श्री बाबा गंगाराम चालीसा – अलख निरंजन आप हैं,निरगुण सगुण हमेश

श्री बाबा गंगाराम चालीसा

जब जब धरती पर माया का पक्ष सबल हो जाता है तो अशान्ति, अधर्म तथा असत्यता का साम्राज्य हो जाता है। इसका यह अर्थ नहीं कि सत्यता, परमार्थ तथा धर्म एकदम लुप्त हो जाते हैं तथा अधर्म ही अधर्म की बहुलता हो जाती है।

होता ऐसा है कि सत्त्वगुण ‘ के स्थान पर रजोगुण- तमोगुण प्रधान हो जाता है। राक्षसी, दुराचारी और अधर्म वृत्ति के लोगों की संख्या अधिक हो जाती है। धरती पर पापों का बोझ बढ़ जाता है। धरती भी किसी महान् व्यक्तित्व सम्पन्न महापुरुष की आवश्यकता की करुण पुकार करती है।

उसके साथ साथ भक्तजन उस धरती की आर्त पुकार के साथ अपने हृदय की आर्त्त ध्वनियों को वायु के साथ नभ में भेजते हैं। वह ‘करुण-क्रन्दन’ अथवा ‘आवश्यकता की पुकार’ जब धुआंधार बन गगनमंडल में विचरण करती है तो देवता, किन्नर, गन्धर्व इस आतुर स्वर के साथ अपना विह्वल स्वर मिलाते हैं।

उस समय प्रकृति द्वारा उसका प्रबन्ध कर दिया जाता है। तब अनामी लोक से सन्त-महापुरुषों का अवतरण होता है। एक उक्ति है कि ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ एवं लिखा भी है कि-

॥ चौपाई ॥

सृष्टि में मोह तम अति छाए । रजो तमो विस्तार फैलाए ॥ भक्तन की कछु बनि नहिं आवे । धर्म सत्य न काहू सुहावे || विप्र-धेनु का होहिं अपमाना । कुटिल पाखण्डी करहिं ज्ञाना ॥ धरा धाम बने नरक द्वारा । कर्म धर्म का रहे न विचारा ॥ भक्त- विप्र-धरा करहिं दुहाई । तजहु न प्रभु अपनी प्रभुताई ॥ काल चक्र परिस्थिति अनुसारा । प्रगटत प्रभु सर्गुण अवतारा ॥

इसप्रकार से सन्त-महापुरुषों का इस धराधाम पर अवतरण होता है। उन के आगमन से सृष्टि में आनन्द, शान्ति तथा प्रेम की एक लहर सी आ जाती है।

सोई रूहों को जगाने के लिए अध्यात्मिकता के मार्ग पर लाने के लिए और उनकी जिंदगी खुशहाल बनाने के लिए के रूप में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में बाबा गंगा राम जी इस दुनिया में आए थे।

चालीसा

श्री बाबा गंगाराम चालीसा एक भक्ति गीत है जो श्री बाबा गंगाराम पर आधारित है।

॥ दोहा ॥

अलख निरंजन आप हैं, निरगुण सगुण हमेश। नाना विधि अवतार धर, हरते जगत कलेश ॥

बाबा गंगारामजी,हुए विष्णु अवतार । चमत्कार लख आपका, गूँज उठी जयकार ॥

॥ चौपाई ॥

गंगाराम देव हितकारी । वैश्य वंश प्रकटे अवतारी ॥

पूर्वजन्म फल अमित रहेऊ । धन्य-धन्य पितु मातु भयेउ॥

उत्तम कुल उत्तम सतसंगा । पावन नाम राम अरू गंगा॥

बाबा नाम परम हितकारी। सत सत वर्ष सुमंगलकारी॥

बीतहिं जन्म देह सुध नाहीं । तपत तपत पुनि भयेऊ गुसाई॥

जो जन बाबा में चित लावा। तेहिं परताप अमर पद पावा॥

नगर झुंझनूं धाम तिहारो । शरणागत के संकट टारो ॥

धरम हेतु सब सुख बिसराये । दीन हीन लखि हृदयलगाये ॥

एहि विधि चालीस वर्ष बिताये। अन्त देह तजि देवकहाये॥

देवलोक भई कंचन काया । तब जनहित संदेश पठाया ॥

निज कुल जन को स्वप्न दिखावा । भावी करमजतन बतलावा ॥

आपन सुत को दर्शन दीन्हों । धरम हेतु सब कारज कीन्हों॥

नभ वाणी जब हुई निशा में । प्रकट भई छवि पूर्व दिशा में ॥

ब्रह्मा विष्णु शिव सहित गणेशा । जिमि जनहितप्रकटेउ सब ईशा॥

चमत्कार एहि भांति दिखाया । अन्तरध्यान भई सब माया।

सत्य वचन सुनि करहिं विचारा | मन महँ गंगाराम पुकारा॥

जो जन करई मनौती मन में । बाबा पीर हरहिं पल छन में॥

ज्यों निज रूप दिखावहिं सांचा त्यों त्यों भक्तवृन्द तेहिं जांचा ॥

उच्च मनोरथ शुचि आचारी। राम नाम के अटल पुजारी ॥

जो नित गंगाराम पुकारे। बाबा दुख से ताहिं उबारे॥

बाबा में जिन्ह चित्त लगावा। ते नर लोक सकल सुख पावा॥

परहित बसहिं जाहिं मन मांही। बाबा बसहिं ताहिं तन मांही॥

धरहिं ध्यान रावरो मन में । सुखसंतोष लहै न मनमें ॥

धर्म वृक्ष जेही तन मन सींचा। पार ब्रह्म तेहि निज में खींचा ॥

गंगाराम नाम जो गावे। लहि बैकुंठ परम पद पावे ॥

बाबा पीर हरहिं सब भांति । जो सुमरे निश्छल दिन राती ॥

दीन बन्धु दीनन हितकारी।हरौ पाप हम शरण तिहारी ॥

पंचदेव तुम पूर्ण प्रकाशा।सदा करो संतन मँहबासा॥

तारण तरण गंग का पानी। गंगाराम उभय सुनिशानी ॥

कृपासिंधु तुम हो सुखसागर । सफल मनोरथ करहु कृपाकर॥

झुंझनूं नगर बड़ा बड़ भागी । जहँ जन्में बाबा अनुरागी ॥

पूरन ब्रह्म सकल घटवासी।गंगाराम अमर अविनाशी ॥

ब्रह्म रूप देव अति भोला । कानन कुण्डल मुकुट अमोला ॥

नित्यानन्द तेज सुख रासी । हरहु निशातन करहु प्रकासी ॥

गंगा दशहरा लागहिं मेला । नगर झुंझनूं मँह शुभ बेला ॥

जो नर कीर्तन करहिं तुम्हारा। छवि निरखि मन हरष अपारा॥

प्रात: काल ले नाम तुम्हारा । चौरासी का हो निस्तारा ॥

पंचदेव मन्दिर विख्याता । दरशन हित भगतन का तांता ॥

जय श्री गंगाराम नाम की। भवतारण तरि परम धाम की॥

‘महावीर’ धर ध्यान पुनीता । विरचे गंगाराम सुगीता ॥

॥ दोहा ॥

सुने सुनावे प्रेम से,कीर्तन भजन सुनाम। मन इच्छा सब कामना, पुरई गंगाराम ॥

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