देवताओं की तरह शक्ति तत्व और देवी तत्व की उपासना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है।
इसके जो मंत्र हैं इतने सिद्ध मंत्र है कि एक-एक मंत्र का उसमें आप संपुट करके भी बहुत अच्छे-अच्छे काम कर सकते हैं आपके जीवन की कोई भी बाधा या कोई भी संकट है पैसे से लेकर नौकरी तक यहां तक की विवाह तक इनके लिये सप्तशती के मंत्र हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ संस्कृत और हिंदी दोनों भाषा में आता है।
नवरात्रों में दुर्गा सप्तशती का का पाठ बहुत जबरदस्त कृपा करता है दुर्गा सप्तशती के सभी मंत्र चमत्कारी हैं ।हर समस्या का समाधान दुर्गा सप्तशती के द्वारा आसानी से किया जा सकता है।
इस पाठ को करने से माँ भवानी बहुत जल्दी प्रसन्न होती है। यदि घर में किसी प्रकार की बड़ा है तो आप निरंतर सप्तशती का पाठ चलाते रहे।
दुर्गा सप्तशती के अंदर 13 अध्याय, 700 श्लोक और 6 अंग है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से क्या लाभ होता है
- यह पाठ सर्व बाधा से मुक्त करता है।
- आरोग्य की प्राप्ति होती है ।
- मोक्ष मिलता है।
- शक्ति प्राप्त होती है ।
- दुख दरिद्रता का नाश होता है ।
- ऐश्वर्या की प्राप्ति होती है ।
- स्वप्न आदि की कोई बड़ा है तो वह भी खत्म हो जाती है।
- बालकों को यदि कोई तकलीफ है वह भी खत्म हो ह जाती है
जीवन में किसी भी तरह का संकट है जैसे पैसे से लेकर नौकरी तक के लिए सप्तशती के सिद्ध मंत्र है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले मां भगवती से प्रार्थना करें कि –
हे माँ दुर्गे! आप महामाया एवं जगत की अधीश्वरी देवी हैं । भवानी! आप की मूर्ति कृपामयी और करूणामयी है। मैं संसार रूपी सागर में डूब रहा हूं, कृपया मेरा उद्धार कीजिए। ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव से सुपूजित होने वाली जगदम्बिके ! आप मुझ पर प्रसन्न हों। देवी! मैं आपको बारंबार नमस्कार करता हूं। मुझे अभिलषित वर देने की कृपा करें।
इस तरह प्रार्थना करने के उपरांत मन को एकाग्रचित्त करके दुर्गा सप्तशती का पाठ करें या सुनें। नौ दिनों तक सभी करें।
देवी में भक्ति रखने वाला पुरुष सुहागिनी स्त्रियों को और कुंवारी कन्याओं को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर अपने कार्य की सिद्धि होने के लिए उनसे प्रार्थना करें।
नियम प्रथम दिन की भांति करने चाहिएं। इस तरह नवाह व्रत करके कथा का उद्यापन करना चाहिए।
फल की इच्छा रखने वाले पुरुष महाष्टमीव्रत के समान इसका भी उद्यापन सुवर्ण, दूध देने वाली गाय, हाथी, घोड़े और पृथ्वी आदि का भी दान देना चाहिए।
इस दान का अक्षय फल होता है। दुर्गा सप्तशती के पाठ को रेशमी वस्त्र के वेष्टन में लपेटकर सुवर्ण के सिंहासन पर रखें और अष्टमी या नवमी के दिन कथावाचक की पूजा करके उन्हें दे दें। ऐसा करने से वह व्यक्ति इस लोक में भोगों को भोगकर अन्त में दुर्लभ मुक्ति पा लेता है।
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