सूर्य देव चालीसा
चालीसा
माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी सूर्य सप्तमी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन सूर्य भगवान को गंगाजल से अर्घ्य देते हैं। दीपक, कपूर, धूप, लाल पुष्प आदि से सूर्य भगवान की स्तुति करते हैं।
सूर्य की ओर मुख करके स्तुति करनी चाहिए। इससे शारीरिक चर्मरोग आदि विकार नहीं होते हैं। प्राचीन ज्योतिष शास्त्र तथा आधुनिक विज्ञान में सूर्य का बड़ा महत्त्व है।
जीवों तथा वनस्पतियों में जीवन प्रदान करने वाला सूर्य ही माना जाता है। इस दिन सूर्य पुराण का पाठ करना चाहिए। सूर्य का सारथी अरुण माना जाता है जो पंगु है। बालक जन्म काल में मूक और पंगु होते हैं। भगवान सूर्य अपने प्रकाश से इन दोषों को दूर करते हैं।
सूर्य चालीसा एक भक्ति गीत है जो भगवान सूर्यदेव पर आधारित है।
सूर्य चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 40 छन्दों से बनी है।
कई लोग भगवान सूर्यदेव को समर्पित त्योहारों पर सूर्य चालीसा का पाठ करते हैं।
॥ दोहा ॥
॥ चौपाई ॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन मार्तण्ड हरिरूप विरोचन ॥
अम्बरमणि ! खग ! रवि कहलाते । वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि । मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि ॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर । हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी । तेज रूप केरी बलिहारी ॥
उच्चैः श्रवा सदृश हय जोते।देखि पुरन्दर लज्जित होते ॥
मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर । सविता सूर्य अर्कखग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै।हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं । मस्तक बारह बारनवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै । दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥
नमस्कार को चमत्कार यह विधि हरिहर को।कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई।अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई ॥
बारह नाम उच्चारन करते । सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन।रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है । प्रबल मोह को फंद कटतु है ॥
अर्क शीश को रक्षा करते। रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत । कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित।भास्कर करत सदामुखको हित॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे ॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा । तिग्मतेजसः कांधे लोभा ॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर।त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन। भानुमान उरसर्मसुउदरचन॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर । कटिमंह, रहत मनमुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा ॥
विवस्वान पद की रखवारी बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे ॥
अस जोजन अपने मन माहीं । भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै।जोजन याको मनमंह जापै ॥
अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही ॥
मंद सदृश सुत जग में जाके । धर्मराज सम अद्भुत बांके ॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा नर सेवा ॥
किया करत सुरमुनिभक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी । हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी ॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही ॥
मंद सदृश सुत जग में जाके । धर्मराज सम अद्भुत बांके ॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा । किया करत सुरमुनि नर सेवा ॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी । हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन । मधु वेदांग नाम रविउदयन ॥
भानु उदय बैसाख गिनावै । ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता । कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं । पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं॥
॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य । सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
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