श्री गिरिराज चालीसा एक भक्ति गीत है जो श्री गिरिराज पर आधारित है।
श्री गिरिराज जी क्या है ?
श्री गिरिराज जी साक्षात श्रीहरि हैं। इनका स्वरूप सच्चिदानंद है । यह ब्रजमंडल के मुकुट मणि है ब्रज वासियों का मान बढ़ाने वाले हैं । भगवान श्री कृष्ण का हृदय प्रवेश है और करोड़ों भक्तों की परिक्रमा स्थली है। श्री श्री नाथ की प्रकृति स्थली है। संतो भक्तों साधकों की शरण स्थली है ।
निराश्रित जनों के लिए कल्पवृक्ष सदृश्य है ।श्रीमदन मोहन लाल जी की आदि पूजन स्थली है। गाय गोपाल को की समृद्धि सेवा के परिचायक है ।
श्री गिरिराज जी देवराज इंद्र के अभिमान को ग़ालिब करने वाले हैं ।श्री गिरिराज महाराज जी संत महात्माओं आचार्य संप्रदाय प्रवर्तको की पावन स्थली हैं।
देश के विभिन्न आचार्य संप्रदाय प्रवर्तकओं की पावन स्थली है ।श्री कृष्ण ब्रह्मा शंकर व लक्ष्मी जी सदा निवास करती हैं । श्री गिरिराज प्रदेश में श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती पाद की भागवत टीका की प्रकृति स्थली है श्री गिरिराज जी महाराज।
श्री गिरिराज चालीसा
॥ दोहा ॥
बन्दहुँ वीणा वादिनी,धरि गणपति को ध्यान। महाशक्ति राधा सहित,कृष्ण करौ कल्याण॥
सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार । बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार ॥
॥ चौपाई ॥
जय हो जय बंदित गिरिराजा । ब्रज मण्डल के श्रीमहाराजा ॥
विष्णु रूप तुम हो अवतारी।सुन्दरता पै जग बलिहारी ॥
स्वर्ण शिखर अति शोभा पामें।सुर मुनि गण दरशन कूं आमें॥
शांत कन्दरा स्वर्ग समाना। जहाँ तपस्वी धरतेध्याना ॥
द्रोणगिरि के तुम युवराजा। भक्तन के साधौ हौकाजा ॥
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये । जोर विनय कर तुम कूँ लाये ॥
मुनिवर संघ जब ब्रज में आये। लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये॥
विष्णु धाम गौलोक सुहावन। यमुना गोवर्धन वृन्दावन॥
देख देव मन में ललचाये। बास करन बहु रूप बनाये ॥
को बानर को उमृगके रूपा। कोउ वृक्ष कोउलता स्वरूपा ॥
आनन्द लें गोलोक धाम के। परम उपासक रूप नाम के॥
द्वापर अंत भये अवतारी। कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी ॥
महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी । पूजा करिबे की मन ठानी॥
ब्रजवासी सब के लिये बुलाई।गोवर्द्धन पूजा करवाई ॥
पूजन कूँ व्यञ्जन बनवाये। ब्रजवासी घर घर ते लाये॥
ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी । सहस भुजा तुमने कर लीनी॥
स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में। माँग माँग के भोजन पामें॥
लखि नर नारि मन हरषामें । जै जै जै गिरिवर गुण गामें ॥
देवराज मन में रिसियाए । नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए ॥
सात दिवस भई बरसा भारी । थके मेघ भारी जल धारी ॥
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे।नमो नमो ब्रज के रखवारे॥
करि अभिमान थके सुरसाई।क्षमा माँग पुनि अस्तुति गाई ॥
त्राहि माम् मैं शरण तिहारी क्षमा करो प्रभु चूकहमारी ॥
बार बार बिनती अति कीनी। सात कोस परिकम्मादीनी ॥
संग सुरभि ऐरावत लाये। हाथ जोड़ कर भेंट गहाये ॥
अभय दान पा इन्द्र सिहाये करि प्रणाम निजलोक सिधाये ॥
जो यह कथा सुनैं चित लावें । अन्त समय सुरपति पद पावें॥
गोवर्द्धन है नाम तिहारौ।करते भक्तन कौ निस्तारौ॥
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें।तिनके दुःख दूर है जावें ॥
कुण्डन में जो करें आचमन ।धन्य धन्य वह मानव जीवन ॥
मानसी गंगा में जो न्हावें । सीधे स्वर्ग लोक कूँजावें॥
दूध चढ़ा जो भोग लगावें । आधि व्याधि तेहि पास न आवें ॥
जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें । मन वांछित फल निश्चय पावें ॥
जो नर देत दूध की धारा । भरौ रहे ताकौ भण्डारा॥
करें जागरण जो नर कोई । दुख दरिद्र भय ताहि न होई॥’
श्याम’ शिलामय निज जन त्राता।भक्ति मुक्ति सरबस के दाता ॥
पुत्र हीन जो तुम कूँ ध्यावें।ताकूँ पुत्र प्राप्ति है जावें ॥
दंडौती परिकम्मा करहीं । ते सहजहि भवसागर तरहीं ॥
कलि में तुम सम देव न दूजा।सुर नर मुनि सब करते पूजा॥
॥ दोहा ॥
जो यह चालीसा पढ़े,सुनै शुद्ध चित्त लाय। सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करै सहाय ॥
क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज श्याम बिहारी शरण में, गोवर्द्धन महाराज ॥
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