राम चालीसा – श्री रघुबीर भक्त हितकारी

राम चालीसा

चालीसा

श्रीरामजी मर्यादापुरुषोत्तम हैं। रामजी एक भी मर्यादा को भंग करते नहीं, सनातन धर्म का दर्शन करना हो तो तुम रामजी का दर्शन करो। रामजी के चरित्र का मनन करो।

सनातन धर्म- जैसा धर्म दूसरा हुआ नहीं और होगा भी नहीं। सनातन धर्म ईश्वर का स्वरूप है। धर्म साधन भी है और साध्य भी है। सनातन धर्म की विशिष्टता यह है कि वहाँ साध्य और साधन दोनों एक ही हैं।

श्रीरामजी की मातृ-पितृभक्ति

श्रीरामजी की मातृ-पितृभक्ति अलौकिक है। रामजी माता-पिता के अनन्य भक्त हैं। रामजी का ऐसा नियम था कि नित्य माता-पिता की वन्दना करना और सदा माता-पिता की आज्ञा में रहना। कितने ही लोग ऐसे होते हैं कि मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं, ठाकुरजी की वन्दना करते हैं; परन्तु घर के अन्दर वृद्ध माता-पिता को प्रणाम करते ही नहीं।

भक्ति एक साधन है और पीछे भक्ति साध्य बन जाती है। भक्ति भगवद्रूप होने से भक्ति और भगवान् पृथक् नहीं। धर्मानुकूल पवित्र जीवन कैसे व्यतीत किया जाय, यह जगत् को रामजी ने बताया है। सनातन धर्म रामजी का स्वरूप है।

रामजी का बन्धु-प्रेम भी अलौकिक है। ऐसा बन्धु-प्रेम भी तुमको जगत् में कहीं देखने को नहीं मिलेगा।

श्रीरामचन्द्रजी का औदार्य

श्रीराम गुणार्णव हैं-सब सद्गुणों के समुद्र के समान हैं। श्रीराम का एक- एक गुण दिव्य है, अनन्य है। श्रीराम का एक अनुपम गुण है उदारता । श्रीराम अति उदार हैं। रामजी के समान कोई उदार हुआ नहीं, होगा भी नहीं।

जगत् में जीव तो क्या, स्वर्ग के देवता भी किसी को देते हैं तो अपने लिए कुछ रखकर देते हैं। श्रीरामचन्द्रजी जब देते हैं तो ऐसी चिन्ता करते नहीं कि मैं बहुत दूंगा तो मेरे पास क्या रहेगा?

रामायण में वर्णन आता है कि श्रीराम रावण को अयोध्या का राज्य देने को तैयार हो गये थे।

श्रीरामचन्द्रजी का संयम

श्रीरामचन्द्रजी के तीन व्रत हैं। रामजी एकवचनी हैं, एकवाणी हैं, एक पत्नीव्रतधारी हैं। रामजी ने जिस तरह एकवचनीय व्रत का सम्पूर्ण पालन किया, उसी प्रकार एकपत्नीव्रत का भी सम्पूर्ण पालन किया है। शास्त्र में एकपत्नीव्रत की बहुत बड़ी महिमा लिखी है।

जिस स्त्री के साथ अथवा जिस पुरुष के साथ देव ब्राह्मण और अग्नि को साक्षी में रखकर विवाह हुआ हो, उस एक स्त्री में अथवा एक पुरुष में काम- भाव रखकर धर्म की मर्यादा में रहकर जो काम- सुख भोगता है, जिसका मन एक जगह स्थिर है, एक में ही जो काम केन्द्रित करता है तथा अन्य सब स्त्री-पुरुषों को निष्काम भाव से, सीतारामजी की भावना से भगवद्भाव से देखता है, वह गृहस्थ होता हुआ भी साधु है। वह काम- सुख भोगने पर भी ब्रह्मचारी है।

श्री रामचंद्र जी की महिमा जितनी गायी जाए उतनी ही कम है कोई भी वेद शास्त्र पूर्ण रूप से इनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकता । इनकी महिमा समुंद्र की तरह अपार से भी अपार है।

राम चालीसा एक भक्ति गीत है जो भगवान राम पर आधारित है।राम चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 40 छन्दों से बनी है।

कई लोग राम नवमी सहित भगवान राम को समर्पित अन्य त्यौहारों पर राम चालीसा का पाठ करते हैं।

॥ चौपाई ॥

श्री रघुबीर भक्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई।ता सम भक्त और नहीं होई ॥

ध्यान धरें शिवजी मन मांही। ब्रह्मा, इन्द्र पार नहींपाहीं ॥

दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहुं पुरजाना॥

जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला । सदा करो संतन प्रतिपाला॥

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥

तुम अनाथ के नाथ गोसाईं । दीनन के हो सदा सहाई॥

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥

चारिउ भेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥

गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहिं ॥

नाम तुम्हार त जो कोई।ता सम धन्य और नहीं होई॥

राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ॥

शेष रटत नित नाम तुम्हारा महि को भार शीशपर धारा ॥

फूल समान रहत सो भारा । पावत कोऊ न तुम्हरोपारा ॥

भरत नाम तुम्हरो उर धारो।तासों कबहूं न रण में हारो॥

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा।सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥

लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तनरखवारी ॥

ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किनहोई॥

महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥

सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥

घट सों प्रकट भई सो आई।जाको देखत चन्द्र लजाई॥

जो तुम्हरे नित पांव पलोटत । नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥

सिद्धि अठारह मंगलकारी।सो तुम पर जावै बलिहारी ॥

औरहु जो अनेक प्रभुताई।सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥

इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा ॥

जो तुम्हरे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥

सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥

तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥

जो कुछ हो सो तुमहिं राजा।जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥

राम आत्मा पोषण हारे। जय जय जय दशरथ केप्यारे ॥

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा।नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा॥

सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ॥

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब सिधि दीन्हीं ॥

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा।नमो नमो जय जगपति भूपा॥

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया।बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन-मन धन ॥

याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥

आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिवमेरा ॥

और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥

तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढावै॥

साग पत्र सो भोग लगावै।सो नर सकल सिद्धता पावै॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥

श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥

॥ दोहा ॥

सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय। हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ॥

राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय। जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय ॥

चालीसा

  1. Shri ganesh chalisa
  2. श्री शनि चालीसा
  3. कृष्ण चालीसा
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  14. श्री हनुमान चालीसा
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  21. श्री रामदेव चालीसा – द्वारकेश से आय कर, लिया मनुज अवतार
  22. श्री गिरिराज चालीसा
  23. श्री बालाजी चालीसा
  24. श्री परशुराम चालीसा
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  26. श्री नर्मदा चालीसा – जय जय जय नर्मदा भवानी
  27. श्री अन्नपूर्णा चालीसा -नित्य आनन्द करिणी माता
  28. श्री पार्वती चालीसा – ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे
  29. श्री वैष्णो चालीसा – नमो: नमो: वैष्णो वरदानी।
  30. श्री राधा चालीसा – जय वृषभान कुँवरि श्री श्यामा
  31. श्री महाकाली चालीसा -जय काली कंकाल मालिनी।
  32. श्री काली माता चालीसा – जय जय जय काली कंकाली।
  33. श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा – जय जय जय विन्ध्याचल रानी।
  34. श्री शीतला चालीसा – विस्फोटक से जलत शरीरा
  35. श्री पितर चालीसा – हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद ।
  36. श्री राणी सती चालीसा – श्री गुरु पद पंकज नमन,दूषित भाव सुधार
  37. श्री बाबा गंगाराम चालीसा – अलख निरंजन आप हैं,निरगुण सगुण हमेश
  38. श्री प्रेतराज चालीसा – जय जय प्रेतराज जग पावन
  39. श्री महावीर चालीसा – जय महावीर दयालु स्वामी
  40. श्री जाहरवीर चालीसा – जय जय जय जाहर रणधीरा
  41. श्री गोरखनाथ चालीसा -जय जय गोरख नाथ अविनासी
  42. श्री रविदास चालीसा – जै होवै रविदास तुम्हारी
  43. श्री साईं चालीसा – पहले साई के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं
  44. श्री शाकम्भरी चालीसा – शाकम्भरी माँ अति सुखकारी

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