कृष्ण चालीसा – जय यदुनन्दन जय जगवन्दन

कृष्ण चालीसा

एक दिन कृष्ण और बलराम अपने प्रेमी ग्वालबालोंके साथ यमुनातटपर बछड़े चरा रहे थे। उसी समय उन्हें मारनेके लिये एक महाबलशाली दैत्य आया। कंसने उसे श्रीकृष्णको समाप्त करनेका आदेश दिया था।

उसने एक सुन्दर बछड़ेका रूप बनाया और बछड़ोंके झुण्डमें घुस गया। वह देखनेमें इतना सुन्दर था कि जो उसे देखता, वही मुग्ध हो जाता था। उसका नाम वत्सासुर था। जब भगवान् श्रीकृष्णने देखा कि वत्सासुर सुन्दर बछड़ेका रूप बनाकर बछड़ोंके बीच घुस रहा है तो वे बलरामजीको संकेतसे समझाते हुए धीरे-धीरे उसके पास पहुच गये।

वत्सासुरने सोचा- ‘श्रीकृष्ण मुझे पहचान नहीं रहे हैं और सुन्दर बछड़ा समझकर स्वयं मृत्युके मुखमें चले आ रहे हैं। आज मैं गोकुलमें मारे गये राक्षसोंका बदला इस उद्दण्ड बालकको मृत्युदण्ड देकर लूँगा।’

भगवान् श्रीकृष्ण पीछेसे जैसे ही वत्सासुरके करीब पहुँचे, उसने अपने पिछले दोनों पैरोंको उठाकर श्रीकृष्णपर प्राणघातक हमला करना चाहा।

गोपालने देखते-ही-देखते उसके दोनों पैरोंको फुर्तीसे पकड़ लिया और उसे उठाकर आकाशमें जोरसे घुमाते हुए सामने कैथके पेड़पर पटक दिया। उसका लम्बा-चौड़ा शरीर कैथके वृक्षोंको गिराते हुए धरतीपर गिर पड़ा और उसके प्राण पखेरू उड़ गये।

मरते समय उसने अपने विशालकाय दैत्य शरीरको प्रकट कर दिया। वत्सासुरका वध देखकर ग्वालबालोंके आश्चर्यकी सीमा न रही। वे प्यारे कन्हैयाकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। देवताओंने भी बड़े ही आनन्दसे फूलोंकी वर्षा की।

वत्सासुरके वधकी घटना सुनकर सब गोप-गोपी आश्चर्यचकित रह गये। नन्दबाबा और यशोदा मैयाने श्रीकृष्णकी बार- बार बलैया ली और इस विपत्तिसे उन्हें सुरक्षित पाकर उनसे सैकड़ों गोदान कराया।

कृष्ण चालीसा एक भक्ति गीत है जो भगवान कृष्ण पर आधारित है। कृष्ण चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 40 छन्दों से बनी है। कई लोग जन्माष्टमी सहित भगवान कृष्ण को समर्पित अन्य त्योहारों पर कृष्ण चालीसा का पाठ करते हैं।

श्री कृष्ण चालीसा ।

दोहा

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।

अरुण अधर जनु बिम्बा फल, पिताम्बर शुभ साज ॥

जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥

चौपाई

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥

जय नट-नागर नाग नथैया । कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो । आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

रंजित राजिव नयन विशाला | मोर मुकुट वैजयंती माला ॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो। अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला । भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला ॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो । गोवर्धन नखधारि बचायो॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई |मुख महं चौदह भुवन दिखाई ॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो । कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें ॥

करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

केतिक महा असुर संहारयो । कंसहि केस पकड़ दै मारयो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई। उग्रसेन कहं राज दिलाई ||

महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो ॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी ॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा । जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥

असुर बकासुर आदिक मारयो । भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो। तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे। दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥

लखि प्रेम की महिमा भारी । ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥

भारत के पारथ रथ हांके । लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये।भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

मीरा थी ऐसी मतवाली। विष पी गई बजाकर ताली ॥

राना भेजा सांप पिटारी । शालिग्राम बने बनवारी ॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो ॥

तब शत निन्दा करी तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई ॥

तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला । बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भंवर बचावत नैया ॥

सुन्दरदास आस उर धारी । दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥

तब शत निन्दा करी तत्काला। जीवन शिशुपाला॥

मुक्त भयो जबहिं द्रौपदी टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई ॥

तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला । बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भंवर बचावत नैया ॥

सुन्दरदास आस उर धारी । दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो । क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै । बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥

चालीसा

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