भैरव चालीसा
चालीसा
भक्तजन जब वैष्णो देवी मां के दर्शन करने के लिए जाते हैं तो वापस लौटते समय भैरव बाबा के दर्शन के लिए जाते हैं। दरबार वैष्णो देवी से आधा किलोमीटर आगे भैरव मंदिर के लिए पक्की सीढ़ियां और कच्ची पगडंडी दोनों तरह का रास्ता बना है ।
कहते है – जब शक्ति ने चंडी का रूप धारण कर भैरव का वध कर दिया था तो वही गुफा के पास तथा सिर भैरव घाटी में जा गिरा था । जिस स्थान पर भैरव का सिर गिरा था उसी स्थान पर भैरव मंदिर का निर्माण हुआ है।
श्री भैरव चालीसा एक भक्ति गीत है जो भगवान भैरव पर आधारित है।
भैरव बाबा की पूजा सभी पापों से मुक्ति प्रदान करती है।
शिवपुराण में उन्हें भगवान शिव का पूर्ण रूप बताया गया है।
श्री भैरव चालीसा
॥ दोहा ॥
श्री भैरव संकट हरन, मंगल करन कृपालु। करहु दया जि दास पे, निशिदिन दीनदयालु॥
॥ चौपाई ॥
जय त्रिशूलधर जय डमरूधर । काशी कोतवाल, संकटहर ॥
जय गिरिजासुत परमकृपाला। संकटहरण हरहु भ्रमजाला ॥
जयति बटुक भैरव भयहारी। जयति काल भैरव बलधारी ॥
अष्टरूप तुम्हरे सब गायें। सकल एक ते एक सिवाये ॥
जटाजूट पर मुकुट सुहावै । भालचन्द्र अति शोभा पावै॥
कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर । मोरपंख को चंवर मनोहर ॥
खप्पर खड्ग लिये बलवाना।रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥
वाहन श्वान सदा सुखरासी । तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी ॥
जय जय जय भैरव भय भंजन।जय कृपालुभक्तन मनरंजन॥
नयन विशाल लाल अति भारी रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी॥
बं बं बं बोलत दिनराती। शिव कहँ भजहु असुर आराती॥
एकरूप तुम शम्भु कहाये । दूजे भैरव रूप बनाये ॥
सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी। सब जग के तुम अन्तर्यामी॥
रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा ॥
श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी। तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी ॥
तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं ॥
व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी। प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी ॥
चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा । निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा॥
क्रोधवत्स भूतेश कालधर।चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर॥
अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे। जयत सदा मेटतदुःख भारे ॥
चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा। क्रोधवान रणरंगा ॥
तुम अतिभूतनाथ तुम परम पुनीता । तुम भविष्य तुम अहहू अतीता ॥
वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा । कालजयी तुम परम अनूपा॥
ऐलादी को संकट टार्यो ।साद भक्त को कारज सारयो ॥
कालीपुत्र कहावहु नाथा।तव चरणन नावहुं नितमाथा ॥
श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु । दीन जानि मोहि पारउतारहु॥
भवसागर बूढत दिनराती।होहु कृपालु दुष्ट आराती॥
सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै । मोहिं भगति अपनी अब दीजै ॥
करहुँ सदा भैरव की सेवा। तुम समान दूजो को देवा ॥
अश्वनाथ तुम परम मनोहर । दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर ॥
तम्हरो दास जहाँ जो होई । ताकहँ संकट परै न कोई॥
हरहु नाथ तुम जन की पीरा। तुम समान प्रभु को बलवीरा ॥
सब अपराध क्षमा करि दीजै मोहिं कीजै ॥
दीन जानि आपुनजो यह पाठ करे चालीसा । तापै कृपा करहु जगदीशा ॥
॥ दोहा ॥
जय भैरव जय भूतपति, जय जय जय सुखकंद। करहु कृपा नित दास पे,देहुं सदा आनन्द॥
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