छब्बीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

छब्बीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य देवद्युति ने कहा इस पवित्र कथा को ध्यान से सुनो। एक समय केरल प्रदेश में एक वेदज्ञ ब्राह्मण निवास करता था । उसका नाम वसु था। उसके बन्धु-बान्धवों ने जब उसका धन हरण कर लिया तो वह केरल छोड़कर चल दिया। जगह-जगह मारा-मारा फिरा, मगर कहीं उसकी उदर पूर्ति न हो … Read more

पच्चीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

पच्चीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य लोमश जी बोले- हे ब्राह्मण! इस पिशाच के इस करुण क्रन्दन को देवद्युति ने उपासना करते समय सुना। वे बैठे न रह सके और तब वे इस आश्रम से निकलकर उस पिशाच के सम्मुख गये। भयानक आकार और क्रूर आकृति वाले पिशाच को इस प्रकार दहाड़ मारकर रोते देखा। इसके गाल … Read more

चौबीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

चौबीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य लोमशजी बोले- जिस वन में पिशाच को मोक्ष हुआ था, उसका द्रविण राजा चित्र था । वह परम वीर, पराक्रमी, शास्त्रों का ज्ञाता और एश्वर्यवान था। स्वर्ण, रत्न से उसका कोष भरा रहता था। उसके सहस्त्रों पटरानियां थीं। वह स्त्रियों के वशीभूत रहता, कामुक, लोभी एवं महा क्रोधी था । वह … Read more

तेईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

तेईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य वेदनिधि बोला- हे महर्षि! आपने इस पावन प्रसंग को सुनाकर हम सभी पर बहुत उपकार किया है। अब आप कृपा करके उस स्तोत्र को सुनाये जिससे भगवान श्रीहरि ने प्रसन्न होकर देवद्युति को दर्शन दिए थे। तब लोमश जी ने कहा- हे ब्राह्मण! सुपात्र को धर्मोपदेश करने से जो प्रसन्नता होती … Read more

बाईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

बाईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य लोमशजी ने कहा- एक समय देवद्यूति नामक वैष्णव ब्राह्मण था । उसने पिशाच को मुक्ति दिलायी।वेद निधि ने पूछा- हे मुने! देवद्युति कौन था और बताइए कि उसने किस पिशाच को किस तरह से मुक्ति दिलायी ? लोमश जी बोले – हे विप्र ! देवद्युति का आश्रम सरस्वती के तट पर … Read more

इक्कीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

इक्कीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य वेदनिधि ने कहा- हे ऋषि! आप कृपा कर इन बालकों को उस धर्म का उपदेश दें जिससे इनकी मुक्ति हो । आप समर्थ है और इस कार्य में इनकी सहायता कर सकते हैं। लोमश जी बोले इन बालकों की मुक्ति का साधन माघ स्नान ही है। ये मेरे साथ माघ स्नान … Read more

बीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

बीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य कुमारियों ने कहा- हे माता! आज किन्नारियों के साथ सरोवर पर स्नान करते और खेलते रहने के कारण हमें समय का ज्ञान नहीं रहा, वे अपनी माताओं का ध्यान अपनी ओर से हटाये रखने के लिये तरह-तरह की बातें करने लगी परन्तु उनके हृदय तो उस ब्रह्मचारी युवक पर मोहित थे … Read more

उन्नीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

उन्नीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य वशिष्ठजी बोले- हे राजन्! भगवान श्री दत्तात्रेय जी ने जो इतिहास का वर्णन किया था, वह मैंने तुमको सुना दिया है। अब तुम माघ स्नान का फल श्रवण करो। माघ स्नान समस्त यज्ञों, दानों, तपस्या एवं व्रतों में श्रेष्ठ है । हे दिलीप ! माघ स्नान करने वाले प्राणी के पितर … Read more

अठारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

अठारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य कांचन मालिनी ने कहा- हे राक्षस! मैंने तुम्हारे पूछने पर यह इतिहास तुझे सुना दिया है, अब मेरी शंका मिटाने को तुम भी अपना पूर्व इतिहास सुनाओ। किस पापी कर्म के प्रभाव से तुमको यह भयंकर योनि प्राप्त हुई है तब राक्षस ने कहा- हे सुभगे ! तेरा वृतान्त बड़ा ही … Read more