बीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

बीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

नारदजी कहने लगे कि हे राजा पृथु ! जो कार्तिक कृष्णा अमावस्या को दीपावली करता है वह कभी दरिद्री नहीं होता ।

इस सम्बन्ध में एक इतिहास सुनो। थुरसैन देश में सत्य शर्मा नाम का एक अत्यन्त दरिद्री ब्राह्मण रहता था।

उसके मन में सदैव यही लालसा बनी रहती थी कि यदि मेरे पास धन हो तो मैं उसे दानादि धार्मिक कार्यों में व्यय करूं।

इसके लिए वह सदैव विष्णु का पूजन किया करता था। वह जो कुछ कमाता सब व्यय हो जाता।

तब इस दरिद्रता निवारण का उपाय पूछने पर एक विद्वान् ने उसे बताया कि तुम धन की प्राप्ति के लिये शिवजी की आराधना करो।

तब से वह शिवजी का उपासक बन गया। निदान एक वर्ष बीतने पर एक दिन शिवजी ब्राह्मण का रूप धारण कर उसके पास आए और बोले कि हे विप्र!

धन की प्राप्ति हेतु तुम राजा के पास जाकर उससे वरदान मांगो कि कार्तिक वदी अमावस्या को हमारे सिवाय और कोई अपने घर में दीपक न जलावे।

ब्राह्मण ने ऐसा ही किया और राजा ने उसकी बात स्वीकार कर ली।

निदान कार्तिक कृष्णा अमावस्या से एक दिन पूर्व अर्थात् चतुर्दशी को सत्य शर्मा ने राजा के पास जाकर उसको स्मरण कराया तो उसी समय राजा ने सारे शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि अमावस्या को कोई भी घर में दीपक न जलावे।

राजा की आज्ञानुसार अमावस्या की रात्रि को किसी ने भी दीपक नहीं जलाया।

जब रात्रि को लक्ष्मीजी नगर में आई तो देखा सारे नगर में अंधेरा है, मगर एक ब्राह्मण का घर खूब सज़ा हुआ है,

साथ ही दीपमाला से जगमग हो रहा है।- लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर जब उस घर में जाने लगीं तो ब्राह्मण, ने उनका रास्ता रोक लिया और कहने लगा, हे भद्रे !

तुम्हारा, पति अति कठोर है, और तुम अति चंचल हो। इस कारण तुम हमारे घर में प्रवेश मत करो।

तब लक्ष्मीजी कहने लगीं कि भगवान् के शयन के समय मैं आई हूं अतः निश्चय करके तुम्हारे घर में वास करूंगी।

यह सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि यदि तुम इस बात की शपथ लो कि तीन वंश पर्यन्त तुम हमारे घर से नहीं जाओगी,

और यहीं पर वास करोगी, तब हमारे घर में जा सकती हो। लक्ष्मीजी कहने लगीं कि यदि तुम विधिपूर्वक पूजन करोगे तो मैं निश्चय ही तुम्हारे घर में वास करूंगी।

यह सुनकर ब्राह्मण ने पूछा कि मैं किस विधि से तुम्हारा पूजन करूं?

तब लक्ष्मीजी कहने लगीं कि कार्तिक वदी अमावस्या को प्रातः काल स्नान आदि करके देवता और पितरों का पूजन करो।

दिन के तीसरे भाग में श्राद्ध करो। अनेक प्रकार के सुन्दर पकवानों से ब्राह्मणों को भोजन कराओ। प्रदोष समय में दीपमाला करो।

अपने घर में तुलसी के स्थान पर, ब्राह्मण के घर में, देव मन्दिर में, चौराहे, श्मशान तथा गोशाला में दीपक जलाओ।

जैसे पतिव्रता स्त्री पति के पहले जागती है, वैसे ही मैं भी भगवान् के जागने से बारह रोज पहले जागती हूं। इस दिन बाल, वृद्ध तथा रोगी के सिवाय और कोई

भोजन न करे। सायंकाल हमारा पूजन करे। सबसे पहले स्वस्तिवाचन द्वारा गणेशजी का पूजन करे, फिर कुबेर

का पूजन करके संकल्प करे, तत्पश्चात् लक्ष्मीजी का पूजन करे।

कैसा स्वरूप है लक्ष्मीजी का, कमल के आसन पर स्थित, कमल पुष्पों की माला धारण किये, कमल जैसे नत्रवाली,

गम्भीर नाभिवाली, स्तन के भार से नम्र, सुन्दर वस्त्रवाली, देवताओं के हाथियों द्वारा मणियुक्त घड़ों से स्नान करने वाली, कमल पुष्प हाथ में लिए ऐसी लक्ष्मी मेरे घर में निवास करें।

सर्वप्रथम लक्ष्मीजी को आसन दे, फिर पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, धूप, दीप, नैवेद्य, जल, तांबूल,

सुपारी इन सब वस्तुओं को अर्पण करके नमस्कार करे, दीप जलावे और समस्त रात्रि भगवान् का कीर्तन करे।

इस प्रकार कुबेर तथा लक्ष्मीजी का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन करावे, फिर बन्धु बान्धवों सहित आप भी भोजन करे।

सत्य शर्मा ने विधिवत् इसी प्रकार किया, जिससे उसके बहुत सा धन-धान्य हो गया।

इसके बाद उसने अनेक यज्ञ भी किए। फेर सत्य शर्मा विरक्त होकर मथुरा जी चला गया और वहीं र समाधिस्थ होकर विष्णुलोक को प्राप्त हुआ।

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