श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा – जय जय जय विन्ध्याचल रानी।

विन्ध्येश्वरी चालीसा

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में मां विंध्यवासिनी का सुंदर मंदिर है। कहा जाता है सालों पहले हिमालय सबसे बड़ा पर्वत था। उससे पर्वतराज भी कहा जाता था।

यह बात विंध्याचल नाम के पर्वत को सहन नहीं होती थी । अपने पर्वत को बड़ा बनाने के लिए उसने ब्रह्मा जी का तप किया ।

ब्रह्मा जी ने विंध्याचल के तप से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने के लिए कहा ।फिर विंध्याचल पर्वत ने कहा प्रभु मुझे यह आशीर्वाद दीजिए कि मैं जितना चाहो उतना बड़ा हो सकूं ।तब ब्रह्माजी तथास्तु कहकर चले गए।

वरदान ब्रह्मा जी से वरदान पाने के बाद विंध्याचल ज्यादा से ज्यादा ऊंचा होने लगा

अहंकार से भरे हुए विंध्याचल की ऊंचाई इतनी बढ़ गई कि उसने सूर्यनारायण को ढक दिया ।पृथ्वी पर अंधकार ही अंधकार छा गया किसी को कुछ दिखाई नहीं देने लगा ।तभी सभी देवता ब्रह्मा जी के पास है और ब्रह्मा फिर ब्रह्मा जी को विंध्याचल के गुरु ऋषि अगस्त्य का स्मरण हुआ । और ब्रह्मा जी ऋषि अगस्त्य के पास गए और उनको सारी बात बताई ।फिर अगस्त्य ऋषि विंध्याचल पर्वत को मिलने के लिए गए ।

विंध्याचल पर्वत ने जब अपने गुरु को आता हुआ देखा तो वह तो उसने झुकने के लिए अपने गुरु को प्रणाम करने के लिए धरती पर लेट गया। गुरुजी ने कहा अभी मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं जब तक मैं वापस ना आऊं तब तक ऐसे ही लेटे रहो।

विंध्याचल पर्वत ने बहुत दिनों तक विशेष ऋषि अगस्त्य का इंतजार किया । वह वापस नहीं आए फिर विंध्याचल पर्वत ने शिव का स्मरण किया ।

शिवजी का स्मरण करते ही शिवजी जी प्रकट हो गए। तो उसमें विंध्याचल ने अपनी समस्या उनको बताई फिर भगवान शिव ने पार्वती को विंध्याचल पर्वत पर सदा के लिए विराजमान होने को कहा और कहा कि आज से आपका नाम मां विंध्यवासिनी होगा।

विन्ध्येश्वरी चालीसा एक भक्ति गीत है जो विन्ध्येश्वरी माता पर आधारित है। विन्ध्येश्वरी चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थनाहै जो 40 छन्दों से बनी है।

॥ दोहा ॥

नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब । सन्तजनों के काज में माँ करती नहीं विलम्ब ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदि शक्ति जग विदित भवानी ॥

सिंहवाहिनी जै जग माता। जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥

कष्ट निवारिनी जय जग देवी । जय जय जय जयअसुरासुर सेवी॥

महिमा अमित अपार तुम्हारी। शेष सहस मुख वर्णत हारी॥

दीनन के दुःख हरत भवानी। नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी॥

सब कर मनसा पुरवत माता ।महिमा अमित जगत विख्याता ॥

जो जन ध्यान तुम्हारो लावै । सो तुरतहि वांछित फल पावै॥

तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी। तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी॥

रमा राधिका शामा काली। तू ही मात सन्तन प्रतिपाली॥

उमा माधवी चण्डी ज्वाला। बेगि मोहि पर होहुदयाला॥

तू ही हिंगलाज महारानी। तू ही शीतला अरुविज्ञानी॥

दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता। तू ही लक्श्मी जग सुखदाता॥

तू ही जान्हवी अरु उत्रानी । हेमावती अम्बे निर्वानी ॥

अष्टभुजी वाराहिनी देवी । करत विष्णु शिव जाकर सेवी॥

चोंसट्ठी देवी कल्यानी । गौरी मंगला सब गुण खानी ॥

पाटन मुम्बा दन्त कुमारी। भद्रकाली सुन विनय हमारी॥

वज्रधारिणी शोक नाशिनी। आयु रक्शिणी विन्ध्यवासिनी॥

जया और विजया बैताली । मातु सुगन्धा अरु विकराली ॥

नाम अनन्त तुम्हार भवानी । बरनैं किमि मानुष अज्ञानी॥

जा पर कृपा मातु तव होई। तो वह करै चहै मन जोई॥

कृपा करहु मो पर महारानी । सिद्धि करिय अम्बे मम बानी॥

जो नर धरै मातु कर ध्याना। ताकर सदा होय कल्याना ॥

विपत्ति ताहि सपनेहु नहिं आवै । जो देवी कर जाप करावै॥

जो नर कहं ऋण होय अपारा। सो नर पाठ करै शत बारा ॥

निश्चय ऋण मोचन होई जाई । जो नर पाठ करै मन लाई॥

अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावे । या जग में सो बहु सुख पावै॥

जाको व्याधि सतावै भाई। जाप करत सब दूरि पराई ॥

जो नर अति बन्दी महं होई । बार हजार पाठ कर सोई॥

निश्चय बन्दी ते छुटि जाई । सत्य बचन मम मानहुभाई॥

जा पर जो कछु संकट होई । निश्चय देबिहि सुमिरैसोई॥

जो नर पुत्र होय नहिं भाई । सो नर या विधि करे उपाई ॥

पांच वर्ष सो पाठ करावै । नौरातर में विप्र जिमावै ॥

निश्चय होय प्रसन्न भवानी । पुत्र देहि ताकहं गुण खानी ॥

ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै । विधि समेत पूजन करवावै॥

नित प्रति पाठ करै मन लाई । प्रेम सहित नहिं आन उपाई॥

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा। रंक पढ़त होवे अवनीसा॥

यह जनि अचरज मानहु भाई । कृपा दृष्टि तापर होई जाई ॥

जय जय जय जगमातु भवानी। कृपा करहु मो पर जन जानी॥

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