श्री गणेश चालीसा
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मोदक आदि से गणपति का पूजन करें तो विघ्न-बाधाओं का नाश होता है तथा कामनाओं की पूर्ति होती है।
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो कर सोना, तांबा, चाँदी, मिट्टी या गोबर से गणेश की मूर्ति बना कर उसकी पूजा करनी चाहिए। पूजन के समय इक्कीस मोदकों का भोग लगाते हैं तथा हरित दुर्वा के इक्कीस अंकुर लेकर निम्न दस नामों पर चढ़ाए जाते हैं-
तत्पश्चात् इक्कीस लड्डुओं में से दस लड्डू ब्राह्मणों को दान देना चाहिए तथा ग्यारह लड्डू स्वयं खाने चाहिए।
- गतापि, 2. गोरी सुमन, 3. अघनाशक, 4. एकदन्त, 5. ईशपुत्र, 6. सर्वसिद्धिप्रद, 7. विनायक, 8. कुमार गुरु, 9. इंभवक्त्राय और
- मूषक वाहन संत ।
गणेश चालीसा भगवान गणेश की महिमा के लिए एक भक्ति गीत है। यह अवधी भाषा में लिखी गई एक कविता है। गणेश चालीसा ने हिन्दुओं के बीच काफी लोकप्रियता हासिल की है। उनमें से कई लोग इसे प्रार्थना के रूप में प्रतिदिन पढ़ते हैं।
श्री गणेश चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता | विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता।गौरी लालन विश्व-विख्याता॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मुषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी | बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।बिना गर्भ धारण यहि काला ॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना।पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै।पालना पर बालक स्वरूप हवै॥
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना।लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई | का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहयऊ॥
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो
अकाशा ॥ गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी । सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा |शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी।करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै । अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥
॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान। नित नव मंगल गृह बसै,लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश । पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ॥
Shri Ganesh Chalisa pdf
गणेश जी की कहानी
एक गांव में एक सेठ रहा करता था मैं गणेश भगवान का परम भक्त था गणेश भगवान की भक्ति उसे पिता से विरासत में मिली थी वे रोज प्रभु को भोग लगाता आरती करता उसके बाद ही वह कुछ खाया करता था गणेश भगवान की उसके ऊपर विशेष कृपा थी उसके घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी केवल उसकी पत्नी को छोड़कर उसे भगवान का पूजा पाठ करना पसंद नहीं था वह सुबह सवेरे चिल्लाती और एक ही बात कहती की क्या शोर मचा रखा है रोज घंटी और शंख बजा कर पूरा गाड़ी इकट्ठा कर लो सेठ उससे बहुत समझा था एक दिन सेठ को किसी काम से बाहर जाना पड़ा उसने अपनी पत्नी से बड़े प्रेम भाव से कहा शांति मुझे एक दिन के लिए बाहर जाना है इतना काम कर देना कि प्रभु के भोग का ध्यान रख लेना नहीं तो मेरे प्रभु भूखे ही रह जाएंगे शांति ने नाना से बात को सुना जब सेट चला गया तो उसे एक उल्टी चाल सूजी उसने सोचा यदि गणेश जी को घर से बाहर निकाल दूं तो रोज-रोज की आरती पूजा भोग और शंकर की आवाज चंचती खत्म होगी उसने घर के पीछे जाकर एक गड्ढा खोदा उसमें गणेश भगवान की मूर्ति को दबा दिया और घर में वापस आ गई सेट जब घर वापस आया तो उसने मंदिर में गणेश भगवान को नहीं देखा वह भाग भाग शांति के पास गया और कहने लगा शांति मेरे प्रभु कहां है वह मंदिर में नहीं है शांति अनजान बनकर बोली मुझे तो पता नहीं मैं तो कल रात धूप आरती और भोग लगाकर पर्दा लगा दिया था सेठ पागलों की तरह गणेश भगवान को पूरे घर में ढूंढने लगा उसे मन ही मन में पछता रहा था यह काम शांति का ही है उसे ही मेरी पूजा पाठ पसंद नहीं थी उसने शांति से कहा शांति यदि मेरे प्रभु नहीं मिले तो मैं खाना पीना सब छोड़ दूंगा शांति को लगा एक-दो दिन नाटक करेगा उसके बाद सब ठीक हो जाएगा सेठ को रोटी भी लगता 7 दिन हो गए वह शांति से बोल शांति मुझे पता है तुम्हें ही मेरे पूजा पाठ करना पसंद नहीं है मेरे गणेश जी की प्रतिमा को तुम नहीं कहीं छुपाया है यदि मुझे मेरे गणेश जी नहीं मिले तो मैं कुएं में कूद कर अपनी जान दे दूंगा अगर शांति मुंह खोलते तो उसका पूरा झूठ पकड़ा जाता है इसलिए वह बोली आप मुझ पर शक कर रहे हो मुझे सच में कुछ नहीं पता मैं नहीं प्रतिमा लेकर आता हूं पर सेट को वही प्रतिमा चाहिए थी पर वह खुद ने लगा और यह सब शोर सुनकर गांव वाले इकट्ठे होन ने लगे लोगों की आस्था भगवान भी देख रहे थे वह भी अपने भगत के पास जाने के लिए बेचैन थे उधर सेठ कुएं की पाल पर चढ़ गया शांति बागी बागी ए गणेश भगवान की प्रतिमा गड्ढे से निकलने लगी पर गड्ढे में भगवान गणेश की प्रतिमा थी ही नहीं क्योंकि गणेश भगवान अपनी प्रतिमा स्वयं निकाल दिए थे गणेश भगवान बालक का रूप लेकर आए और अपनी प्रतिमा निकाल कर उसके पास पहुंचे और बोले काका यही प्रतिमा आपकी है आप इसे ही ढूंढ रहे हैं क्या सेठ ने पीछे मुड़कर देखा तो एक सुंदर बालक के हाथ में उसके गणेश जी थे नेपाल से नीचे उतरा प्रभु को गले से लगाए रोते-रोते स्नान कराया और भगवान को मंदिर में स्थापित किया वह बालक शांति की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था शांति सच में पड़ गई कि इस मूर्ति का पता इस बालों को कैसे चला सेठ के साथ शांति भी अंदर चली गई सेठ ने रोते-रोते बड़े भाव से गणेश भगवान का स्थापित किया पूजा करें और उसे बालक का खूब धन्यवाद दिया बालक जो कि स्वयं भगवान थे वह बोले काका क्या मुझे भूख नहीं लगाओगे शंभू भाग भाग गया और भोग लेकर आया जैसे ही भोग लेकर आया तो उसने देखा बालक वहां से जा चुका था और तेज प्रकार गणेश भगवान की प्रतिमा से उदित हो रही था शांति को अपनी भूल का पछतावा होने लगा मैं समझ गए कि स्वयं गणेश भगवान अपनी प्रतिमा लेकर स्वयं स्थापित होने आए थे मुझे दर्शन देने आए थे दोनों भाव भी बोर हो गए उसे रात भगवान ने उसे दर्शन दिया और कहा मेरे साथ-साथ शुभ लाभ रिद्धि सिद्धि और सुख वैभव और लक्ष्मी जी सदा सदा तुम्हारे घर में वास करेंगे तुम सदा दुखियों की सेवा करना इस प्रकार से शंभू की भक्ति अमर हो गई दोस्तों इस कथा को जो भी सुनता है गणपति बप्पा की इस पर परम कृपा होती है और उसके घर में माता लक्ष्मी का वास हो जाता है
भगवान गणेश जी की आरती
पारम्परिक रूप से महादेव शिव के पुत्र भगवान गणेश की पूजा सभी देवताओं में सबसे पहले की जाती है। भगवान गणेश ज्ञान नदान करते हैं और शुभ कार्यों के दौरान आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हैं। इसलिये सभी पूजन और शुभ कार्यों को प्रारम्भ करने से पहले सर्वप्रथम भगवन गणेश की पूजा की जाती है।
भगवान गणेश आरती ! जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
एकदन्त दयावन्त,चार भुजाधारी । माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी ॥
(माथे पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी ॥
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा । (हार चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा ।) लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
अँधे को आँख देत, कोढिन को काया। बाँझन को पुत्र देत,निर्धन को माया ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी । कामना को पूर्ण करो,जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
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