महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि 2023 की तारीख व मुहूर्त

2023 में महाशिवरात्रि व्रत कब है?

18 फरवरी , 2023

(शनिवार)

महाशिवरात्रि मुहूर्त

निशीथ काल पूजा मुहूर्त :24:09:26 से 25:00:20  तक

 

महाशिव रात्रि ॐ

महाशिव रात्रि का व्रत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है।

महाशिवरात्रि विधान :

त्रयोदशी को एक बार भोजन करके चतुर्दशी को दिन भर निराहार रहना पड़ता है। पत्र पुष्प तथा सुन्दर वस्त्रों से मंडप तैयार करके वेदी पर कलश की स्थापना करके गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति तथा नन्दी की चांदी की मूर्ति रखनी चाहिए।

कलश को जल से भर कर रोली, मोली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चन्दन, दूध, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेल पत्र आदि का प्रसाद शिव को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। रात को जागरण करके चार बार शिव आरती का विधान ज़रूरी है। दूसरे दिन प्रातः जौ, तिल, खीर तथा बेलपत्र का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन करवा कर व्रत का पारण करना चाहिए।

भगवान शंकर पर चढ़ाए गए नैवेद्य को खाना निषिद्ध है। जो इस . नैवेद्य को खा लेता है वह नरक को प्राप्त होता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं। यदि शिव की प्रतिमा के पास शालिग्राम की मूर्ति होगी तो नैवेद्य खाने पर कोई दोष नहीं लगता है।

महाशिवरात्रि व्रत कथा

एक गांव में एक शिकारी रहता था। वह शिकार करके अपने परिवार का पालन करता था। एक बार उस पर साहूकार का ऋण हो गया। ऋण न चुकाने पर सेठ ने उसे शिव मन्दिर में बन्दी बना लिया। उस दिन शिवरात्रि थी।

वह शिव सम्बन्धी बातें ध्यानपूर्वक देखता एवं सुनता रहा। संध्या होने पर सेठ ने उसे अपने पास बुलाया। शिकारी अगले दिन ऋण चुकाने का वायदा कर सेठ की कैद से छूट गया। जंगल में एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर शिकार करने के लिए मचान बनाने लगा।

उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था । पेड़ के पत्ते मचान बनाते समय शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार दिन भर भूखे रहने से शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।

एक पहर व्यतीत होने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने निकली। शिकारी ने उसे देख कर धनुषबाण उठा लिया। वह हिरणी कातर स्वर से बोली, “मैं गर्भवती हूं।

मेरा प्रसव काल समीप ही है। मैं बच्चे को जन्म दे कर शीघ्र ही तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगी शिकारी ने उसे छोड़ दिया। कुछ देर बाद एक दूसरी हिरणी उधर से निकली। शिकारी ने फिर धनुष पर बाण चढ़ाया।

हिरणी ने निवेदन किया, “हे व्याघ्र महोदय ! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने पति से मिलन करने पर शीघ्र तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊंगी।” शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया।

रात्रि के अन्तिम पहर में एक मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी ने शिकार हेतु धनुष पर बाण चढ़ाया।

वह तीर छोड़ने ही वाला था कि वह मृगी बोली, “मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ आऊं, तब मुझे मार डालना। मैं आपके बच्चों के नाम पर दया की भीख मांगती हूं।” शिकारी को इस पर भी दया आ गई और उसे छोड़ दिया।

पौं फटने को हुई तो एक तन्दरुस्त हिरन आता दिखाई दिया। शिकारी उसका शिकार करने के लिए उद्यत हो गया। हिरन बोला, “व्याघ्र महोदय ! यदि तुमने इससे पहले तीन मृगियों तथा उनके बच्चों को मार दिया हो तो मुझे भी मार दीजिए ताकि मुझे उनका वियोग न सहना पड़े।

मैं उन तीनों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवन दान दिया हो तो मुझ पर भी कुछ समय के लिए कृपा करें। मैं उनसे मिल कर तुम्हारे सामने आत्मसमर्पण कर दूंगा।”

मृग की बात सुन कर रात की सारी घटनाएं उसके दिमाग में घूम गईं। उसने मृग को सारे बातें बता दी। उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर

बेलपत्र चढ़ने से उसमें भगवद् भक्ति का जागरण हो गया। उसने मृग को भी छोड़ दिया।

देवता इस घटना को देख रहे थे। उन्होंने आकाश से उस पर पुष्प वर्षा की। शिकारी परिवार सहित मोक्ष को प्राप्त हुआ।

थोड़ी देर बाद हिरण सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। जंगली पशुओं की सत्यप्रियता, सात्विकता एवं सामुहिक प्रेम भावना को देख कर उसे बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उसने हिरण परिवार को मुक्त कर दिया।

भगवान शिव शंकर की अनुकम्पा से उसका हृदय मांगलिक भावों से भर गया। अपने अतीत के कर्मों को याद करके वह पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा ।

आनंद संदेश

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