बजरंग बाण चालीसा || Bajrang Baan Chalisa

बजरंग बाण चालीसा

श्री हनुमान जी को पवन पुत्र,मारुति, बजरंगबली आदि नामों से जाना जाता है। किंतु ज्यादातर भगत इनको संकट मोचन नाम से पुकारते हैं। क्योंकि हनुमान जी अपने भक्तों के दुखों को दूर कर उन्हें खुशियां प्रदान करते हैं ।

आज के समय में यह माना जाता है कि सिर्फ हनुमान जी ही एक ऐसे है जो पृथ्वी पर विराजमान एक शक्ति है और मनुष्य की रक्षा कर रही है । बजरंग बाण के बारे में मानव जीवन की विपताओं को हरने में इसका असर गायत्री मंत्र से भी ज्यादा होता है।

यह एक ऐसा स्त्रोत है जिसे संत भक्त श्रद्धालु भी इसे संकट के निवारण के लिए अपनाते हैं।

बजरंग बाण से व्यक्ति को अनेक तरह के लाभ होते हैं । जैसे कि अकारण कष्ट आना, गलत विचार आना, ग्रह क्लेश, रोगी की रोगों से मुक्ति, मानसिक अशांति आदि और भी कष्टों का निवारण के लिए बजरंग बान को उनके भक्त पढ़ते हैं।

हनुमान जी की पूजा अर्चना करने वाले व्यक्ति हमेशा सुखी रहते हैं। हनुमान जी श्री राम जी के सबसे बड़े भक्त हैं । हनुमान जी की पूजा करने से पहले श्री राम जी का नाम लिया जाता है। जिससे हनुमान जी बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। हनुमान ज जी बल बुद्धि भक्ति और मुक्ति के देव हैं

बजरंग बाण भगवान हनुमान को समर्पित सबसे लोकप्रिय भक्ति गीत है। भगवान हनुमान से सम्बन्धित त्यौहारों और अधिकांश अवसरों पर इस प्रसिद्ध गीत का पाठ किया जाता है। इसकी रचना हनुमान चालीसा के समान है। बजरंग बाण का शाब्दिक अर्थ बजरंग बली या भगवान हनुमान का तीर है

बजरंग बाण चालीसा

॥ दोहा ॥

निश्चय प्रेम प्रतीति ते,बिनय करै सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान ॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥

जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ॥

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका ॥

जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा॥

बाग उजारि सिन्धु महं बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा ॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा ॥

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर महं भई॥

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहुं उर अन्तर्यामी ॥

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दुःख करहुं निपाता॥

जय गिरिधर जय जय सुख सागर । सुर समूह समरथ भटनागर ॥

ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले । बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥

ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ॥

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।

सत्य होउ हरि शपथ पायके । रामदूत धरु मारु धाय के ।।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ॥

पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत कछु दास

तुम्हारा॥

वन उपवन मग गिरि गृह माहीं । तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥

पाय परौं कर जोरि मनावों। यह अवसर अब केहि गोहरावों ॥

जय अंजनि कुमार बलवन्ता।शंकर सुवन धीर

हनुमन्ता॥

बदन कराल काल कुल घालक राम सहाय सदा प्रतिपालक॥

भूत प्रेत पिशाच निशाचर।अग्नि बैताल काल मारीमर॥

इन्हें मारु तोहि शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।

जनकसुता हरि दास कहावो।ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥

जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह

दुःख नाशा ॥

चरण शरण करि जोरि मनावों । यहि अवसर अब केहि

दुःख नाशा॥

चरण शरण करि जोरि मनावों । यहि अवसर अब केहि गोहरावों ॥

उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई ॥

ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥

ॐ हं हं हांक देत कपि चञ्चल। ॐ सं सं सहम पराने खल दल ॥

अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आनन्द हमारो॥

यहि बजरंग बाण जेहि मारो। ताहि कहो फिर कौन उबारो॥

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की ॥

यह बजरंग बाण जो जापै।तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे॥

धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहे कलेशा॥

॥ दोहा ॥

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान । तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान ॥

चालीसा