बाईसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य
नारदजी कहते हैं कि हे राजन्! कार्तिक शुक्ला दूज को यम द्वितीया कहते हैं।
इस दिन यमुनाजी में स्नान करके यमराज का पूजन करते हैं।
इस द्वितीया को भैया दूज भी कहते हैं। इस दिन भाई अपने घर भोजन न करे।
अपनी बहिन न हो तो गुरु की कन्या भी बहिन के समान होती है।
अतएव उसे ही बहिन माने। उस दिन बहिन अपने भाई की आयु बढ़ाने के लिए आठ चिरंजीवियों (१. मारकण्डेय, २. बलि, ३. व्यास, ४. हनुमान, ५.विभीषण,
६. कृपाचार्य, ७. अश्वत्थामा और ८. परशुराम ) का विधिवत् पूजन करे फिर भाई को बुलाकर पहले उसके तिलक लगावे और फिर यह कहे कि ‘सूर्य, चन्द्रमा,
पृथ्वी, समुद्र, वेद, पुराण, तप, सत्य, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवता,
मुनि तथा धर्म ये सब मेरे भाई की रक्षा करें तथा जब तक पृथ्वी सूर्यादि स्थित हैं
जिसमें स्नानादि करने की ब्रह्मा आदि देवता भी इच्छा करते हैं।
गोदावरी, कृष्णा, रेवा, अमरावती, तुंगभद्रा, कावेरी, यमुना, बाहदा, चैत्रवती, तामपर्णी, सरयू आदि सब तीर्थ गंगा में स्थित हैं।
काशी क्षेत्र भी सब क्षेत्रों में उत्तम है, जहां देवता वास करते हैं।
वह मनुष्य धन्य है जो अपने कानों से काशी क्षेत्र की कथा सुनता है।