श्री गोरखनाथ चालीसा और कथा
हिंदू धर्म में भगवान गोरखनाथ जी को महान योगी माना जाता है ऐसा माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ जी का जन्म किसी स्त्री के गर्भ से नहीं हुआ था अपितु वह तो एक गोबर के ढेर से उत्पन्न हुए थे
कथा के अनुसार एक गुरु मत्स्येंद्रनाथ जी भिक्षा मांगने एक गांव गए ।जहां उन्हें एक रोती बिलखती महिला दिखी गुरु मत्स्येंद्रनाथ जी महिला के पास गए तो वह महिला ने गुरुजी के चरण पकड़ लिए और जोर जोर से रोने लगी ।
गुरुजी ने महिला से उसे रोने का कारण पूछा फिर महिला ने कहा कि बाबा मेरे कोई संतान नहीं है कृपया मुझे आशीर्वाद दें जिससे मुझे संतान हो ।महिला की बात सुनकर गुरु जी ने दिव्य भस्म उस महिला को दी और कहा तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी इतना कहकर गुरुजी वहां से चले गए।
वह महिला फिर भस्म लेकर अपनी सहेलियों के पास गई और उसने अपनी सहेलियों को गुरु जी की भसम वाली सारी बात बताई।
उसकी सहेलियों ने कहा भला कोई स्त्री भस्म से कैसे गर्भवती हो सकती है ।अपनी सहेलियों की यह बात सुनकर वह महिला भी अपनी सहेलियों की बातों में आ गई और उसने उस दिव्य भस्म को गोबर के ढेर के ऊपर फेंक दिया।
समय बीतता गया और इस महिला के कोई संतान नहीं हुई।
भाग्य से 12 साल बाद एक दिन मत सेंद्र जी उसी गाँव से गुजर रहे थे उसी समय उन्हें वह महिला दिखाई दी बाबाजी ने उस महिला के पास गए और पूछा तेरा बेटा कैसा है ?
फिर उस महिला ने अपनी सारी बात बाबा जी को बताई फिर उस समय मतसेंद्र जी ने उस महिला को कहा कि वह दिव्य भस्म थी वह ऐसे व्यर्थ नहीं जा सकती। क्या तुम मुझे वहां ले जा सकती हो जहां पर तू ने भस्म को फैकां था।
फिर उस महिला ने बाबा जी को हां बोल दिया। तब वह महिला बाबा जी को वहां गोबर के ढेर के पास लेकर गई और बाबा जी को बताया कि मैंने उस दिव्य भस्म को यहां पर फेंका था ।तभी मतसेंद्र जी ने बालक को आवाज लगानी शुरू की तभी गोबर के ढेर को चीरता हुआ दिव्यबालक बाहर निकला जो देखने में 12 साल का लग रहा था ।गोबर से उत्पन्न होने के कारण मत्स्येंद्र जी ने उस बालक का नाम गोरखनाथ जी रख दिया और फिर उस बालक को अपने साथ लेकर तपस्या करने चले गए वही पालक फिर बड़ा होकर गुरु गोरख नाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
चालीसा
श्री गोरख चालीसा एक भक्ति गीत है जो श्री गोरख पर आधारित है। श्री गोरख से सम्बन्धित अवसरों पर गोरख चालीसा का पाठ किया जाता है। श्री गोरख को गोरखनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
॥ दोहा ॥
गणपति गिरजा पुत्र को,सुमिरूँ बारम्बार । हाथ जोड़ बिनती करूँ,शारद नाम आधार ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय गोरख नाथ अविनासी । कृपा करो गुरु देव प्रकाशी ॥
जय जय जय गोरख गुण ज्ञानी । इच्छा रुप योगी वरदानी॥
अलख निरंजन तुम्हरो नामा | सदा करो भक्तन हित कामा॥
नाम तुम्हारा जो कोई गावे।जन्म जन्म के दुःख मिट जावे ॥
जो कोई गोरख नाम सुनावे। भूत पिसाच निकट नहीं आवे ॥
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे। रुप तुम्हारा लख्या न जावे ॥
निराकर तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद न जानी ॥
घट घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥
भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा शीश अति सुन्दर साजे॥
तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जन करतेपूजा ॥
चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करुण अमंगल हारी ॥
पूर्ण ब्रह्म सकल घट वासी । गोरख नाथ सकल प्रकाशी॥
गोरख गोरख जो कोई ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे॥
शंकर रुप धर डमरु बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे॥
नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मार भक्तन रखवारा ॥
अति विशाल है रुप तुम्हारा । सुर नर मुनि पावै नपारा॥
दीन बन्धु दीनन हितकारी। हरो पाप हम शरण तुम्हारी ॥
योग युक्ति में हो प्रकाशा। सदा करो संतन तन वासा॥
प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बढ़े अरु योग प्रचारा॥
हठ हठ हठ गोरक्ष हठीले । मार मार वैरी के कीले॥
चल चल चल गोरख विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला॥
जय जय जय गोरख अविनासी । अपने जन की हरो चौरासी ॥
अचल अगम है गोरख योगी । सिद्धि देवो हरो रस भोगी ॥
काटो मार्ग यम को तुम आई। तुम बिन मेरा कौन सहाई॥
अजर-अमर है तुम्हारी देहा। सनकादिक सब जोरहिं नेहा ॥
कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । है प्रसिद्ध जगत उजियारा ॥
योगी लखे तुम्हारी माया। पार ब्रह्मा से ध्यान लगाया ॥
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे । अष्टसिद्धि नव निधि घर पावे॥
शिव गोरख है नाम तुम्हारा । पापी दुष्ट अधम को तारा ॥
अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा॥
शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपासिन्धु योगी ब्रह्मचारी॥
पूर्ण आस दास की कीजे । सेवक जान ज्ञान को दीजे ॥
पतित पावन अधम अधारा। तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥
अलख निरंजन नाम तुम्हारा। अगम पन्थ जिन योग प्रचारा॥
जय जय जय गोरख भगवाना। सदा करो भक्तन कल्याना॥
जय जय जय गोरख अविनासी । सेवा करै सिद्ध चौरासी ॥
जय जय जय गोरख अविनासी । सेवा करै सिद्ध चौरासी ॥
जो ये पढ़हि गोरख चालीसा । होय सिद्ध साक्षी जगदीशा ॥
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे॥
बारह पाठ पढ़े नित जोई। मनोकामना पूर्ण होइ ॥
॥ दोहा ॥
सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ। मन इच्छा सब कामना,पूरे गोरखनाथ॥
अगम अगोचर नाथ तुम,पारब्रह्म अवतार। कानन कुण्डल सिर जटा,अंग विभूति अपार॥
सिद्ध पुरुष योगेश्वरो,दो मुझको उपदेश । हर समय सेवा करूँ, सुबह शाम आदेश ॥
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