नमन प्रार्थना – मां जगदम्बे तुम हो जगत जननी मैय्या
नमन प्रार्थना
मां जगदम्बे तुम हो जगत जननी मैय्या । ये मेरे भी कष्ट निवारो तो जानू ।
दुनियां की बिगड़ी बनाई है तू नें। ये मेरी भी बिगड़ी संवारो तो जानूं।
नाश किये दैत्य देवों के कारण। मेरे भी शत्रु यह टारो तो जानूं।
पार किये भव-सिन्धु से लाखों । मुझ को भी पार उतारो तो जानूं।
न बुद्धि न बल नाही भक्ति है मुझ में। यन्त्र यह मन्त्र व तन्त्र न आए।
पूत कपूत ‘चमन’ है बहुतेरें ।माता कुमाता कभी न कहलाए ।
मेरी ढीठाई पे ध्यान न दीजो। किस को कहूं अपना दुखड़ा सुनाके ।
अपने ही नाम की लाज रखो। वरदाती न खाली फिरूं दर पे आके।
पुत्र की परम स्नेही है माता । वेदों पुराणों ने समझाया गा कें।
आया शरण में तुम्हारी भवानी।बैठा तेरे दर पे धूनी रमा कें ।
तुम ही कहो, छोड़ माता के दर को। किस से कहूं अपनी विपता सुनायें।
कपूत ‘चमन’ है बहु तेरें । पूत माता कुमाता कभी कहलाए।
गोदी बिठाओ या चरणी लगाओं। मुझे शक्ति भक्ति का वरदान चाहिए।
पतित हूं तो क्या फिर भी बालक हूं तेरा। कपूत का भी माता को ध्यान चाहिए।
खाली फिरा न भण्डारे से कोई । तो करना हमारा भी कल्याण चाहिए।
जगत रुठे तो मुझ को चिन्ता नहीं है। तुझे मैय्या होना मेहरबान चाहिए।
तुम्हारे भरोसे पे ही जगत जननी । श्लोकों का यह अर्थ नादान गायें।
पूत कपूत ‘चमन’ हैं बहुतेरे माता कुमाता कभी न कहलाए।
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