दुर्गा सप्तशती दसवां अध्याय |Durga saptshati dasam adhyay
दुर्गा सप्तशती दसवां अध्याय ऋषि बोले-अपने प्राणप्रिय भ्राता निशुम्भ को मरा हुआ देख सारी सेना का संहार होता हुआ जान शुम्भ कुपित होकर बोला–दुष्ट दुर्गे ! तू अभिमान न कर, तू दूसरों के बल का सहारा लेकर झूठे अभिमानों में चूर होकर संग्राम करती है। देवी बोली–रे दुष्ट ! इस संसार में मैं अकेली हूँ … Read more