शनि ग्रह (अंतर्मन का स्वामी)

शनि ग्रह बहुत क्रोधी स्वभाव का है। सूर्य का पुत्र होने पर भी शनि सूर्य से शत्रुता रखता है। यह भी सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शनि की सक्रियता का प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रभाव उपस्थित रहता है।

शनि का वार शनिवार तथा रंग काला है। यह ग्रह नपुंसक है भाव न स्त्री है न पुरुष। शनि को कालपुरुष का दुःख माना गया है।

मकर और कुंभ शनि की राशियां हैं। सप्तम स्थान में इसे बली माना जाता है। यह कर्म तथा व्यय भाव का कारक है। जातक के जीवन में यह ३५ से ४२ वर्ष की अवस्था में विशेष फल देता है तथापि इसकी गणना पापी ग्रहों में की जाती है।

व्रत का नियम

शनि का व्रत रखने वाला व्यक्ति दिन में एक ही बार भोजन ग्रहण करता है। भोजन में काले उड़द (मांह) और काले तिलों का प्रयोग किया जाता है।

तांबे के पैसे, तेल, काले उड़द (मांह) और काले वस्त्र पूजा में चढ़ाए जाते हैं। यह व्रत शनि ग्रहजनित कष्टों को दूर करने में सहायक होता है। इसी तरह यदि राहु-केतु की दृष्टि का कुप्रभाव पड़ रहा हो तो भी यह व्रत लाभकारी सिद्ध होता है।

यन्त्र एवं मन्त्र

शनि ग्रह

प्रस्तुत यंत्र को बाजू में बांधने, गले में पहनने तथा पूजन-दर्शन करने से शनि का प्रकोप शांत होता है। यंत्र किसी निर्दोष शनिवार के दिन पुष्य, अनुराधा अथवा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में, भोजपत्र पर अनार की कलम से और अष्टगंध से लिखें।

मंत्र : ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

इस मंत्र का २३ हज़ार जप करके नीले पुष्पों और चंदन से शनिदेव की पूजा करें। पूजा के समय तेल का दीपक जलते रहना चाहिए। यह मंत्र जातक के दुर्भाग्य और संकट को दूर करता

है।

दान व स्नान

शनिवार को सरसों का तेल, काला वस्त्र, काली भैंस, काली गाय, साबुत उड़द, काले पुष्प, लोहा, सुवर्ण, नीलम, कुलथी, कस्तूरी, धन रूप में दक्षिणा- इन वस्तुओं का दान करने और सौंफ, खिरैटी, लोध, खस, काले तिल, लोबान, सुरमा, गोंद एवं शतकुसुम मिश्रित जल से स्नान करने पर शनिकृत पीड़ा से मुक्ति प्राप्त होती है।

रत्न धारण

नीलम शनिवार को खरीदें। गंगाजल में धोकर, ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’, का जप करके पंचधातु या स्टील की मुद्रिका में, सूर्यास्त से एक या दो घंटे पूर्व धारण कर लें।

ध्यान रहे कि नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुखराज या मूंगा धारण नहीं करना है।

टोटके व उपाय

अनिष्ट शनि होने पर सरसों का तेल दान करें।

शिव उपासना करें। ‘शिवमहिम्न स्तोत्र’ का पाठ करें।

किसी बर्तन में तेल लेकर उसमें अपना प्रतिबिंब देखें और वह बर्तन तेल के साथ

दान करें। यदि बर्तन कांसे का हो तो शीघ्र फलदायी होता है।

● कुंडली में शुभ शनि को और शुभ बनाने के लिए लोहे का फर्नीचर, भोजन में काला नमक, काली मिर्च का प्रयोग करें। आंखों में काजल या सुरमा लगाएं।

o शनि की अनिष्टता साढ़सती के कष्ट कम करने के लिए भोजन में परोसे सभी पदार्थ थोड़े-थोड़े अलग निकाल कर कौए को खिलाएं। इसी प्रकार संतान प्राप्ति में शनि बाधक हो या गर्भपात हो जाता हो तो ऐसी स्त्री भोजन में परोसे सभी पदार्थ अलग रख कर काले कुत्ते को खिलाए।

● चतुर्थ स्थान में शनि हो तो ऐसे जातक रात्रि को दूध न पीएं, ऐसे में दूध जहरीला बन कर शनि की अनिष्टता को बढ़ाता है।

शनिवार को शनिदेव या हनुमान जी को उड़द (मांह) चढ़ाएं व रूई की माला अर्पण करें।

शनिवार का व्रत रखें। तेल का दीपक सुबह शाम जलाएं।

● पंचम स्थान में शनि हो तथा दशम स्थान में ग्रह न हो तो जातक को संतान नहीं होती। 48वें वर्ष में मकान बनवाने पर उसे संतान होती है।

● यदि संतान की न अल्पायु हो इसके लिए गुड़, तांबा, चावल, शहद की शीशी एक नए कपड़े में बांधकर घर में टांग दें।

षष्ठम स्थान में शनि, बृहस्पति हों तो पानी युक्त नारियल नदी में प्रवाह करें। 28 साल की आयु में विवाह एवं 48 वर्ष का होने पर मकान बनाएं।

षष्टम स्थान में शनि तथा दूसरे स्थान पर कोई ग्रह न होने पर जातक तेल का व्यापार, लोहे, आयल मिल, पेट्रोल, छापाखाना, कारखाना, व्याज का व्यवसाय शुरू करें। शुभारंभ पूर्व मिट्टी के घड़े में राई का तेल डालकर उसका मुंह काले कपड़े से बांधकर वह मटका तालाब या नदी में डाल दें। कृष्ण पक्ष की मध्य रात्रि कारोबार शुरू करें।

सप्तम स्थान में अनिष्ट शनि हो तथा जातक शराब पीता हो तो शराब पीना छोड़ दें अथवा सर्वनाश होगा।

o इसी तरह सप्तम स्थान में शुक्र तथा एकादश स्थान पर शनि हो तो जातक बड़ा भाग्यवान होता है। कारोबार शुरू करने से पूर्व जल का भरा घड़ा दान में दें।

सूर्य ग्रह (ग्रहों के अधिपति)चंद्र ग्रह (सौंदर्य का प्रतीक)
मंगल ग्रह – (युद्ध का देवता)बुध ग्रह (व्यवसाय प्रतिनिधि)
बृहस्पति ग्रह (देवगुरु)शुक्र ग्रह (दैत्य गुरु)
शनि ग्रह (अंतर्मन का स्वामी)राहु ग्रह (विनाश का कारक)
केतु ग्रह (शस्त्रों का अधिनायक)

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