आठवाँ अध्याय माघ महात्म्य

आठवाँ अध्याय माघ महात्म्य

यमदूत ने कहा- हे साधो! जिसके मन में दया होती है, वह समस्त तीर्थ स्नान का फल पाता है । जो शास्त्रों के नियमों का पालन करता है, वे सद्गति पाते हैं। जो चारों आश्रमों का नियमानुसार पालन करते हैं, वे ब्रह्मलोक प्राप्त करते हैं, यज्ञ, तप आदि करने वाले अनेक सुख भोगते हैं ।

जो ब्राह्मण लोभ को त्यागकर वेद पाठ का प्रचार करता है वह हरि चरणों में स्थान पाते हैं। जो वीर शत्रु से लोहा लेकर मारे जाते हैं, वे परमगति प्राप्त करते हैं। जो अनाथ, गौ, स्त्री, ब्राह्मण और शरणागत की रक्षा करते हैं, वह मोक्ष पाते हैं ।

जो अपाहिजों पर दया, वृद्ध, बालक, रोगी, निर्धन आदि की सहायता करते हैं, वे स्वर्ग प्राप्त करते हैं। आपत्ति के समय गौ और ब्राह्मण की रक्षा करने वालों की सद्गति होती है। जो प्राणी गौ ग्रास देकर भोजन करते हैं, कुएं तालाब आदि बनवाते हैं और सदैव जीवों पर दया करते हैं वे स्वर्ग पाते हैं, जलदान करने का महत्व सभी दानों से श्रेष्ठ है ।

जल दान करने से स्वर्ग के अधिकारी होते हैं ।हे श्रोता ! जो प्राणी नीम, पीपल, इमली कैथ, आँवले, आम आदि के वृक्ष लगवाता है, वह कभी नरक नहीं जाता है, चाहे वह निपुत्र ही क्यों न हो। उसकी सात पीढ़ियों तक का तर्पण हो जाता है।

मार्ग के किनारे छायादार और फूलों वाले वृक्ष लगाने वाला मोक्ष की प्राप्ति करता है। जो इन वृक्षों को काटता है वह नरक के कष्ट भोगता है। जो तुलसी के पौधे लगाते हैं, वे यम की ताड़ना से मुक्त रहते हैं । तुलसी के प्रभाव से यमदूत वहाँ नहीं जा सकते।

तुलसी के प्रभाव से पितृगण स्वर्ग को प्राप्त करते हैं ।हे वैश्य पुत्र ! नर्मदा दर्शन, गंगा स्नान, तुलसी स्पर्श इन तीनों का एक ही समान फल होता है। तुलसी की सेवा से प्राणी के सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। देवता भी तुलसी की पूजा करते हैं।

भगवान विष्णु के पूजन में जो तुलसी का महत्व है, वह मणि, सोना, मुक्ता और पुष्पद को कदापि प्राप्त नहीं होता है। तुलसी के एक पौधे लगाने का फल सहस्र आम के वृक्ष सौ पीपल के वृक्ष लगाने से भी अधिक है। ऐसा प्राणी ग्यारह हजार वर्ष तक स्वर्ग का उपभोग करता है।

जो तुलसी की मञ्जरी से प्रभु का पूजन करता है, मोक्ष पाता है । समस्त पवित्रतम नदियाँ तुलसी दल में निवास करती हैं। तुलसी दल से पूजन करने वाला विष्णु लोक को प्राप्त होता है। जो प्राणी तीनों समय शिव पूजन में तुलसी प्रयोग करते हैं, वे विष्णु लोक जाते हैं।

जो ‘ओम नमः शिवाय’ मन्त्र का जाप करते हुए शिवलिंग का पूजन करते हैं, वे नरक यातनाओंसे मुक्त रहते हैं, वे शिवलोक पाते हैं। जोशिव दर्शन करते हैं, वे शिष्य सुख भोगते हैं। तीनों त्रिलोक में शिव-पूजन के समान कोई पुण्य नहीं है। यदि शिव-भक्त विष्णु से द्वेष करता है, तो नरक पाता है।

शिव प्रसाद को स्पर्श करना तक निषेध है । जो अज्ञान अथवा लोभ के कारण शिव प्रसाद को ग्रहण करता है अथवा उसको अजीविका बनाता है, वह नरक पाता है । वे प्राणी जो शिव मन्दिर का निर्माण कराते हैं, भगवान शिव के लोक में रुद्रों के समान विचरते हैं।

ब्रह्मा, विष्णु और शिव के मन्दिरों का निर्माण कराने वाला दिव्य सुख प्राप्त करता है । जो मन्दिर गौशाला, मठ, धर्मशाला, कुटी आदि का निर्माण कराता है अथवा जीर्णोधार कराता है, स्वर्ग पाता है । जो यज्ञशाला, वेद मन्दिर, विद्यालय अथवा ब्राह्मणों के लिए गृह निर्माण कराता है या मरम्मत कराता है, वह नरकगामी नहीं होता ।

जो इन स्थानों को नष्ट करता है, लोभ में पड़कर बेच डालता है, उनको आजीविका का साधन बनाता है, वह इक्कीस बार महारौख नरक को भोगता है । गौ, ब्राह्मण, मठ मन्दिर आदि की आजीविका खाने वाला अपने परिवार सहित नरक में जाता है। मठ, मन्दिर का अन्न नहीं खाना चाहिये ।

यदि भूल से खा ले तो चन्द्रायण व्रत करें, यदि मठाधिकारियों का स्पर्श हो जावे, तो उसी समय वस्त्र सहित स्नान करें । देवताओं के धन को खाने से नरक प्राप्त होता है । मन्दिर में बगीचा लगाने वाला स्वर्ग पाता है। जो पितर, देवता और अतिथियों की सेवा करता है, ब्रह्मलोक को पाता है।

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