shiv tandav stotram | शिव तांडव स्तोत्र
शिव तांडव स्तोत्र की महिमा | शिव तांडव स्तोत्र के फ़ायदे
सावन के महीने में हम भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक यत्न करते हैं उनके मंत्र पढ़ते हैं उनका शिव पुराण का पाठ करते हैं उनकी पूजा करते हैं उनका भजन कीर्तन करते हैं जिससे भगवान शिव प्रसन्न हो और उनकी कृपा हमें प्राप्त हो।
सावन के महीने में जब बारिश हो या बरसात का पानी हो उसको कांच की बोतल में इकट्ठा करके अपने स्वयं कक्षा में रखें ऐसा करने से आप की लाइफ में सुधार होगा।
शिव तांडव स्त्रोत है क्या?
शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव के परम भक्त रावण द्वारा की गई एक विशेष स्तुति है। यह स्थिति छंदात्मक है अर्थात छंदों में लिखी गई है और इसमें बहुत सारे अलंकार भी हैं।
ऐसा माना जाता है कि रावण जब कैलाश पर्वत को लेकर चलने लगा कि मैं तो भगवान शिव को कैलाश के साथ ले जाऊंगा और ले जाकर अपनी लंका में स्थापित कर दूंगा। तो भगवान शिव जी ने उसे अंगूठे से दबा दिया परिणाम यह हुआ कि कैलाश वहीं रह गया और रावण पर्वत के नीचे दब गया।
तब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जो स्तुति गई उसे शिव तांडव कहते हैं। जहां पर रावण दावा था उसे स्थान को राक्षस ताल कहा जाता है।
शिव तांडव का अर्थ
शिव तांडव में पहला अक्षर है शिव जिसका अर्थ है कल्याण – दूसरा शब्द है तांडव तांडव शब्द बना है तंदुल से और इसका अर्थ होता है उछलना। तांडव में ऊर्जा और शक्ति से उछालना होता है ताकि दिमाग और मन शक्तिशाली बन सके। तांडव नृत्य बहुत शक्तिशाली माना गया है।
तांडव नृत्य केवल पुरुषों को ही करने की अनुमति होती है। महिलाओं को देखते हुए चौकी उर्जा का प्रवाह ज्यादा होगा जिससे महिलाओं को करने में दिक्कत होगी इसी कारण महिलाओं को तांडव नृत्य करना मना है।
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए
- यदि आपको स्वास्थ्य की ऐसी समस्या है जिसका समाधान नहीं हो पा रहा है तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- अगर आप तंत्र मंत्र से और शत्रु भाषा से परेशान है तो भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना अच्छा होता है।
- यदि आर्थिक समस्या हो या रोजगार की समस्या हो तो भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- अगर आप जीवन में कोई विशेष उपलब्धि चाहते हैं यहां कोई पद प्रतिष्ठा चाहते हैं तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें।
- यदि आपके किसी ग्रह की बुरी दशा चल रही हो तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
शिव तांडव स्तोत्र कैसे और कब पढ़े
- सुबह सुबह उठकर स्नान करके पढ़िए
- या प्रदोष काल में सूर्यास्त के वक्त इसका पाठ करिए।
- भगवान शिव को फूल और नैवेद्य अर्पण करें
- इसके बाद गाना गाकर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें।
- यदि नृत्य करके इसका बात करें तो वह और भी सर्वोत्तम माना गया है।
- पाठ करने के बाद भगवान शिव का ध्यान करें आंखें बंद करके।
- फिर भगवान शिव से जो भी आपके मन में कामना है उसकी प्रार्थना करें।
shiv tandav stotra | शिव तांडव स्तोत्र
जटाकटाहसंभ्रमन्निलिम्प निर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
बगद्गद्गज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षण मम । । १ । ।
जटाटवरगलज्जलप्रवाहपावितस्थ ले गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचंडतांडवं तनोतु शिवः शिवम्।।२।।
धराधरेन्द्रनंदिनी ‘विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसंतति प्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटा क्षधोरणीनिरुद्धर्धर परापदिक्वचिद्दगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि । ।।३।।
जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणाममणि प्रभाकदम्बकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्व धूमुखे नः । । ५ ।।
मदान्धसिंधुरस्फुत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं विभर्तु भूतभर्तरि ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुल भा निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रि पीठभूः ।
भुजंगराजमालया निबद्ध जटाजूटकः श्रियैचिराय जायताञ्चकोरबन्धु शेखरः । । ६
करालभालपट्टिकाधगद्गद्गज्ज्वलद्व नञ्जयाधरीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक प्रकल्पनैकशिल्पनित्रिलोचने रतिर्मम् ।।७।।
नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहू निशीथिनीतमः प्रबन्धकन्धरः
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतकुतिसुन्दर: कला निधानबन्धुरः श्रियंजगधुरन्धरः । । ८ । ।
प्रफुल्लनीलपंकज पञ्चकालिमप्रभावलम्बिकण्ठक न्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् | स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकाच्छिदंमनन्तकच्छि दंमन्तकच्छिदं भजे ।। ९ ।।
अखर्वसर्वमलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्त कंगजान्तकान्धकन्तमनन्त कान्तकं भजे ।। १० ।।
जयत्यदनिविभ्रमस्फुरदभु जंगम श्वसद्विनिर्गमक्रमस्फुरत्कारालभाल हव्यवाट् । धिमिन्धिमिन्धिमिन्ध्वनंमृदंगतुंगमं गलध्वनिक्रमप्रवर्तितंप्रचण्डताण्ड वः । । ११ । ।
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजामौक्तिकस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्ष योः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिव भजाम्यहम् ।। १२||
कदानिलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विन्मुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं बहन ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेतिमन्त्रमुच्चरन्सदासुखी भवाम्यहम् || १३ ।।
निलिम्पनाथनागरीकदम्बमौलिमल्लिका निगुम्फनिर्भरक्षरन्मघृष्णिकामनोहरः ।
तनोतुनो मनोमुदं विनोदिनीमहर्निशंपरश्रियःपरम्पदन्तदंगजत्विषाञ्चयः । ।१४ ।।
प्रचण्डवाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी महाष्टसिद्वि कामिनीजनावहूतजल्पना ।
विमुक्तवामलोचनाविवाहकालिक ध्वनिः शिवेतिमन्त्रभूषणाजगज्जयायजा यतम् ।। १५ ।।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीत शम्भुपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्यस्थिरां रथगजेन्दु तुरंगयेक्ता लक्ष्मी सदैवसुमुखीं प्रददाति शम्भुः
।। १६ ।।