कलियुग से बचने के उपाय
कृते यद्धयायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखैः ।
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात् ॥
(श्रीमद् भागवतम् 12.3.52)
जो फल सत्ययुग में विष्णु का ध्यान करने से त्रेतायुग में यज्ञ करने से तथा द्वापर युग में भगवान् के चरणकमलों की सेवा करने से प्राप्त होता है, वही कलियुग में केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करके प्राप्त किया जा सकता है।
जैसा कि उपरोक्त श्लोक में वर्णित है- प्रत्येक युग में भगवद् भक्ति का प्रमुख साधन भिन्न होता है और जीवात्मा को मुक्ति प्रदान करने के लिए एक मंत्र भी उस युग में निर्धारित होता है, जिसे तारक मंत्र कहते हैं।
परन्तु कलियुग में यह तारक नाम मंत्र मुक्ति प्रदाता भी है, भक्ति का सर्वप्रमुख अंग भी है और संतप्त जीवात्मा को आनंद प्रदान करने वाला भी है।
इस संदर्भ में श्रील भक्तिविनोद ठाकुर श्रीकृष्ण संहिता में कहते हैं कि शास्त्रों के संकलनकर्ता ने युगविशेष के लोगों की शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक क्षमताओं के आधार पर जीवों के कल्याण के लिए तारक ब्रह्म नाम मंत्र का निर्धारण किया है और जैसे-जैसे युग बीतते रहते हैं, युगविशेष के मंत्र में रस की मात्रा का वर्धन होता रहता है।
सत्ययुग का ब्रह्म तारक मंत्र है –
नारायण-परा बेदानारायण-पराक्षरः ।
नारायण परा मुक्तिर्नारायण परा-गतिः
भगवान् नारायण समस्त वेदों, समस्त ज्ञान एवं मुक्ति के परम लक्ष्य हैं। भगवान् नारायण ही परम गति हैं।इस मंत्र में भगवान् को परम सत्य के रूप में निरूपित किया है और इस प्रकार सत्ययुग का भक्ति रस शुद्ध शांत रस तथा किंचित दास्य रस मिश्रित था।
त्रेतायुग का तारक ब्रह्म मंत्र इस प्रकार है
राम नारायणानंता मुकुन्द मधुसूदन ।
कृष्ण केशव कंसारे हरे वैकुंठ वामन ॥
[ मैं परम भगवान् की उनके नामों के द्वारा स्तुति करता हूँ।] राम, नारायण, अनंत, मुकुन्द, मधुसूदन, कृष्ण, केशव, कंसारि, हरि, वैकुंठ और वामन।
भगवान् के ये समस्त नाम भगवान् नारायण की क्षमताओं का आहवान करते हैं। मधुसूदन (मधु दैत्य के संहरता) और कंसारि (कंस के शत्रु) नाम द्वारा सख्य रस का आभास होता है क्योंकि इन नामों से भगवान् श्रीकृष्ण के मित्र ही उन्हें पुकारते हैं।
अतः त्रेता युग का प्रधान रस दास्य रस और थोड़ा सख्य रस है एवं उपासना का भाव ही प्रमुखता से उपस्थित है।
द्वापर युग में निम्न मंत्र से उपासना की जाती थी:
हरे मुरारे मधु-कैटभारे गोपाल गोविंद मुकुंद शौरे ।
यज्ञेश नारायण कृष्ण विष्णो निराश्रय माँ जगदीश रक्षः ॥
हे भगवान् हरि; मुर, मधु एवं कैटभ दैत्य के शत्रु, हे गोपाल, गोविंद, शौरि; हे मुक्ति प्रदाता मुकुन्द, हे नारायण, समस्त यज्ञों के देव; हे कृष्ण, हे विष्णु जगत के स्वामी, मेरा कोई आश्रय नहीं है, अतः कृपया मेरी रक्षा कीजिये।
इस मंत्र में उल्लिखित नाम भगवान् कृष्ण को इंगित करते हैं जो निराश्रयों के आश्रय हैं। इस मंत्र में शांत, दास्य, साख्य और वात्सल्य रस की प्रधानता है।
कलियुग का तारक ब्रह्म नाम स्वयं हरे कृष्ण महामंत्र है जो भगवान् श्रीकृष्ण से अभिन्न है:
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं कि कलियुग के उपरोक्त तारक ब्रह्म नाम मंत्र में किसी प्रकार के आश्रय अथवा मुक्ति प्रदान करने की प्रार्थना सन्निहित नहीं है। यह मंत्र माधुर्य रस से परिपूर्ण है और कलियुग में जीवात्मा के कल्याण की सर्वोत्तम औषधि है।
श्रीचैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि हरे कृष्ण महामंत्र भगवान् श्रीकृष्ण ही हैं। इसलिए इसका जप करने मात्र से हम स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के साथ साक्षात्कार कर सकते हैं और जो भी इस मंत्र का जप करता है उसकी मुक्ति निश्चित है।
कलियुग में मनुष्य के कल्याण के उपाय
श्रीमद् भागवत में श्रील शुकदेव गोस्वामी भी कलियुग में मनुष्य के कल्याण के उपाय का वर्णन करते हुए कहते हैं:
कलेदर्दोषनिधे राजन्नस्ति होको महान्गुणः ।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ।।
(श्रीमद् भागवतम् 12.3.51)
हे राजन्, यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है।
श्रीमद्भागवत के आरंभ में परीक्षित महाराज अपने गुरु श्रील शुकदेव गोस्वामी से पूछते हैं,
“कृपया मुझे बतायें कि मनुष्य को क्या सुनना, जपना, स्मरण करना तथा पूजना चाहिए और यह भी बतायें कि उसे क्या-क्या नहीं करना चाहिए। कृपा करके मुझे यह सब बतलाइए।”
श्रील शुकदेव गोस्वामी उत्तर देते हैं:
एतन्त्रिविद्यमानानामिच्छतामकुतो भयम् । योगिनां नृप निर्णीत हरेनमानुकीर्तनम् ।।
हे राजन्, महापुरुषों का अनुगमन करके भगवान् के पवित्र नाम का निरन्तर कीर्तन उन समस्त लोगों के लिए सफलता का निःसंशय तथा निर्भीक मार्ग है, जो समस्त भौतिक इच्छाओं से मुक्त हैं, अथवा जो समस्त भौतिक भोगों के इच्छुक हैं और उन लोगों के लिए भी, जो दिव्य ज्ञान के कारण आत्मतुष्ट हैं।
- श्रीशुकदेव गोस्वामी कहते हैं कि केवल भगवान् श्रीकृष्ण की सेवा ही कलियुग में सभी प्रकार की वृत्तियों वाले मनुष्यों के लिए कल्याणकारी है:
अकामः सर्व कामो वा मोक्ष काम उदार-धीः ।
तौव्रेण भक्ति-योगेन यर्जत पुरुषं परम् ॥
(श्रीमद् भागवतम् 23.10)
जिस व्यक्ति की बुद्धि व्यापक है, वह चाहे सकाम हो या निष्काम अथवा मुक्ति का इच्छुक हो, उसे चाहिए कि सभी प्रकार से परम पूर्ण भगवान् की पूजा करे।
कलियुग द्वारा पीड़ित लोगों के लिए भगवान् श्रीकृष्ण का सामूहिक नाम-कीर्तन ही कलि की पीड़ा से मुक्त होने का एकमात्र उपाय है।
श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि संसार के सभी राष्ट्रों की सरकारों को सर्वसम्मति से यह विधान (Law) बनाना चाहिए कि उनके सभी नागरिक अनिवार्य रूप से नगर संकीर्तन (भगवान् श्रीकृष्ण के पवित्र नामों-हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे का उच्च स्वर में कीर्तन) करें अथवा उसमें भाग लें।
वेदों के सार रूप ग्रंथराज श्रीमद् भागवत में प्रथम स्कन्ध के प्रथम अध्याय में पहले ही प्रश्न के रूप में नैमिषारण्य में एकत्रित ऋषि-मुनि श्रील सूत गोस्वामी से कलियुग की पतित जीवात्माओं, जो मंदमति एवं अल्पायु हैं, के विषय में चिंतित होकर जिज्ञासा करते हैं और पूछते हैं कि उन्होंने (श्रील सूत गोस्वामी ने)
उनके कल्याण के लिए क्या निर्णय किया है?
श्रील सूत गोस्वामी उत्तर देते हैं:
आपन्न: संसृतिम् घोरां यन्नाम विवशो गुणन् ।
ततः सद्यो विमुच्येत यविभेति स्वयं भयम् ।।
(श्रीमद् भागवतम् IL.14)
जन्म तथा मृत्यु के जाल में उलझे हुए जीव, यदि अनजाने में भी कृष्ण के पवित्र नाम का उच्चारण करते हैं, तो तुरन्त मुक्त हो जाते हैं, क्योंकि साक्षात् भय भी इससे (नाम से) भयभीत रहता है।
इस श्लोक के तात्पर्य में श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि वासुदेव अथवा पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् कृष्ण सभी के परम नियन्ता हैं। इस सृष्टि में कोई ऐसा नहीं है जो सर्वशक्तिमान के क्रोध से भयभीत न हो।
रावण, हिरण्यकशिपु, कंस जैसे विकट असुर तथा ऐसे ही अन्य शक्तिशाली जीव भगवान् द्वारा मार डाले गये। पराक्रमी वासुदेव ने अपनी सारी निजी शक्तियाँ अपने नाम को प्रदान कर रखी हैं। प्रत्येक वस्तु उनसे सम्बन्धित है और प्रत्येक वस्तु की अपनी पहचान उनमें ही निहित है।
यहाँ पर यह कहा गया है कि कृष्ण के नाम से साक्षात् भय भी भयभीत रहता है।
यह इस बात का सूचक है कि कृष्ण का नाम भगवान् कृष्ण से अभिन्न है। अतः कृष्ण का नाम स्वयं कृष्ण के ही समान शक्तिमान है। उनमें तनिक भी अन्तर नहीं है।
अतः बड़े से बड़े संकट की स्थिति में भी भगवान् श्रीकृष्ण के पवित्र नाम का लाभ उठाया जा सकता है। कृष्ण के दिव्य नाम को, चाहे अनजाने में या बाध्य होकर, उच्चारित करने पर जन्म तथा मृत्यु के झंझट से उबरा जा सकता है।
इसी प्रकार श्रील सूत गोस्वामी श्रीमद् भागवत के अंत में भी अपना निष्कर्ष देते हुए कहते हैं:
नामसङ्कीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम् ।
प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम् ।।
(श्रीमद् भागवतम् 12.13.23)
मैं उन भगवान् हरि को सादर नमस्कार करता हूँ जिनके पवित्र नामों का सामूहिक कीर्तन सारे पापों को नष्ट करता है और जिनको नमस्कार करने से सारे भौतिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।
ग्रंथराज श्रीमद् भागवत के आरंभ एवं अंत में श्रील सूत गोस्वामी घोर कलियुग से बचने का एकमात्र उपाय भगवान् श्रीकृष्ण के नामों का स्वयं एवं सामूहिक रूप से उच्च स्वर में कीर्तन करने को बताते हैं।
श्रील नारद मुनि भी श्रील व्यासदेव को दर्शन देकर उन्हें श्रीमद् भागवत के संकलन एवं उनमें भगवान् श्रीकृष्ण के नाम का माहात्म्य तथा उन नामों के उच्च स्वर में कीर्तन को कलियुग की पीड़ा का उपचार बताने के लिये प्रेरणा देते हैं।
कलियुग का महामंत्र
कलियुग के लिए कलि संतरण उपनिषद् में ब्रह्माजी उपदेश देते हैं कि हरे कृष्ण महामंत्र ही कलियुग का मंत्र है, जिससे कलि का कल्मष नाश होता है। अन्य कोई उपाय वेदों में दृश्य नहीं है।
द्वापारान्ते नारदा ब्रह्माणं जगाम कथं
भगवन् गाम् पर्यटन कलि संतरेयम् इति ।
स होवाच ब्रह्म साधु पृष्ठोऽस्मि सर्व श्रुति
रहस्य गोप्यं तत् श्रृण येन कलि संसार तरिष्यसि ।
भगवनत् आदिपुरुषस्य नारायणस्य
नामोच्चारण मात्रेण निधूतो कलिर्भवति ।।
(कलि संतरण उपनिषद् श्लोक 1)
द्वापर के अंत में नारद मुनि ब्रह्मा के पास जाकर पूछते हैं, हे भगवान्, इस पृथ्वी का भ्रमण करते हुए मैं कलियुग के बुरे प्रभाव से कैसे बच सकता हूँ?
ब्रह्मा ने इस प्रकार उत्तर दिया कि, “हे साधु, आपने उत्तम प्रश्न किया। समस्त वेदों का रहस्य सुनो, जिससे इस भौतिक संसार को पार कर सकते हैं। आदि पुरुष भगवान् कृष्ण (नारायण) के नाम उच्चारण मात्र से इस घोर कलियुग को हम पार कर सकते हैं।
नारद: पुन: पप्रच्छ तन्नाम किमिति । स होवाच हिरण्यगर्भः ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
इति षोडशक नाम्नां कलिकल्मष नाशनम् ।
नातः परतरोपाय सर्व वेदेषु दृश्यते
इति षोडश कलावृतस्य जविस्य आवरण विनाशनम् ।
ततः प्रकाशते परं ब्रह्म मेघापये रवि रश्मि मण्डलीवेति ॥
(कलि सतरण उपनिषद् श्लोक 2)
नारद मुनि ने पुनः पूछा, वो नाम कौन से हैं?
ब्रह्मा (हिरण्यगर्भ) ने इस तरह कहा, यह सोलह नाम (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) कलि के कल्मष (पाप) को नाश करते हैं।
इसके अतिरिक्त और कोई उपाय सर्व वेदों में दृश्य नहीं हैं। यह सोलह नाम कलियुग के जीवात्माओं को सब पापों से अनावृत करते हैं। जैसे सूर्य उदय होने पर बादल बिखर जाते हैं उसी तरह कलियुग कल्मष रूपी बादल नष्ट हो जाते हैं और परमब्रह्म श्रीकृष्ण प्रकाशमान होते हैं।
यहाँ कलिसंतरण उपनिषद में कलियुग के पीड़ित, तपित जीवात्माओं के लिए एकमात्र हरे कृष्ण महामंत्र को ही सब सुख,शांति और सद्गति के लिए ब्रह्मा जी द्वारा निर्धारित किया गया है।
इसी प्रकार श्रीचैतन्य चरितामृत में वर्णन आता है कि कलियुग में हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन और रटन के बिना और कोई धर्म नहीं है। हरे कृष्ण महामंत्र ही सभी मंत्रों का सार है, यह प्रत्येक शास्त्र का निष्कर्ष है:
नाम विनु कलि-काले नाहि आर धर्म ।
सर्व-मन्त्र-सार नाम, एइ शास्त्र-मर्म ॥
(श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला 7.74)
इस कलियुग में भगवन्नाम के कीर्तन से बढ़कर अन्य कोई धर्म नहीं है, क्योंकि यह समस्त वैदिक स्तोत्रों का सार है। यही सारे शास्त्रों का तात्पर्य है।
स्कन्द पुराण, चातुर्मास्य माहात्म्य में वर्णन आता है:
तथा चैवोत्तमं लोके तपः श्रीहरिकीर्तनम् ।
कलौ युगे विशेषेण विष्णुप्रीत्यै समाचरेत् ॥
“इस तरह इस जगत में जो सर्वाधिक पूर्ण तपस्या की जानी चाहिए, वह श्रीहरि के नाम का कीर्तन है। विशेष रूप से कलियुग में संकीर्तन द्वारा भगवान् विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है। “
बृहन्नारदीय पुराण में एक ही श्लोक में नौ बार अत्यंत बलपूर्वक यह कहा गया है कि कलियुग में केवल हरिनाम ही जीवात्मा की परम गति है:
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम एवं केवलम् ।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥
(बृदय पुराण 3.8-1267)
इस कलियुग में आध्यात्मिक उन्नति के लिए हरिनाम, हरिनाम और केवल हरिनाम के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है, अन्य कोई विकल्प नहीं है, अन्य कोई विकल्प नहीं है।
श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला श्लोक संख्या 17.20 में वर्णन आता है कि एक बार शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी ने भगवान् महाप्रभु को कच्चे चावल अर्पित किए, उन्हें खाने के बाद प्रसन्न होकर महाप्रभु उपरोक्त श्लोक की व्याख्या इस प्रकार करते हैं:
दाढूर्य लागि हरेर्नाम’-उक्ति तिन-वार ।
जड़ लोक बुझाइते पुनः ‘एव’-कार ।।
(श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला 17.23)
इस श्लोक में बल देने के लिए एव (निश्चय ही) शब्द को तीन बार दोहराया गया है और इसमें हरेर्नाम (भगवान् का पवित्र नाम) भी तीन बार दोहराया गया है, जिससे सामान्य लोग इसे समझ सकें।
अन्यथा ये माने, तार नाहिक निस्तार ।
नाहि, नाहि, नाहिए तिन ‘एव’ कार ॥
(श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला 17.25)
यह श्लोक स्पष्ट बतलाता है कि जो कोई अन्य मार्ग स्वीकार करता है, उसका कभी उद्धार नहीं हो सकता। इसीलिए तीन बार ‘अन्य कुछ नहीं, अन्य कुछ नहीं, अन्य कुछ नहीं’, कहा गया है, जो आत्म-साक्षात्कार (कृष्ण-प्रेम) की वास्तविक विधि पर बल देता है।
बृहन्नारदीय पुराण के उपरोक्त श्लोक में जड़ लोगों को भली-भांति समझाने के लिए तीन बार हरेर्नाम शब्द का और पुनः तीन बार नास्त्येव शब्द का प्रयोग किया गया है।
हरिनाम अर्थात् “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”
को ही कलियुग में जीव के परम साध्य (कृष्ण प्रेम) के लिए एकमात्र साधन बताया गया है। श्रीचैतन्य चरितामृत में बताया गया है कि कलियुग में भगवान् श्रीकृष्ण, नाम के रूप में अवतरित हुए हैं एवं उनके पवित्र नामों के कीर्तन से मनुष्य भगवद्धाम वापस लौट सकता है:
कलि-काले नाम-रूपे कृष्ण अवतार ।
नाम हैते हय सर्व जगलिस्तार ||
(श्रीतन्य परितामृत आदि लीला 17.32)
हरे कृष्ण महामंत्र भगवान् कृष्ण का अवतार
इस कलियुग में भगवान् का पवित्र नाम अर्थात् हरे कृष्ण महामंत्र भगवान् कृष्ण का अवतार है। केवल पवित्र नाम के कीर्तन से मनुष्य भगवान् की प्रत्यक्ष संगति कर सकता है। जो कोई भी ऐसा करता है, उसका निश्चित रूप से उद्धार हो जाता है।
कलिम सभावयन्त्याय गुणा सारभागितः ।
यत्र सङ्कीर्तनेनैव सर्वस्त्रार्थोऽभिलभ्यते ॥
जो लोग सचमुच ज्ञानी हैं, वे इस कलियुग के वास्तविक महत्व को समझ सकते हैं। ऐसे प्रबुद्ध लोग कलियुग की पूजा करते हैं, क्योंकि इस पतित युग में जीवन की सम्पूर्ण सिद्धि संकीर्तन सम्पन्न करके सरलता से प्राप्त की जा सकती है।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कलियुग के दुष्प्रभावों से बचने का एकमात्र उपाय है-हरिनाम संकीर्तन।
श्रील प्रभुपाद ने इसकी संस्तुति करते हुए कहा है कि इस वर्तमान युग में आत्म-साक्षात्कार की यह सबसे सरल और सार्वभौमिक विधि है। योग पद्धति की कोई और विधि कभी भी सफल नहीं होगी। यह केवल समय का अपव्यय होगा।
कृष्ण का जप
एक रविवारीय प्रीतिभोज में दिये हुए अपने प्रवचन में श्रील प्रभुपाद ने कहा कि, “यदि आप हरे कृष्ण का जप करते हैं तो आपका क्या नुकसान है? लेकिन लाभ बहुत बड़ा है।
आप जप कर सकते हैं। सरलतापूर्वक सड़क पर टहलते हुए आप जप कर सकते हैं। काम करते हुए आप जप कर सकते हैं। कार्यालय के समय भी आप जप सकते हैं। कोई लाइसेंस, कोई खर्च, कोई नुकसान नहीं है, लेकिन लाभ बहुत बड़ा है। यह हमारी विनती है।”
एक अन्य अवसर पर श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि, “इसलिए जप कीजिये और ध्वनि तरंगों के द्वारा, यह बलपूर्वक आपके मन में प्रवेश करेगा। अगर आप कृष्ण को नहीं भी चाहते हैं, तब भी कृष्ण आपके मन के भीतर प्रवेश करेंगे।
बलपूर्वक! (हँसते हैं) यह सबसे सरलतम विधि है। आपको प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। कृष्ण आ रहे हैं (हँसते हैं) (प्रभुपाद की हँसी)। यह बहुत सुंदर विधि है। इसलिए, इस काल के लिए, यह संस्तुत है। “
सारांश
सारांश यह है कि कलियुग दोषों का सागर है परंतु इसमें एक अच्छा गुण है, वह यह कि कलियुग में भगवान् श्रीकृष्ण जीवों के कल्याण के लिए अपने नाम
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे, हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” रूप में अवतरित हुए हैं और उनके नामों के रटन एवं कीर्तन से जीव अपना सर्वोच्च कल्याण अर्थात् श्रीकृष्ण प्रेम की प्राप्ति कर सकता है।
भगवान् श्रीकृष्ण के पवित्र नामों का उच्च स्वर में कीर्तन करने से चाहे कोई भौतिकतावादी, भक्त या आत्म-साक्षात्कार के पथ पर अग्रसर कोई अन्य योगी हो सभी को कष्टों व भय से मुक्ति मिलती है एवं परम आनंद (कृष्ण-प्रेम) की प्राप्ति होती है।
भगवान् के नामों का रटन ही आत्म-साक्षात्कार की मूल विधि है और इसी विधि के अनुशीलन से हमें परमात्मा श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष संगति भी प्राप्त हो सकती है। भगवान् के नामों से युक्त यह महामंत्र समस्त वैदिक मंत्रों का सार है तथा कलियुग के लिए संस्तुत एकमात्र धर्म है।
प्रश्नोत्तर
प्रश्नः कलियुग के कल्मष से बचने का सबसे सरल एवं सर्वोत्तम उपाय क्या है?
उत्तरः इस प्रश्न का उत्तर ब्रह्माजी कलिसंतरण उपनिषद में देते हैं कि, कलियुग के कल्मष से बचने का सबसे श्रेष्ठ उपाय हरे कृष्ण महामंत्र का जप या उच्च स्वर में कीर्तन है।
इसी प्रकार श्रीमद्भागवत में भी हरे कृष्ण महामंत्र के जप अथवा कीर्तन को ही कलियुग के पीड़ित मनुष्यों के लिए पीड़ा निवारण का उपाय बताया है:
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुणः ।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥
(श्रीमद् भागवतम् 12351)
हे राजन्, यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है।
प्रश्नः हरे कृष्ण महामंत्र ही समस्त वैदिक मंत्रों का सार क्यों है?
उत्तरः सभी मंत्र भगवान् श्रीकृष्ण के नाम से बनते हैं। उदाहरणस्वरूप ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । इस मंत्र में भगवान् श्रीकृष्ण का नाम वासुदेव, ही प्रधान है। जिस मंत्र में भगवान् श्रीकृष्ण का नाम नहीं है तो वह मंत्र ही नहीं है।
जैसे कि ‘सोऽहं’, ‘तत्त्वमसि’ और ‘अहं ब्रह्मास्मि’ आदि मंत्रों में भगवान् श्रीकृष्ण का नाम नहीं है। इसलिए इन मंत्रों से कोई लाभ नहीं है। इस प्रकार सभी मंत्रों का सार भगवान् श्रीकृष्ण का नाम ही है।
प्रश्नः हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने से भगवान् कृष्ण की प्रत्यक्ष संगति किस प्रकार प्राप्त हो सकती है?
उत्तर: भगवान् श्रीकृष्ण का नाम और भगवान् श्रीकृष्ण एक ही हैं अभिन्नत्वान्नामनामिनोः। अतः नाम की संगति स्वयं श्रीकृष्ण की ही संगति है।
प्रश्न: क्या हरे कृष्ण महामंत्र केवल भक्तों को ही जपना चाहिए या अन्य लोगों जैसे भौतिकतावादी, योगी, ज्ञानी आदि को भी जपना चाहिए?
उत्तर: हरे कृष्ण महामंत्र कोई सांप्रदायिक मंत्र नहीं अपितु सार्वभौमिक मंत्र है। यह मंत्र कलियुग में सभी के लिए है। सभी का अर्थ है भौतिकतावादी, योगी, ज्ञानी और अपना कल्याण चाहने वाले सभी मनुष्य ।