तीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

तीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य राजा पृथु पूछते हैं, हे नारदजी ! भगवान् का अत्यन्त प्रिय भीष्मपंचक व्रत कैसे प्रसिद्ध हुआ? तब नारदजी कहने लगे, हे राजा पृथु ! यह व्रत आदिकाल से है परन्तु बीच में लुप्त हो गया था। फिर यह कैसे प्रसिद्ध हुआ, सो कथा हम तुमसे कहते हैं, सुनो। श्रीकृष्णजी ने भीष्मजी … Read more

उनत्तीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

उनत्तीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य राजा पृथु पूछने लगे कि हे नारदजी ! आप वेद, शास्त्र तथा पुराणों के जानने वाले हैं सो कृपा करके यह बतलाइये कि किस देवता की कितनी कितनी परिक्रमा होती हैं और उनका क्या फल होता है? यह वार्ता सुनकर नारदजी कहने लगे कि देवी की एक, सूर्य की सात, अग्नि … Read more

अट्ठाईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

अट्ठाईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य इतनी कथा सुनकर ऋषि कहने लगे कि सूतजी ! कृपा करके कार्तिक शुक्ला अष्टमी, जिसको गोपाष्टमी भी कहते हैं, उसका माहात्म्य सुनाइये। सूतजी कहने लगे कि बाल्यावस्था में भगवान् कृष्ण पहले बछड़े चराया करते थे। कार्तिक शुक्ला अष्टमी गोपाष्टमी कहलाती है। इस दिन सब मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए गौ … Read more

सत्ताईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

सत्ताईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य इस प्रकार वह राक्षस और पिशाचिनी दोनों घूमते-फिरते नर्मदा नदी के किनारे एक वट वृक्ष के नीचे आकर ठहरे। उस वट वृक्ष पर गुरु का निन्दक एक ब्रह्मराक्षस रहता था। उन दोनों को वहाँ पर आया हुआ देखकर वह कहने लगा कि अरे तुम कौन हो, और किस पाप से इस … Read more

छब्बीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

छब्बीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य सूतजी कहते हैं कि भागीरथ के वंश में सौरदास नाम का एक राजा हुआ, जिसका पुत्र मित्रसंह था । मित्रसह गुरु वशिष्ठजी के श्राप से राक्षस हो गया, परन्तु गंगाजल के प्रभाव से वह भी भगवान् के परमपद को प्राप्त हुआ। ऋषि पूछने लगे कि हे सूतजी, गुरु वशिष्ठ ने किस … Read more

पच्चीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

पच्चीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य शुक्राचार्यजी कहने लगे कि हे राजा बलि ! विष्णु तुम्हारा राज्य लेने के लिए अदिति के गर्भ से जन्म लेकर, वही तुम्हारे यज्ञ में आये हैं सो तुम इनको कुछ भी देना मत। हे राजन्! मेरा कहना मानो । नीतिशास्त्र का कहना है कि अपनी बुद्धि से गुरु की बुद्धि अधिक … Read more

चौबीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

चौबीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य ऋषि पूछने लगे, हे सूतजी ! बड़े आश्चर्य की बात है कि अदिति अग्नि में नहीं जली। तब सूतजी ने कहा, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। जिन भगवान् के स्मरण मात्र से सब संकट दूर हो जाते हैं उनका ध्यान करने वाले भक्त को कौन कष्ट दे सकता है। जब … Read more

तेईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

तेईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य यह कथा सुनकर ऋषि कहने लगे-हे सूतजी! भगवान् के चरणों से उत्पन्न हुई गंगाजी की महिमा कहिये। तब सूतजी ने कहा, हे ऋषियों जो कुछ नारदजी ने राजा पृथु से कहा, वही मैं तुमको सुनाता हूं। इन्द्रादिक सब देवताओं को उत्पन्न करने वाले कश्यपजी की दो पत्नियां थीं। एक अदिति, जिसके … Read more

बाईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

बाईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य नारदजी कहते हैं कि हे राजन्! कार्तिक शुक्ला दूज को यम द्वितीया कहते हैं। इस दिन यमुनाजी में स्नान करके यमराज का पूजन करते हैं। इस द्वितीया को भैया दूज भी कहते हैं। इस दिन भाई अपने घर भोजन न करे। अपनी बहिन न हो तो गुरु की कन्या भी बहिन … Read more

इक्कीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

इक्कीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य राजा पृथु ने पूछा- हे नारदजी ! कृपा करके अन्नकूट तथा वर्धन का माहात्म्य कहिये। तब नारदजी कहने लगे कि कार्तिक सुदी एकम् को गोवर्धन पूजा तथा अन्नकूट होता है। इस दिन पृथ्वी पर गोबर का गोवर्धन बनाकर उसका पूजन करे फिर अन्नकूट बनावे पहले ब्राह्मणों को भोजन करावे, फिर स्वयं … Read more