दूसरा अध्याय – माघ महात्म्य

दूसरा अध्याय – माघ महात्म्य

सूत जी बोले- हे मुनिजनों! उस तपस्वी के उन वचनों को सुनकर राजा ने विनीत भाव से कहा- हे विप्र! मैं माघ मास के स्नान के फल को नहीं जानता हूँ। आप कृपा करके मुझसे विस्तारपूर्वक कहें। राजा के इन वचनों को…

सूत जी बोले- हे मुनिजनों! उस तपस्वी के उन वचनों को सुनकर राजा ने विनीत भाव से कहा- हे विप्र! मैं माघ मास के स्नान के फल को नहीं जानता हूँ। आप कृपा करके मुझसे विस्तारपूर्वक कहें।

राजा के इन वचनों को सुनकर तपस्वी ने कहा- हे राजन! अब सूर्योदय होने वाला है, अतः इस समय स्नान करने का शुभ मुहूर्त है । यदि कथा प्रसंग में समय नष्ट हो गया तो तुम्हारा यह एक शुभ समय हाथ से निकल जायेगा। इस समय मेरी बात मानकर तुम स्नान करो और घर लौटने पर अपने कुलगुरु वशिष्ठ से इस प्रसंग को पूछ लेना ।

इतना कह तपस्वी स्नान करने चले गये । राजा ने उनके वचनों को हृदय में धारण करके अपने साथियों सहित सरोवर में स्नान किया, प्रातः होने पर राजा अपने राज्य में पहुँचा। उसके मन में तपस्वी के शब्द गूंज रहे थे, अतः राजा दिलीप शीघ्र ही सुन्दरवस्त्रों और आभूषणों को पहनकर अपने सुयोग्य मंत्रियों को साथ लेकर महल से निकला, बन्दीजन राजा की स्तुति गाने लगे।

राजा योग्य उपहार लेकर गुरु वशिष्ठ के आश्रम की ओर चला, वहाँ पहुँचकर उसने श्रद्धापूर्वक गुरु को नमस्कार किया और साष्टांग प्रणाम किया ।वशिष्ठ जी ने राजा का यथोचित सत्कार करके आशीर्वाद दिया और कुशल पूछा। वशिष्ठ जी के सम्मुख बैठकर राजा ने आदर से अपना सिर झुकाकर बड़े ही विनीत स्वर में उनसे यह कहा – हे भगवन् ! आपकी कृपा और आशीर्वाद से मैं पूर्णतया प्रसन्न हूँ ।

आपके द्वारा मैंने आचार, दण्डनीति, राजधर्म एवं चारों वर्णों तथा चारों आश्रमों की समस्त क्रियायें दान – विधान, यज्ञ, व्रत उपासना आदि विधियों सहित भगवान विष्णु के पूजन की समस्त बातों को विधि-विधान से सुन लिया है। आज एक तपस्वी ने माघ महात्म्य एवं स्नान की बातें सुनाकर मेरे दिल में एक जिज्ञासाउत्पन्न कर दी है।

अतः हे नाथ! आप कृपाकरके मुझे इस माघ मास का महात्म्य सुनायें । वशिष्ठ जी ने प्रसन्न होकर कहा- हे राजन् ! आपकी भगवान के प्रति श्रद्धा को देखकर मेरा हृदय प्रसन्न है। तुमने समस्त जीवों को सुखी बनाने वाला प्रश्न किया है। माघ मास परम पवित्र मास है। जो मनुष्य गौ, पृथ्वी, तिल, वस्त्र, स्वर्ण, अन्न आदि अन्य उत्तम दानों को बिना किये ही स्वर्ग जाने की इच्छा करता है, वह इस माघ मास में स्नान करके स्वर्ग प्राप्त कर सकता है।

माघ मास में स्नान द्वारा प्राणी सीधा बैकुण्ठ को जाता है। जो व्यक्ति त्रिरात्रि तक कृच्छ चन्द्रायण एवं पराकव्रत के द्वारा अपना शरीर सुखाना नहीं चाहते परन्तु मन में स्वर्ग जाने की इच्छा रखते हैं, उन्हें माघ मास में स्नान करना चाहिए। बैसाख मास में होम और दान, कार्तिक मास में तप, पूजन होते हैं परन्तु माघ मास में स्नान करने से विशेष प्रभाव है।

जो प्राणी बिना यज्ञ, दान, होम किये यदि स्वर्ग जाने की इच्छा करे, तो उसे माघ मास में नदी, सरोवर आदि में सूर्योदय से पूर्व स्नान करना में चाहिए ।माघ स्नान का फल कामधेनु के समान है। विद्वान पुरुषों का कथन है कि माघ स्नान करने वाला प्राणी अनन्त फल प्राप्त करता है। वह राजा होता है ।

माघ स्नान चाहे सकाम हो, चाहें प्रजा के लिए अथवा हरि भगवान के लिए हो और चाहे किसी निमित्त हो, माघ स्नान करने वाला अनेकों फल को प्राप्त करता है। मकर संक्रान्ति में अन्न त्यागकर अदिति ने बारह वर्ष तक माघ स्नान किया, इससे त्रिलोकी ने उज्जवल करने वाले बारह पुत्र प्राप्त किये। माघ स्नान के प्रभाव से ही अरुन्धती, सुभगा स्वर्ग को गयी और शचि परम रूपवती होकर स्वर्ग में राज्य करती थी ।

अनेकों प्राणियों ने जिन्होंने माघ स्नान किया है और नियमों का पालन किया है, उसने सुन्दर अप्सराओं के नृत्य, गन्धर्वों के संगीत एवं वाद्य यन्त्रों से गूंजित वेदपाठी ब्राह्मणों की वेद ध्वनि से मुखरित परम पवित्र लोक में स्थान पाया है। जिन मनुष्यों ने माघ स्नान के साथ दान किया है और प्रिय वस्तु का त्याग किया है, वे भाग्यशाली हैं। माघ स्नान के प्रभाव से अच्छी बुद्धि प्राप्त होती है, पापों का नाश होता है ।

इसके स्नान करने वाला प्राणी सहज ही उन लोकों को प्राप्त करता है जो ज्ञानी, तपस्वी और भगवान की आराधना करने वाले प्राप्त करते हैं । दान के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करने वाले प्राणी पुण्य क्षीण होने पर पुनः लौट आते हैं परन्तु माघ स्नान करने वाले कभी नहीं लौटते, ये सदैव बैकुण्ठ वास करते हैं।

माघ स्नान करने वाले प्राणी यदि दूध देने वाली गौ का दान करता है तो वह उतने वर्ष स्वर्ग में निवास करता है जितने गौ के शरीर में रोम होते हैं। जो प्राणी माघ स्नान के पश्चात् गुड़, तिल का दान करता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। तिल का दान पापनाशक है और उसको दान करके प्राणी निर्मल हो जाता है।

जो मनुष्य माघ स्नान करके ब्राह्मणों को जूता ‘और कमण्डल दान देता व भोजन कराता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।हे राजन् ! जो पापी माघ स्नान के साथ दान करता है, उसे सद्गति प्राप्त होती है । पितरों के तर्पण से प्राणी बैकुण्ठ पाता है । दान के द्वारा प्राणी के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और स्वर्ग मिलता है । माघ स्नान करने वाले प्राणी को माघ मास में यथाशक्ति दान करना चाहिये। जैसे आकाश की शोभा सूर्य से, कुल की शोभा सन्तान से, उसी प्रकार तप की शोभा दान से है ।

यह पावन प्रसंग भृगु ऋषि ने मणि पर्वत पर विद्याधरों से कहा है। उनके अनुसार माघ मास में अधिक दान करना चाहिये ।

माघ मास महात्म्य – Magh Maas

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