बारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

बारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

यमदूत बोला- जो प्राणी मोक्ष की कामना करते हैं, उन्हें शालिग्राम का पूजन करना चाहिये। इस स्वरूप में विष्णु पूजन समस्त पापों को नष्ट करने वाला है। शालिग्राम पूजन करने से प्राणी को प्रतिदिन दस हजार राज सूर्य यज्ञों का फल प्राप्त होता है ।

शालिग्राम भगवान विष्णु का सुन्दर स्वरूप है, उसके पूजन से प्राणी के कठोरतम पाप भी नष्ट हो जाते हैं। भगवान विष्णु हमेशा शालिग्राम में विराजते हैं। इसी कारण यह सर्वविदित है कि जिसने शालिग्राम पूजन कर लिया, उसने समस्त पृथ्वी का दान कर दिया है ।

अब बारह शालिग्राम शिलाओं के पूजन का फल सुनो। स्वर्ण कमल द्वारा बारह कल्प तक द्वादश लिंगों का फल एक बार शालिग्राम के पूजन से प्राप्त होता है। जो सौ शालिग्राम शिलाओं का पूजन करता है, वह बैकुण्ठ भोगने के उपरांत चक्रवर्ती राजा होकर पृथ्वी के सुखों का सेवन करता है।

जो शालिग्राम की सदैव पूजा करता है, वह बैकुण्ठ पाता है । शालिग्राम पूजन मात्र से तीर्थ, दान, यज्ञ आदि कर्मों के फल स्वतः प्राप्त होते हैं परम नाटकीय भी शालिग्राम पूजन के प्रभाव से दिव्यलोक प्राप्त करता है।

शालिग्राम का अभिषेक करने से समस्त तीर्थों के स्थान का फल मिलता है। विधि विधान से पूजन करने वाला कलिकाल में भी विष्णुलोक प्राप्त करता है। सहस्रों शिवलिंग, दर्शन एवं पूजन स्तुति से प्राप्त होने वाला फल शालिग्राम के एक दिन के पूजन से ही प्राप्त हो जाता है।

जहाँ शालिग्राम निवास करते हैं, उसके पास समस्त देवता, महात्मा रहते हैं। जो शालिग्राम के सम्मुख श्राद्ध करते हैं, उनके पितर सौ कल्प तक स्वर्ग में रहते हैं । जो शालिग्राम शिला का जल पीते हैं, उन्हें अमृतपान का फल प्राप्त होता है, जहाँ शालिग्राम शिला विराजती है, वहाँ से तीन योजन तक की परिधि में किया गया धर्म कार्य सौ गुना फल देता है।

साधारण जल में माघ स्नान करने से गिर्राज का फल होता है। समुद्र में जाने वाली नदियों में स्नान करने से एक पक्ष का और सागर स्नान करने से एक मास का और गोदावरी, स्नान से छः मास का और गंगा स्नान से पूर्ण वर्ष का फल प्राप्त होता है, परन्तु शालिग्राम के जल से स्नान करने पर बारह माघ स्नान का फल प्राप्त होता है।

इस जल में सहस्त्रों तीर्थों के स्नान से भी अधिक फल प्रदायनी शक्ति होती है। इस जल को पीने वाला मोक्ष पाता है। यदि इसके समीप कोई कीड़ा तक मर जाये तो वह भी बैकुण्ठ जाता है। शालिग्राम शिला का दान करने वाला समस्त पृथ्वी दान का फल पाता है। जो शालिग्राम का क्रय विक्रय करता है और सहयोग करता है, वे सब महानरक पाते हैं।

इसका क्रय और विक्रय‌निषेध है। हे साधो! प्राणी को भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। उसके द्वारा समस्त पाप नष्ट होते हैं। हरि नाम स्मरण मात्र से समस्त व्याधाएं नष्ट होती हैं। उनकी शरण में जाने पर यमराज भी उस प्राणी का अनिष्ट नहीं कर सकता, वैष्णव को शिव निन्दा नहीं करनी चाहिये ।

Leave a Comment