उनत्तीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

उनत्तीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य

राजा पृथु पूछने लगे कि हे नारदजी ! आप वेद, शास्त्र तथा पुराणों के जानने वाले हैं सो कृपा करके यह बतलाइये कि किस देवता की कितनी कितनी परिक्रमा होती हैं

और उनका क्या फल होता है? यह वार्ता सुनकर नारदजी कहने लगे

कि देवी की एक, सूर्य की सात, अग्नि की सात, गणेशजी की तीन, शिवजी की आधी, पितरों की तीन अथवा चार तथा विष्णु की चार परिक्रमा होती हैं।

इस सम्बन्ध में ब्रह्माजी का कहा हुआ एक इतिहास सुनो, जिसमें वृहस्पतिजी तथा इन्द्र का संवाद है।

वैवस्वत मन्वन्तर में एक समय सब देवताओं सहित इन्द्र वृहस्पतिजी के पास जाकर उनसे पूछने लगे कि हे गुरुदेव ! ब्रह्मकाल से पहले यह सृष्टि कैसी थी ?

इन्द्र तथा अन्य देवगण कैसे थे और उनका कर्म कैसा था? यह सुनकर वृहस्पतिजी कहने लगे,

उस समय की बात तो हम भी नहीं बता सकते, क्योंकि उस समय को छः मन्वन्तर बीत चुके हैं।

परन्तु आपके ही नगर में एक सुधर्मा नाम वाला है, वह सब कुछ बता सकता है,

अतएव उसके पास चलिये। तब वृहस्पतिजी सब देवों तथा इन्द्र को साथ लेकर सुधर्मा के पास आये।

सुधर्मा ने गुरुजी सहित इन्द्रादि देवों का पूजन तथा आदर सत्कार किया।

इन्द्र सुधर्मा की राज्य लक्ष्मी तथा वैभव देखकर दंग रह गया। तत्पश्चात् कहने लगा कि हे सुधर्मा !

इतनी लक्ष्मी तुमको कैसे प्राप्त हुई ? तुमने कौन सा यज्ञ, दान अथवा तप किया था तथा ब्रह्मकल्प से पहले की बात तुम कैसे जानते हो,

यह सब हमसे कहो । सुधर्मा कहने लगा, हे इन्द्र ! जब चारों युगों की एक हजार चौकड़ी बीत जाती हैं

तब ब्रह्मा का एक दिन होता है। उस एक दिन में चौदह मनु और इन्द्र होते हैं।
जब हम विष्णु लोक में थे, तब वहाँ पर रहते हमारे सामने इतने ब्रह्मा हो चुके हैं कि उनकी हम गणना (गिनती) नहीं कर सकते।

उसके पश्चात् जब हम यहाँ स्वर्ग में आये सो हमने जो भी अच्छा कर्म किया और जिसके कारण हमने इतनी लम्बी आयु पाई, उसको सुनो।

पहले जन्म में हम मांस खाने वाले गृद्ध थे। एक समय कार्तिक शुक्ला नवमी को श्री विष्णु के मन्दिर पर बैठे हुए थे,

तभी एक शिकारी ने हमको बाण मारा, जिससे हम घायल होकर मन्दिर में आ गिरे।

उसी समय मांस के लोभी एक कुत्ते ने आकर मुझको पकड़ लिया।

उस कुत्ते को देखकर और कुत्ते भी वहाँ पर आ गए। वह कुत्ता उनके डर के मारे मन्दिर के चारों ओर चक्कर लगाने लगा।

दूसरे कुत्ते भी उसके पीछे-पीछे भागते रहे। इस प्रकार सबकी प्रदक्षिणा हो गई। इसी बीच मेरी मृत्यु हो गई।

उस प्रदक्षिणा से भगवान् बहुत ही प्रसन्न हुए और मुझको अपना परमपद दे दिया।
यह बात सुनकर इन्द्र को अत्यन्त प्रसन्नता हुई और उन्होंने विधिपूर्वक भगवान् का पूजन तथा प्रदक्षिणा की।नारदजी कहते हैं, हे राजन्!
कार्तिक शुक्ला नवमी सत्ययुग की आदि तिथि है। उस दिन भगवान् की पूजा, प्रदक्षिणा, दान, तप तथा यज्ञ करने से कई गुना फल प्राप्त होता है।
यदि कार्तिक कृष्णा नवमी को मथुरा में जाकर भगवान् की पूजा व प्रदक्षिणा की जाय तो उसके फल का तो कहना ही क्या है।

प्रदक्षिणा करने में जितने पग उठते हैं उसके उतने ही कुल वैकुण्ठ में जाते हैं।

यदि मथुरा पुरी दूर हो तो अन्य किसी स्थान पर प्रदक्षिणा करे।

यदि वह भी न हो सके तो ब्राह्मण, विष्णु की मूर्ति, गौ या गौ के स्थान, शालिग्राम और तुलसी की ही प्रदक्षिणा कर लेवे।

समुद्र पर्यन्त सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने से जो फल मिलता है,

वही शालिग्राम तथा तुलसी की प्रदक्षिणा करने से प्राप्त हो जाता है।

गौ, ब्राह्मण, देव मन्दिर यह सब शालिग्राम की मूर्ति के बराबर हैं।

कार्तिक शुक्ला नवमी को ब्राह्मण, गौ, देवालय, तुलसी वन, साधु, वैरागी, जीवन्मुक्त, गृहस्थ, वेद, उपवेद तथा पुराण यह सब ग्राम में ही वास करते हैं।

यदि ग्राम की प्रक्षिणा करनी हो तो प्रातः काल उठकर स्नानादि क्रिया से निवृत्त हो,

कमंडल हाथ में ले”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करता हुआ सूर्योदय से पूर्व ही प्रारम्भ करे।

ब्राह्मण, देवस्थान तथा शालिग्राम की मूर्ति की प्रदक्षिणा सूर्योदय के बाद भी की जा सकती है।

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