उन्तीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य

उन्तीसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य

ईश्वर ने कहा- हे सनत्कुमार! अब कहे हुए व्रत के कृत्यों को कहूँगा। किस समय क्या करे? हे महामुने! उसे सुनें। सावन महीने की तिथि किस समय की लेनी चाहिए? किस समय क्या विधान है?

उस काल में किसी का समय कहा है, नक्त व्रत का, उस व्रत कर्म में काल का प्रातःकाल, उस व्रत काल में उद्यापन का प्रधान रात में, भोजनाभाव दिन में कहा है।

असंभव में पंचांग से शुद्ध में अधिवासन करे तो दूसरे दिन विधि द्वारा होम करे। धारणा तथा पारणा के पास नहीं होती।

सावन शुक्ल प्रतिपदा के प्रति संकल्प करके उपवास करे। अन्य दिन भोजन, दूसरे दिन हविस्यान्न पारण में स्वीकार करे,

पारणा के दिन एकादशी हो तो तीन उपवास करे। रविवार व्रतार्चन का काल सुबह ही है। सोमवार को सायंकाल का समय प्रधान कहा है।

मंगल, बुध तथा गुरु का पूजा में मुख्य समय सुबह कहा है। शुक्र पूजा में सुबह तथा रात में जागरण करे। नृसिंह और शनि की पूजा शाम को करे।

शनि व्रत दान में मध्यान्ह मुख्य है। हनुमान की पूजा मध्यान्ह तथा अश्वत्य पूजा सुबह में होती है। हे वत्स! रोटक व्रत में प्रतिपदा तथा सोमवार सहित त्रिमुहू तोंत्तर स्वीकृत है, नहीं तो पहले की तिथि ब्राह्म है।

उदुम्बरी द्वितीया सायान्हव्यापिनी तृतीया युक्त है। दोनों दिन सायव्यापिनी हो तो पूर्ववेधित ले। स्वर्णगौरी में चतुर्थीयुक्ता तृतीया है। गणेश पूजा में तृतीया विद्व चतुर्थी है।

नागपूजा में षष्ठी युक्त पंचमी है। सूपौदन व्रत में सायव्यापिनी सप्तमी युक्त षष्ठी है। शीतला व्रत में मध्यान्ह व्यापिनी सप्तमी है।

देवी के पवित्रारोपण में रात्रियुता अष्टमी तिथि है। कुमारी में रात्रि व्यापिनी नवमी उत्तम है। आशा में रात्रि व्यापिनी दशमी है। है मुने! दशमी विद्वा एकादशी अग्राह्य है।

उसके वैध को यहाँ होता है। सूर्योदय समय में स्मार्तो के यहाँ दशमी वेध होता है, यह वेध निद्य ही है। अरुणोदय समय दशमी वेध वैष्णवो का अन्तिम प्रहर, आधा हिस्सा अरुणोदेय समय होता है।

इस रीति द्वारा द्वादशी पवित्रारोपण में कही गयी है। अनंगव्रत में रात्रि व्यापिनी त्रयोदशी है। द्वितीय प्रहर व्यापिनी ही जाने प्रशस्तर होती है। शिव पवित्रारोपण में चतुर्दशी रात्रिव्यापिनी है।

अर्थ रात व्यापिनी अधिक उत्तम है। उपाकर्म तथा उत्सर्ग में पूर्णिमा और श्रवण नक्षत्र ग्राह्या है। यदि अन्य दिन पूर्णिमा के तीन मुहूर्त है तो दूसरे दिन करे। नहीं तो ऋग्वेदि तैत्तिरीय शाखा वाले पहले दिन करें।

तैत्तिरीय शाखा वाले यजुर्वेदियों को अन्य दिन पूर्णिमा तीन मुहूर्त रहने पर भी उपाकर्म और उत्सर्ग दोनों पूर्व दिन करना चाहिए।

पूर्व दिन पूर्णिमा तथा श्रवण नक्षत्र एक मुहूर्तोत्तर सम्बन्ध होतो और अन्य दिन दो मुहूर्त के भीतर पूर्णिमा है। मंगल, बुध तथा गुरु की पूजा में समय सुबह कहा है।

शुक्र पूजा में सुबह तथा रात में जागरण करे। नृसिंह और शनि की पूजा शाम को करे। शनि व्रत दान में मध्यान्ह मुख्य है। हनुमान की पूजा मध्यान्ह तथा अश्वत्य पूजा सुबह में होती है।

हे वत्स! रोटक व्रत में प्रतिपदा तथा सोमवार सहित त्रिमुहू तोंत्तर स्वीकृत है, नहीं तो पहले की तिथि ब्राह्म है। उदुम्बरी द्वितीया सायान्हव्यापिनी तृतीया युक्त है। दोनों दिन सायव्यापिनी हो।

तो पूर्ववेधित ले। स्वर्णगौरी में चतुर्थीयुक्ता तृतीया है। गणेश पूजा में तृतीया विद्व चतुर्थी है | नागपूजा में षष्ठी युक्त पंचमी है। सूपौदन व्रत में सायव्यापिनी सप्तमी युक्त षष्ठी है।

शीतला व्रत में मध्यान्ह व्यापिनी सप्तमी है। देवी के पवित्रारोपण में रात्रियुता अष्टमी तिथि है। कुमारी में रात्रि व्यापिनी नवमी उत्तम है। आशा में रात्रि व्यापिनी दशमी है ।

है मुने! दशमी विद्वा एकादशी अग्राह्य है। उसके मुख्य वैध को यहाँ होता है। सूर्योदय समय में स्मार्तो के यहाँ दशमी वेध होता यह वेध निद्य ही है। अरुणोदय समय दशमी वेध वैष्णवो का अन्तिम प्रहर,

आधा हिस्सा अरुणोदेय समय होता है। इस रीति द्वारा द्वादशी पवित्रारोपण में कही गयी है। अनंगव्रत में रात्रि व्यापिनी त्रयोदशी है। द्वितीय प्रहर व्यापिनी ही जाने प्रशस्तर होती है।

शिव पवित्रारोपण में चतुर्दशी रात्रिव्यापिनी है। अर्थ रात व्यापिनी अधिक उत्तम है। उपाकर्म तथा उत्सर्ग में पूर्णिमा और श्रवण नक्षत्र ग्राह्या है। यदि अन्य दिन पूर्णिमा के तीन मुहूर्त है।

तो दूसरे दिन करे । नहीं तो ऋग्वेदि तैत्तिरीय शाखा वाले पहले दिन करें। तैत्तिरीय शाखा वाले यजुर्वेदियों को अन्य दिन पूर्णिमा तीन मुहूर्त रहने पर भी उपाकर्म और उत्सर्ग दोनों पूर्व दिन करना चाहिए।

पूर्व दिन पूर्णिमा तथा श्रवण नक्षत्र एक मुहूर्तोत्तर सम्बन्ध हो तो और अन्य दिन दो मुहूर्त के भीतर पूर्णिमा श्रवण नक्षत्र समाप्त हो तो पूर्व दिन करे।

अपरान्ह काल में सामवेदियों को हस्त नक्षत्र हो तो उपाकर्म उत्सर्ग करना चाहिए। दोनों दिन हस्त नक्षत्र अपरान्ह काल व्यापिनी हो तो पहले हो तो पहले दिन करे,

उपकर्मोंत्तर सुभादीप करे। जो समय श्रावणी कर्म में कहा है वही सर्वबल्यर्थ हैं। पर रात में स्व-स्व गृह्यसूत्र के अनुसार करे। श्रवणकर्म तथा सर्पबलि की सूर्यास्त समय – व्यापिनी पूर्णिमा उत्तम है।

हयग्रीवोत्सव में पूर्णिमा मध्यान्ह- व्यापिनी ले। रक्षाबन्धन कार्य में अपरान्ह- व्यापिनी स्वीकृत है। चतुर्थी चन्द्रोदय- व्यापिनी दोनों दिन हो या न हो तो पहले दिन करे ।

क्योंकि तृतीया के दिन चतुर्थी हो जाने से वह महत्यपुण्य फलप्रद होती है। हे वत्स! व्रती पहले दिन गणनाथ को प्रसन्न करने वाली चतुर्थी का व्रत करे। गणेश,

गौरी तथा बहुला को छोड़ कर दूसरे देवों की पूजा में पचमीविद्या ली गयी है। श्री कृष्ण पूजा में अर्द्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी तिथि है।

निर्णय के बारे में सर्वत्र छः तिथि मानी गई है। एक तो दोनों दिन पूर्ण व्याप्ति, दोनों दिन केवल अव्याप्ति, दोनों दिन अंश द्वारा सम व्याप्ति,

दोनों दिन अंश द्वारा विषय व्याप्ति तथा अन्य दिन अंश द्वारा व्याप्ति पूर्व दिन अंश से व्याप्ति, अन्य दिन अव्याप्ति इन ६ पक्षों में से तीन पक्षों में संदेह नहीं है। उसे कहता हूँ,

आप उसे सुनें। विषयव्याप्ति में अंश व्याप्ति श्रेष्ठ होती है। एक दिन जो पूर्ण तिथि है, वही अन्य दिन अपूर्णा कही जाती है। एक दिन अव्याप्ति, अन्य दिन अंश व्याप्ति हो तो श्रेष्ठ अंश व्याप्ति होती है।

अंश व्याप्ति जब हो तथा वह सम हो तो वही संशय हो जाता है तो भेद-वाक्य निर्णय करे। युगम वाक्य से कहीं-कहीं नक्षत्र योगबल से कहीं प्रधान योग से, कहीं पारण योग से,

जन्माष्टमी व्रत में संदेह हो जाने से। इन पक्षों में परा हो तो अष्टम्यन्त में पारण करे। यदि तीन प्रहर अष्टमी समाप्त हो या बाद तक रहती हो तो सुबह में पारण करे।
पिठोरा व्रत में मध्यान्ह-व्यापिनी अमावस्या ली गई है। दर्भों के संचय में संगठ समय है। सूर्य की कर्क संक्रान्ति में तीस घड़ी पहले पुण्य माना है।
सिंह संक्रान्ति में सोलह घड़ी पहले तथा सोलह घड़ी में पुण्य समय हो जाता है। कुछ ऋषि सिंह संक्रान्ति के पहले सोलह घड़ी पुण्य समय कहते हैं।
अगस्त्यार्ध्य समय व्रत विधि सहित ही कहा है। हे वत्स! मैंने यह कर्मों का काल निर्णय कहा है।
इस अध्याय को जो श्रवण करता है तथा जो इसे कहता है, वह श्रावण महीने के सब व्रतों का फल पा जाता है।

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