श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा | shri krishna janmashtami

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा | shri krishna janmashtami

श्री कृष्ण जन्माष्टमी | बाल कृष्ण लीला

जन्माष्टमी की तारीख व मुहूर्त

निशीथ पूजा मुहूर्त :24:03:00 से 24:46:42 तक
अवधि :0 घंटे 43 मिनट
जन्माष्टमी पारणा मुहूर्त :05:52:03 के बाद 20, अगस्त को

जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है ?

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात के बारह बजे मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव जी की पत्नी देवी देवकी के गर्भ से सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस तिथि को रोहिणी नक्षत्र का विशेष माहात्म्य है।

इस दिन देश के समस्त मन्दिरों का श्रृंगार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष में झांकियां सजायी जाती हैं। भगवान कृष्ण का शृंगार करके झूला सजाया जाता है। स्त्री-पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं।

रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की ख़बर चारों दिशाओं में गूंज उठती है। भगवान कृष्ण की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है। प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खोला जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा

कथा : द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों के अत्याचार बढ़ने लगे। पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी कथा सुनाने के लिए तथा अपने उद्धार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई। ब्रह्मा जी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को विष्णु के पास क्षीर सागर ले गए। उस समय भगवान विष्णु अनन्त शैया पर शयन कर रहे थे।

स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्मा एवं सब देवताओं को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली- भगवान मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूं। मेरा उद्धार कीजिए। यह सुनकर विष्णु बोले- मैं ब्रज मण्डल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा।

तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो। इतना कह कर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए।

इसके उपरांत देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द-यशोदा तथा गोप गोपियों के रूप में पैदा हुए।

द्वापर युग के अन्त में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था।

कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतार कर जेल में डाल दिया और खुद राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया।

जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि “हे कंस ! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया।

उसने सोचा-न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा। वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं सन्तान से तुम्हें भय है। इसलिये मैं इसकी आठवीं सन्तान को तुम्हें सौंप दूंगा।

तुम्हारे समझ में जो आए उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बन्द कर दिया।

तत्काल नारद जी वहां आ पहुंचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवां गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से शुरू होगी।

कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार कंस ने एक-एक करके देवकी के सात बालकों को निर्दयता पूर्वक मार डाला।

भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, “अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो ।

तत्काल वासुदेव जी की हथकड़ियां खुल गईं। कारागार के दरवाजे अपने आप खुल गए। पहरेदार सो गए। वासुदेव कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए। रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढ़ने लगीं। भगवान ने अपने पैर लटका दिए। चरण छूने के बाद यमुना घट गई।

वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहां पहुंचे। बालक कृष्ण को यशोदा जी की बगल में सुला कर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए। जेल के दरवाजे पूर्ववत् बन्द हो गए। वासुदेव जी के हाथों में हथकड़ियां पड़ गईं, पहरेदार जाग गए। कन्या के रोने पर कंस को ख़बर दी गई।

कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली, “हे कंस! मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुंच चुका है।” यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया।

कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे । श्रीकृष्ण ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर श्रीकृष्ण ने कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया।

श्रीकृष्ण की पुण्य जन्म तिथि को सारे देश में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

सावन सोमवार

आनंद संदेश

Leave a Comment