मैथुन निद्रा चौथा स्वाध्याय इन कार्यों को सायंकाल न करे। गृहस्थ एवं संन्यासी के भेद से नक्त भोजन की दो प्रकार की अवस्था मुझसे सुनों- जब सूर्यनारायण के मन्द होने पर अपने देह की छाया द्विगुणित हो, उस समय संन्यासी के लिए नक्तभोजन व्रत कहा है।
रात्रि में भोजन को नक्तभोजन नहीं कहा गया है। पण्डितों ने गृहस्थ के लिए नक्षत्र के उदय लेने पर रात्रि भोजन को ‘नक्तभोजन व्रत’ कहा है। संन्यासियों के लिए रात्रि काल में निषिद्ध हो जाने से दिन के अष्टम भाग में भोजन का विधान है। गृहस्थी विधि द्वारा रात्रि में नक्त व्रत करें।
सन्यासी, विधवा तथा विधुर पुरुष सूर्यनारायण के अस्त होने के पहले भोजन करें। जो पुत्रहीन, आश्रमहीन, स्त्रीविहीन, विधुर यदि है तो वह रात्रि में भोजन करें।
श्रावण मास के आ जाने पर प्रतिपदा तिथि में प्रातःकाल, संकल्प करें कि मैं श्रावण में एक महीने तक ब्रह्मचर्य में रह प्रतिदिन सुबह स्नान करूंगा नक्त व्रत, रात्रि शयन तथा प्राणियों पर दया करूंगा।
हे दैव! यदि इस व्रतारम्भ होने पर समाप्ति व्रत पूर्ति के पूर्व ही मर गया तो हे जगत्पते! उस समय आपके प्रसाद से व्रत पूर्ण हो, यों बुद्धिमान मासारम्भ में संकल्प कर नक्त व्रत करें।
हे मुने! अब उत्तम लक्ष पूजा विधि सुनों। लक्ष्मी की इच्छा वाला मनुष्य बिल्वपत्रों से शान्ति की कामना वाला भी दुर्वाओं से तथा आयुष की इच्छा वाला चक्ष्मा पुष्पों से भगवान हरि का अर्जन करें। विद्या की इच्छा वाला ‘मल्लिका’ तथा चमेली पुष्पों से अर्चन करें। तुलसीदलों से शिव और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। पुत्र की कामना वाला मनुष्य कटेरी पुष्पों से पूजन करें।
दुःस्वप्न नाश के लिए उत्तम धान्य से अर्चन करे। देव के सम्मुख रंगवली, पदम, स्वस्तिक और चक्र आदि बनाकर विभु का अर्चन करे! यों सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि के लिए सब पुष्पों से अर्चन करे।
यदि लक्षपूजा करता है तो शंकर प्रसन्न हो जाते हैं, अन्त में उद्यापान करे। मण्डप बनाकर मण्डप के तीसरे भाग में वेदी बनावे। पुण्याहवाचन कर आचार्य वरण करें। मण्डप में प्रवेश कर रात में गाना-बाजा शब्द से और वेदपाठ से जागरण करें।
वेदी पर उत्तम ‘चतुर्लिंगड़तोभद्र’ बनाकर उसके मध्य भाग में चावल से सुन्दर कैलाश बनावे, उस वेदी, जगह पर खूब चमकीला तांबे का कलश स्थापना कर उसमें अच्चपल्लव तथा सूक्ष्म वस्त्र को रक्खे। उस पर पार्वती पति की सुवर्ण प्रतिमा को पंचामृत स्नान पूर्वक स्थापित कर अर्चन करे।
नैवेद्य युक्त धूप, दीप, गीत, वाद्य, नृत्य, तथा वेद शास्त्र, पुराण द्वारा रात में जागे। सुवह स्नान करे। पवित्र शास्त्रोक्त विधान से वेदी बनावे। तिल घृत
पायस से मूलमंत्र गायत्री, शिव सहस्र नाम से हवन करें जिस मन्त्र से पूजन किया उसी मंत्र से हवन करे। शर्करा-घृत युक्त चरु से हवन करें। फिर स्विष्टकृत हवन कर पूर्णाहुति करें। प्रातः वस्त्र, अलंकार, भूषण से आचार्य का अर्चन करे। ब्राह्मणों का पूजन कर दक्षिणा दे।
जिन मन्त्रों से उमापति की लक्ष-पूजा की है, उस-उस चीज का दान करे। सोने की प्रतिमा बनाकर शंभु का अर्चन करें। यदि एक महीने तक दीप जलाया हो तो उसे दान में दे। सम्पूर्ण इच्छाओं की सिद्धि के लिए सोने की, चांदी का दीया बनाकर गोघृत से संयुक्त कर दान दे।
देवता से क्षमा प्रार्थना कर ब्राह्मण से हवन करावे। हे मुने यो जो मेरा अर्जन करता है, मैं उस पर प्रसन्न हो जाता हूँ। यदि श्रावण मास में ये कार्य किये जायें तो अनन्त फल देने वाले होते हैं।
इस महीने में जो मौन व्रत ग्रहण करता है। वह श्रेष्ठ वक्ता हो जाता है। वह मौनव्रत दिन-रात या दिन का हो या भोजन के समय का हो । मौनव्रत में घण्टा तथा पुस्तक दान करे तो सब शास्त्रों की जानकारी कर लेता है।
वेद और वेदांग का पारगामी हो जाता है। मौनव्रत महात्म्य से बुद्धि में बृहस्पति के तुल्य हो जाता है। मौनव्रत करने वाले जीव का किसी से कलह नहीं होता क्योंकि मौनव्रत उत्तम है।