श्री राम नवमी – इस धरती के लिए वरदान हैं भगवान श्रीराम

श्री राम नवमी

श्री राम नवमी – प्रभु श्रीराम जैसी लोकप्रियता जगत में किसी को नहीं मिली। उनकी लीला के समय ऐसा कोई भी प्राणी न था जो उनके प्रेमपूर्ण मधुर व्यवहार से मुग्ध न हो गया हो।

पार्वती जी ने आदिदेव महादेव से प्रश्न किया था कि श्रीराम कौन हैं, जिनका आप निरन्तर ध्यान व स्मरण किया करते हैं?

तब शिव जी ने उत्तर दिया था,

‘नाना भांति राम अवतारा।’ अर्थात् राम एक नहीं अनेक हैं और उनके अवतार के कारण भी अनेक हैं।

श्रीराम के अवतरित होने का कारण

भगवान का वचन

जब धरती पर अत्याचार बढ़ने लगे, प्राणी त्रस्त होने लगे, धरती डांवाडोल होने लगी तब देवों सहित सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के साथ भगवान की शरण में गई और अंतर्नाद कियां। भगवान ने वचन दिया कि मैं अयोध्यावासी सूर्यवंशी दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लेकर राक्षसों का संहार करूंगा।

अपने वचन का पालन करते हुए उन्होंने राम अवतार धर राक्षसों का संहार कर पृथ्वी का भार हल्का किया। एक अन्य कारण जय-विजय जो भगवान शिव के परम भक्त और उनके द्वारपाल थे। उन्हें ब्राह्मण के अभिशाप के कारण रावण और कुम्भकरण के रूप में जन्म लेना पड़ा। उनका उद्धार करने के लिए भगवान ने राम रूप में मनुष्य जन्म लिया।

भगवान श्रीराम के अवतरित होने के अन्य कारण

भगवान श्रीराम के अवतरित होने के अन्य कारण हैं। मनु और सतरूपा को उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का दिया हुआ वरदान। मनु व सतरूपा दूसरे जन्म में दशरथ और कौशल्या हुए। उनके वरदान को पूरा करने के लिए प्रभु ने मनुष्य के रूप में जन्म लिया। नारद के तप से भयभीत होकर देवराज इन्द्र ने उनका तप भंग करने हेतु कामदेव को भेजा।

कामदेव नारद जी की तपस्या भंग करने में असफल हुए। कामदेव को हराने पर देवर्षि को अहंकार हो गया और उन्होंने इसे शिव जी और विष्णु जी को भी बताया। अपने भक्तों के हित चाहने वाले भगवान ने नारद जी के अहंकार को दूर करने की ने के ठानी। महानगरी की राजकुमारी का वरण करने के लिए देवर्षि ने भगवान से हरि रूप मांगा और भगवान ने उन्हें वानर रूप दिया।

जिस कारण सभा में नारद जी की हंसी हुई। इससे नारद जी ने क्रोधित होकर शिवगणों को राक्षस होने का और भगवान को मानव रूप में जन्म लेने का अभिशाप दे दिया। नारद के श्राप को स्वीकार कर भगवान विष्णु ने दशरथ नंदन के रूप में मनुज रूप धारण किया।

श्री राम नवमी क्यों मनाई जाती है

भगवान श्रीराम की पूज्यता गुणों पर आधारित है। यही कारण है कि श्रीराम हर धर्म, हर कौम, हर देश के लिए आदर्श, अनुकरणीय, प्रेरणा स्त्रोत तथा शक्तिधार बन जाते हैं।

धरती के लिए श्रीराम वरदान हैं

इस धरती के लिए श्रीराम वरदान हैं और जन-जन की आस्था के प्रतीक ही नहीं बल्कि सबके प्राणाधार हैं। अपने भक्तों के जन्म-जन्मों के पापों को नष्ट करने वाले आनंद सागर सुख के धाम जो राम हैं आज ही के दिन अवतरित हुए थे।

श्री राम नवमी

सम्पूर्ण भारतवर्ष में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में ख्याति प्राप्त श्री राम का जन्म महोत्सव चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।

यदि पुनर्वसु नक्षत्र से नवमी तिथि संयुक्त हो सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली होती है। यह रामनवमी करोड़ों सूर्य ग्रहों से अधिक फलदायी होती है। यदि चैत्र शुक्ल नवमी तिथि पुनर्वसु नक्षत्र युक्त होकर मध्याहन व्यापिनी हो तो वह महापुण्यप्रद होती है। चैत्र मास की नवमी तिथि में स्वयं हरि श्रीराम के रूप में अवतरित हुए।

इस दिन प्रत्येक श्रीराम मंदिर में भक्तों द्वारा श्रीराम का गुणगान किया जाता है। जहां पर श्रीराम जन्म महोत्सव का आयोजन किया जाता है वहां सभी देव वं तीर्थ अदृश्य रूप में उपस्थित रहते हैं। सभी तीर्थों की यात्रा का फल इस दिन एक ही स्थल पर प्राप्त हो जाता है। इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना का शुभारंभ अयोध्या में किया था।

एकराम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में लेटा। एक राम का सकल पसारा, एक राम है सबसे न्यारा ।।

इस उक्ति के द्वारा श्रीराम के चार स्वरूप दर्शाए गए हैं। पहला मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथनन्दन, दूसरा घट-घट यानि अन्तर्यामी, तीसरा सोपाधिक ईश्वर और चौथा निर्विशेष ब्रह्म ।

जो व्यक्ति इन्हीं श्रीराम का श्री रामनवमी का व्रत करता है, उनके अनेक जन्म के पाप भस्मीभूत हो जाते हैं। श्री रामनवमी व्रत से भक्ति व मुक्ति दोनों की ही सिद्धि होती है।

श्री राम नवमी व्रत

इस पावन दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर की उत्तर दिशा या ईशान कोण में एक सुन्दर मण्डप बना लें। भगवान श्रीराम परिवार अथवा श्रीराम दरबार की मूर्ति प्रतिमा या चित्र स्थापित कर लें। संकटमोचक हनुमान जी को विराजित कर लें। फिर मंडप में इन सभी का जल, पुष्प, गंगा जल, वस्त्र, अक्षत, कुमकुम आदि से यथाशक्ति पूजन करें। फिर निम्न मंत्र से भगवान की आरती करें।

मंगलार्थ महीपाल, नीराजनमिदं हरे ।

संग्रहाण जगन्नाथ रामचन्द्र नमोस्तु ते ।।

ऊं परिकर सहिताय श्री सीताराम चन्द्राय कर्पूरार्तिक्यं समर्पयामि।

हे पृथ्वीपालक भगवान श्री रामचन्द्र । आपके सर्वविध मंगल के लिए यह आरती है। हे जगन्नाथ ! इसे आप स्वीकार करें। आपको प्रणाम है। उपर्युक्त श्लोक को पढ़कर शुद्ध पात्र में कपूर तथा घी की बत्ती में जलाकर श्री सीता-राम जी की आरती उतारनी चाहिए।

इन बातों का रखें ध्यान

श्रीराम जी की पूजा से पूर्व हनुमान जी की पूजा जरूर करें। हनुमान जी को सिंदूर व चमेली का तेल चढ़ाएं। शुद्ध चांदी का वर्क अथवा चमकीले पन्ने का वस्त्र उनको चढ़ता है, जरूर चढ़ाएं। श्रीराम को प्रिय सीताफल प्रसाद अवश्य चढ़ाएं। मावे से बनी मिठाई भोग (नेवैद्य) में अर्पित करें।

श्रीराम को रक्त कमल पसंद है रक्त कमल न मिले तो रक्त पुष्य (लाल रंग के पुष्प) से श्रीराम की आराधना करें।

जिन महिलाओं को सौभाग्य व सुन्दर पति की कामना है वे सीता जी का सौभाग्य द्रव्य (सिन्दूर, चूड़ियां, आभूषण) आदि से पूजन करें व सौभाग्य की कामना करें। तीर्थजल से अथवा गंगा जल से श्रीराम परिवार की मूर्तियों का अभिषेक करें।

व्रत आहार

व्रत मीमांसा में वर्णित है कि अपने इष्टदेव को प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली तपस्या तप को व्रत का नाम दिया गया है। श्री रामनवमी का व्रत निराहार करने का विधान है। इस दिन अन्न का त्यागकर श्रीराम की पूजा, पाठ, मंत्र स्तोत्र का जाप करें। फल, दूध का सेवन किया जा सकता है।

भगवान श्रीरामचन्द्र जी

भारतवासियों के आदर्श

भगवान श्रीराम भारतवासियों के आदर्श हैं। श्रीराम का जीवन ही भारत की संस्कृति है। यही कारण है कि भगवान श्रीराम की कथा का प्रचार-प्रसार और विस्तार भारतीय जनमानस में सर्वाधिक रूप से होता रहा है। भगवान श्रीराम सूर्यवंश में उत्पन्न हुए थे। यह वंश राजा इक्ष्वाकु से आरम्भ हुआ। पुराणों में कहा गया है कि इक्ष्वाकु वैवस्वत मुनि के पुत्र थे।

भगवान श्रीराम का वंश

इस वंश में राजा पृथु, मांधाता, दिलीप, सगर, भगीरथ, रघु, अंबरीष, नाभाग, त्रिशंकु, महुष और सत्यवादी हरिशचंद्र जैसे प्रतापी व्यक्तियों ने जन्म लिया। श्रीराम के पूर्वज पृथु के नाम से ही पृथ्वी का नामकरण हुआ। पृथु ने धरती को समतल करवा कृषि कार्य प्रारम्भ करवाया।

राजा सगर ने पृथ्वी खुदवा कर समुद्र बनवाए, श्रीराम के पूर्व राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ देवी गंगा को पृथ्वी पर लाए और अपने पुरखों का उद्धार किया। देवी गंगा किसी न किसी रूप में श्रीराम से जुड़ी है और वर्तमान में भी हमारे मृत संबंधियों का उद्धार कर रही है।

2022 में रामनवमी कब है ?

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